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पेड़ों की छांव, बहते झरने, और शुद्ध हवा—क्या आपने कभी ऐसा गांव देखा है जो प्रकृति की गोद में बसा हो और आधुनिक विकास का उदाहरण भी बने? गुजरात का धज गांव ऐसा ही एक अनोखा गांव है, जो पर्यावरण और प्रगति का संगम बन चुका है। कभी बुनियादी सुविधाओं से जूझने वाला यह गांव अब इको-विलेज के रूप में अपनी नई पहचान बना रहा है। सौर ऊर्जा, बायोगैस, जल संरक्षण और प्राकृतिक खेती ने इसे आत्मनिर्भर और हरा-भरा बना दिया है। धज गांव साबित करता है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो विकास और प्रकृति साथ-साथ चल सकते हैं।

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गुजरात के सूरत जिले के मांडवी तालुका में स्थित धज गांव को इको-विलेज घोषित किया गया। यह गांव पर्यावरण और प्रगति का बेहतरीन उदाहरण बनकर सामने आया है।

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सूरत से 70 किमी दूर स्थित यह गांव घने जंगलों के बीच बसा हुआ है। यहां पहले बुनियादी सुविधाओं की कमी थी, लेकिन अब यह एक आदर्श इको-विलेज बन चुका है।

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गुजरात पारिस्थितिकी आयोग ने साल 2016 में धज गांव को इको-विलेज के रूप में घोषित किया। इसके बाद गांव में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।

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गांव में बायोगैस, बारिश का पानी जमा करने की व्यवस्था, पानी बचाने के उपाय और सूरज की रोशनी से चलने वाली स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। इससे गांव में बड़ा बदलाव आया है।

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गांव के किसानों को प्राकृतिक तरीके से खेती करने के फायदे बताए गए हैं। इससे गांव में खेती भी पर्यावरण के अनुकूल हो रही है।

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सूरत के ओलपाड तालुका का नाघोई गांव भी जल्द ही इको-विलेज के रूप में विकसित किया जाएगा। यह पहल और गांवों को भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रेरित करेगी।

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धज गांव की सफलता के बाद, अब गुजरात और भारत के अन्य गांवों में भी इस मॉडल को अपनाया जाएगा। यह एक उदाहरण बन चुका है कि पर्यावरण और विकास दोनों को साथ लेकर चल सकते हैं।