राजस्थान को आध्यात्मिकता और संस्कृति की धरती कहा जाता है। भारत का यह राज्य अपने प्राचीन मंदिरों और अनोखी परंपराओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसी राज्य के नागौर जिले का भंवाल माता मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थल है, जो अपनी ढाई प्याला शराब चढ़ाने की अनूठी प्रथा के लिए जाना जाता है। मेड़ता तहसील के भंवालगढ़ गांव में स्थित यह मंदिर माता भंवाल को समर्पित है, जिन्हें माता काली का शक्तिशाली रूप माना जाता है। यह मंदिर न केवल स्थानीय समुदायों के लिए श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
डाकुओं ने बनवाया था मंदिर
नागौर के भंवाल माता मंदिर का इतिहास लगभग 800 वर्ष पुराना माना जाता है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, माता भंवाल एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे स्वयं प्रकट हुई थीं। मंदिर का निर्माण डाकुओं द्वारा करवाया गया था, जो माता के चमत्कार से प्रभावित थे। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, डाकुओं का एक समूह राजा की सेना से बचने के लिए माता की शरण में आया था। माता ने उनकी रक्षा के लिए डाकुओं को भेड़-बकरियों के झुंड में बदल दिया। जब सेना ने केवल भेड़-बकरियां देखीं तो वह वापस लौट गई। इसके बाद डाकुओं ने माता के लिए मंदिर बनवाया।
उस समय डाकुओं के पास प्रसाद के लिए केवल शराब थी। उन्होंने सच्चे मन से माता को शराब अर्पित की। पुजारी ने चांदी के प्याले में शराब भरकर माता के होठों से लगाया और चमत्कारिक रूप से पहला प्याला खाली हो गया। दूसरा प्याला भी खाली हुआ लेकिन तीसरे प्याले में माता ने आधी शराब छोड़ दिया, जिसे भैरव बाबा के लिए माना गया। इस तरह ढाई प्याला शराब की प्रथा शुरू हुई। भक्तों का विश्वास है कि माता केवल सच्ची श्रद्धा और शुद्ध आस्था से चढ़ाए गए भोग को स्वीकार करती हैं।
पूरी होती हैं मनोकामनाएं
भंवाल माता मंदिर में शराब को नशे के रूप में नहीं, बल्कि पवित्र प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। यह प्रथा विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर प्रचलित है। इसको लेकर कई नियम भी हैं। शराब चढ़ाने वाला भक्त तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, चमड़े का बेल्ट या पर्स साथ नहीं रख सकता है। माता भक्त की नीयत और आस्था की कसौटी पर परखती हैं।
पुजारी चांदी के प्याले में शराब भरकर, आंखें बंद करके माता के होठों से प्याला लगाते हैं। कुछ क्षणों में पहला और दूसरा प्याला खाली हो जाता है, जबकि तीसरा प्याला आधा रहता है, जो भैरव बाबा को अर्पित किया जाता है।
यदि माता शराब का भोग स्वीकार करती हैं तो उस व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है। यह चमत्कार देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
दो देवी की हैं मूर्तियां
मंदिर का निर्माण प्राचीन हिंदू स्थापत्य शैली में किया गया है, जिसमें तराशे गए पत्थरों को जोड़ा गया है। गर्भगृह में दो मूर्तियां हैं। दाईं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें सात्विक प्रसाद जैसे मिठाई और फल चढ़ाए जाते हैं, और बाईं ओर काली माता (भंवाल माता), जिन्हें शराब का भोग लगता है। मंदिर का प्रवेश द्वार नक्काशीदार है, जिसमें पौराणिक चित्र और फूलों की आकृतियां उकेरी गई हैं। शिखर ऊंचा और प्रभावशाली है, जो दूर से दिखाई देता है। परिसर में एक विशाल अतिथिशाला भी है, जहां भक्तों के ठहरने और भोजन की व्यवस्था होती है।
इन समुदायों की हैं कुलदेवी
भंवाल माता मंदिर बैंगानी, झांबड, तोडरवाल, ओसवाल, जैन, राजपूत और गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समुदायों की कुलदेवी के रूप में पूजनीय है। भक्त मानते हैं कि माता सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को पूरा करती हैं। नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशेष पूजा, हवन और मंगल आरती होती हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती हैं। मंदिर में सुबह 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। मंगल आरती सुबह 6:00 बजे और संध्या आरती शाम 7:00 बजे होती है।
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