Bala Jyanti 2025: हिन्दू धर्म के पूर्णिमान्त पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बाला जयंती के रूप में मनाया जाता है. वहीं अमान्त पंचांग के अनुसार यह तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ती है. लेकिन, दोनों ही पंचांग प्रणालियों में यह दिन देवी बाला त्रिपुर सुंदरी की पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है. आइए जानते हैं, देवी बाला कौन हैं, हिन्दू धर्म में उनका महत्व क्या है और उनकी पूजा के नियम क्या हैं?
देवी बाला कौन हैं?
बाला जयंती का त्योहार देवी बाला को समर्पित है. वे 12 सिद्धविद्या देवियों में से एक प्रमुख देवी मानी गई हैं. धर्मग्रंथों में उनकी विद्या को बहुत ही पवित्र और खास बताया गया है. देवी बाला को ज्ञान, पवित्रता, सरलता और आध्यात्मिक शक्ति की देवी माना जाता है. उनका रूप एक छोटी बालिका जैसा कोमल और प्यारा है, लेकिन उनकी ताकत बहुत बड़ी और दिव्य है. श्रीविद्यार्णवतंत्र ग्रंथ में उन्हें देवी त्रिपुर सुंदरी के बाल रूप के रूप में वर्णित किया गया है.
देवी बाला देती हैं ये फल
श्रीविद्यार्णवतंत्र ग्रंथ के अनुसार देवी बाला इच्छा, ज्ञान और कर्म, इन तीनों शक्तियों का संतुलन कराती हैं. उनकी पूजा करने से मन की सरलता, पवित्रता और सच्चाई जागृत होती है. देवी बाला की उपासना करने से साधक को विद्या, बुद्धि, वाणी की शक्ति, स्मरणशक्ति और तेज की प्राप्ति होती है. उन्हें ब्रह्मविद्या का बालरूप माना गया है, जो आध्यात्मिक ज्ञान की पहली सीढ़ी का प्रतीक है.
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मान्यता है कि जो व्यक्ति बाला जयंती के दिन श्रद्धा और अनुशासन के साथ देवी बाला की पूजा करता है, उसे न केवल जीवन में सुख-समृद्धि मिलती है, बल्कि आत्मज्ञान और मोक्ष जैसे श्रेष्ठ फल भी प्राप्त होते हैं.
ऐसे करें देवी बाला की पूजा
बाला जयंती के दिन देवी बाला की पूजा बहुत शुभ और फलदायक मानी गई है. पूजा के लिए सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें. देवी बाला का चित्र या मूर्ति साफ स्थान पर स्थापित करें. इसके बाद दीपक और धूप जलाएं. देवी को लाल या पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें. उन्हें फूल, मोती, रोली, चंदन और नैवेद्य, जैसे फल, मिठाई या काजू-पिस्ता आदि चढ़ाएं. पूजा के दौरान बाला जप या मंत्र का उच्चारण करें, जैसे: ‘ॐ बाला देव्यै नमः’.
साधक को इस दिन साधना के दौरान शुद्ध मन और भक्ति भाव बनाए रखनी चाहिए. देवी बाला की पूजा से मन में सरलता, पवित्रता और ज्ञान का विकास होता है. इसके अलावा, यह पूजा बुद्धि, वाणी, स्मृति और आध्यात्मिक तेज बढ़ाने में भी सहायक मानी जाती है.
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