साल 2025 में 25 मार्च को चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन सुबह 5 बजकर 5 मिनट से एकादशी तिथि प्रारंभ होगी और यह 26 मार्च की सुबह 3 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार पापमोचनी एकादशी व्रत 25 मार्च को ही रखा जाएगा। वहीं, इस व्रत का पारण 26 मार्च 2025 को किया जाएगा।
पापमोचनी एकादशी को पाप से मुक्ति के लिए सबसे सरल उपाय माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से गंभीर पाप से भी मुक्ति मिल सकती है। इसके लिए भविष्य पुराण में एक कथा मिलती है।
श्रीकृष्ण ने सुनाई थी कथा
भविष्य पुराण के अनुसार युधिष्ठिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने इस कथा को सुनाया था। कथा के अनुसार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी अत्यंत तेजस्वी और तपस्वी थे। वे भगवान शिव की घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या इतनी ज्यादा प्रभावशाली थी कि स्वर्ग में इंद्र को चिंता होने लगी कि यदि ऋषि की साधना पूरी हो गई तो वो स्वर्ग को प्राप्त कर सकते हैं। इस कारण उन्होंने स्वर्ग की अपसरा मंजुघोषा को ऋषि की तपस्या भंग करने का दायित्व सौंपा।
अप्सरा पर मोहित हो गए ऋषि मेधावी
मंजुघोषा स्वर्ग की बेहद खूबसूरत अप्सरा थी। वह गायन और नृत्य में बेहद ही निपुण थी। उसने अपने संगीत और नृत्य से ऋषि मेधावी को आकर्षित करने का प्रयास किया। हालांकि शुरुआत में तो ऋषि ने उसपर ध्यान नहीं दिया, लेकिन कुछ समय बाद वे उसपर मोहित हो गए। उन्होंने अपनी तपस्या को छोड़कर मंजुघोषा के साथ रमण करना शुरू कर दिया। वे इतने गहरे आकर्षण में फंस गए कि उन्हें समय को आभास नहीं रहा और कई वर्षों तक वे उस अप्सरा के मोह में पड़े रहे।
पिशाच बन गई अप्सरा
जब अप्सरा मंजुघोषा ने स्वर्ग जाने की अनुमति मांगी तो ऋषि मेधावी को अपनी चेतना वापस मिली और उन्होंने देखा कि उनकी साधना और तपस्या नष्ट हो गई है। उन्होंने मंजुघोषा ने पूछा कि तुम कौन हो और मुझे मोहित क्यों किया। इस पर अप्सरा ने बताया कि इंद्र के कहने पर वह ऋषि की तपस्या भंग करने आई थी। इस पर ऋषि क्रोधित हो गए और अप्सरा को पिशाच बनने का श्राप दे दिया।
पापमोचनी एकादशी व्रत से मिली मुक्ति
श्राप से अप्सरा घबरा गई और ऋषि से माफी मांगते हुए इसका निवारण पूछा। ऋषि ने कहा कि पापमोचनी एकादशी का व्रत तुमको इस पाप से मुक्ति देगा। अप्सरा पिशाच बन गई। इसके बाद उसने चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया, जिससे उसके सारे पाप नष्ट हो गए और वह वापस स्वर्ग चली गई। उसी दिन के बाद से इस एकादशी का नाम पापमोचनी पड़ गया।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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