Nancy Tomar,
कहते हैं कि प्यार अंधा होता है, लेकिन खूनी भी हो सकता है… ये हमारा कहना नहीं बल्कि ‘खूनी मुस्कान’ ने साबित कर दिया है। आप सोचिए, जिसे आप प्यार करते हैं, जिसके साथ आपने जीने-मरने की कसमें खाई हैं या जिसके साथ आपने अपना हर सुख-दुख बांटने का वादा किया है, वो ही अगर आपकी जान का दुश्मन बन बैठे, तो आप क्या करेंगे? एक लव स्टोरी ऐसी भी है, जिसमें प्यार भी था, वादे भी थे, कसमें भी थीं और धोखा भी था। कहानी यहीं खत्म नहीं होती है बल्कि इसमें ‘मौत’ का तड़का भी था। मेरठ का सौरभ… जो मुस्कान नाम की एक लड़की से बेहद प्यार करता था। इतना प्यार कि उसके लिए अपने जन्म देने वाले मां-बाप तक को भूल गया, लेकिन उसे क्या पता था कि जिस प्यार के लिए उसने अपने ही मां-बाप को छोड़ दिया, वो प्यार उसे ‘मौत के कुंए’ तक ले जाएगा।
कहां गया ‘कैंडल क्लब?’
इस देश में जब भी किसी लड़की के साथ कुछ भी हुआ है, तो लोगों ने आवाज उठाई है। एक लड़की के साथ हुई उस हैवानियत को न्याय दिलाने के लिए लोग सड़कों पर आ जाते हैं। कैंडल मार्च निकालते हैं, सोशल मीडिया पर बहस करते हैं, लेकिन जब वही चीजें किसी पुरुष के साथ होती हैं, तो ये ‘कैंडल क्लब’ कहां चला गया? कहां गए वो लोग जो इंटरनेट पर ज्ञान देते नहीं थकते हैं। सौरभ राजपूत को लेकर क्यों किसी ने एक मोमबत्ती तक नहीं जलाई? क्या सौरभ इंसान नहीं था? या वो एक मां का बेटा नहीं था? क्या सौरभ का दर्द किसी को दिखाई नहीं दे रहा या फिर कोई इसे देखना ही नहीं चाहता है क्योंकि वो एक पुरुष था?
ये कोई फिल्म की कहानी नहीं है
सौरभ का मर्डर कोई आम मर्डर जैसा नहीं था और ना ही ये किसी फिल्म की कहानी है, जिसे देखकर किसी ने कुछ नहीं कहा? आज की जेनरेशन, आज के लोग या फिर आज की पीढ़ी, क्यों ये भूल गई है कि रिश्तों का कोई महत्व नहीं है? अगर शादी जैसे पवित्र रिश्ते का अंजाम ‘मौत’ है, तो लोगों का इस पर से भरोसा ही उठ जाएगा। आखिर क्यों आज-कल किसी के दिल से खेलना, किसी की फीलिंग्स को हर्ट करना या फिर किसी को धोखा देकर मार देना, इंसानियत से बड़ा हो गया है?
निर्भया के साथ हैवानियत, तो सौरभ के साथ क्या?
यहां बात सिर्फ सौरभ या निर्भया के साथ हुई हैवानियत की नहीं है बल्कि बात यहां ‘इंसानियत’ की है। अंग्रेजी काल में उदाहरण दिया जाता था कि अंग्रेजों की वजह से इस देश के लोगों ने बहुत कुछ सहा है और ये देश कभी अपनों को दुख नहीं पहुंचाता है। हम ये नहीं कह रहे हैं कि अगर आपके साथ गलत हो रहा है, तो आप उसको सहें। आवाज उठाएं, जरूर उठाएं… लेकिन किसी की जान लेकर ऐसे उदाहरण ना बनाएं, जिससे भारतीय संस्कृति और समाजिक संस्कारों पर सवाल उठने लगे।
कहां ‘सुरक्षित’ हैं रिश्तें?
आप देखिए ना आज की जेनरेशन पर कोई रोक नहीं है। एक तरफ बच्चे, मां-बाप की सेक्स लाइफ का दुनिया में मजाक बना रहे हैं, तो दूसरी और शादी जैसा पवित्र रिश्ता ‘मौत का कुंआ’ बन गया है। आज ही की जेनरेशन में खुद को सशक्त कहने वाली महिला एलिमनी के नाम पर करोड़ों ले रही हैं, तो वहीं बच्चियों के साथ रेप तक बंद नहीं हुआ है। ना सिर्फ लड़कियां और ना लड़के… आखिर कहां पर ‘सुरक्षित’ हैं वो रिश्तें, जिनसे हमारी पहचान है, जो हमारा स्वाभिमान हैं।
सौरभ को न्याय कब?
अब सवाल ये है कि जिस निर्भया को न्याय दिलाने के लिए लोग सड़कों पर आए, कैंडल मार्च निकाले और इतनी बहस हुई, उसके लिए आठ साल का लंबा समय लगा… तो जिस सौरभ के लिए ना कोई भीड़ निकली, ना कोई कैंडल क्लब और ना ही कोई बहस, उसे न्याय मिलने में कितना टाइम लगेगा? इसका जवाब किसी के पास ना निर्भया के टाइम पर था और ना ही आज सौरभ के समय पर है?
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