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Religion

Apara Ekadashi Katha: अपरा एकादशी आज, जानें असली संपूर्ण व्रत कथा, पारण करने की सही विधि और मुहूर्त

Apara Ekadashi Katha: भगवान विष्णु को समर्पित हर प्रकार का पाप हरने वाली, सभी प्रकार की अपार सफलता और समृद्धि देने वाली अपरा एकादशी आज है। आइए जानते हैं, अपरा एकादशी की व्रत कथा, पारण करने की सही विधि और मुहूर्त (टाइमिंग) क्या है?

Author Edited By : Shyamnandan Updated: May 23, 2025 07:39
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Apara Ekadashi Katha: अपरा एकादशी का अर्थ है वह एकादशी जो अपार फल देती है यानी यह व्रत व्यक्ति को अपार पुण्य और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु की उपासना के लिए माना जाता है, जिसे अचला एकादशी और भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इससे जीवन के समस्त दुख और पापों से मुक्ति मिलती है।

यह पावन पर्व आज यानी शुक्रवार 23 मई, 2025 को रखा जा रहा है, जिसका पारण कल शनिवार 24 मई को होगा। हर एकादशी की तरह इस एकादशी का व्रत भी इसके कथा के बिना अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं, इसके पारण की टाइमिंग क्या है और अपरा एकादशी व्रत की कथा क्या है?

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अपरा एकादशी 2025 का पारण समय

अपरा एकादशी 2025 का पारण शनिवार 24 मई, 2025 को द्वादशी तिथि को किया जाएगा। पंचांग के अनुसार, इसका पारण यानी व्रत तोड़ने के लिए कुल 2 घंटे 45 मिनट का समय मिलेगा। इस पावन व्रत के पारण की टाइमिंग इस प्रकार है:

  • पारण (व्रत तोड़ने का) समय: शनिवार 24 मई की सुबह में 05:26 AM से 08:11 AM तक

अपरा एकादशी के पारण की विधि

  • अपरा एकादशी के पारण के पारण यानी व्रत तोड़ने से पहले स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु और अन्य सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा कर लेना चाहिए।
  • इसके बाद तुलसी में जल अर्घ्य देकर उनकी आराधना कर लेनी चाहिए। फिर घर के बड़े-बुजुर्ग का आशीर्वाद ले लें।
  • अब पारण का भोजन का पहला कौर लेने से पहले जल के साथ तुलसी दल अनिवार्य रूप से ग्रहण करें।
  • इसके बाद भोजन आरंभ करें और भोजन में इस बात का ध्यान भी ध्यान रखें कि पारण के भोजन में चावल, चने की दाल और हरी लौकी की सब्जी अवश्य होनी चाहिए।

अपरा एकादशी व्रत कथा

हिन्दू धर्म में व्रत कथा का बहुत महत्व है। हर एकादशी का व्रत की तरह अपरा एकादशी व्रत भी इसकी कथा के श्रवण या पाठ के बिना अधूरा माना जाता है। आपको बता दें कि पापों से मुक्ति और मोक्ष देने वाली अपरा एकादशी की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों में युधिष्ठिर को सुनाई थी। आइए जानते हैं, अपरा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा:

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युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है और उसका महात्म्य क्या है, सो कृपा कर कहिए?

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ और ‘अपरा’ दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना और झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: May 23, 2025 07:35 AM

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