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राहुल गांधी ने रायबरेली सीट क्यों नहीं छोड़ी? प्रियंका गांधी को वायनाड क्यों भेजा गया?

Lok Sabha Election 2024 Result Analysis: राहुल गांधी ने इस बार लोकसभा चुनाव दो सीटों पर लड़ा था। दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट क्यों छोड़ी। इसके पीछे बड़े संकेत निकलकर आ रहे हैं। इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन पहले के मुकाबले काफी अच्छा रहा है। आइए जानते हैं आगे कांग्रेस किन रणनीतियों को अपना सकती है?

Edited By : Parmod chaudhary | Updated: Jun 18, 2024 20:41
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rahul priyanka

(विजय शंकर)

Lok Sabha Election Result 2024 Analysis: चुनावी राजनीति में संभावनाओं के खिड़की दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। नतीजों के हिसाब से तर्क गढ़ लिए जाते हैं। कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में 100 सीटों के आंकड़े को नहीं छू पाई। लेकिन कांग्रेस के ज्यादातर नेता यही कहते दिख रहे हैं कि पार्टी का प्रदर्शन 2014 और 2019 से बेहतर है। अब सवाल उठता है कि कांग्रेस के लिए आगे का रास्ता क्या है? 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी दो सीटों से चुनाव लड़े, एक यूपी की रायबरेली सीट और दूसरी केरल की वायनाड सीट। नियम के मुताबिक उन्हें एक सीट खाली करनी थी। कांग्रेस रणनीतिकार बहुत हिसाब लगाने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि राहुल गांधी को लोकसभा में रायबरेली की नुमाइंदगी करनी चाहिए और वायनाड सीट से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ना चाहिए।

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फैसले से प्रियंका की पारी की शुरुआत होगी

इस फैसले के साथ ही प्रियंका गांधी की भी चुनावी राजनीति में पारी की शुरुआत हो गई। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस की इस नई रणनीति से पार्टी को कितना फायदा होगा? कांग्रेस को कहां-कहां संभावनाएं दिख रही हैं। कांग्रेस की रणनीति एक साथ उत्तर और दक्षिण दोनों को साधने की है। कांग्रेस रणनीतिकार एक बात अच्छी तरह समझ चुके हैं कि बगैर 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश को साधे केंद्र की सत्ता में आना मुश्किल है। ऐसे में कांग्रेस ने बड़ी चतुराई के साथ बदले समीकरणों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। नतीजा ये रहा कि यूपी से कांग्रेस के 6 उम्मीदवार लोकसभा पहुंच गए।

यूपी में इस बार बढ़ा कांग्रेस का वोट बैंक

यूपी में कांग्रेस को इस बार 9.39% वोट मिले। वहीं, 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 2.33% था। अब इस गणित को दूसरे तरीके से भी समझना जरूरी है। साल 2022 में यूपी में कांग्रेस को कुल 2,151,234 वोट मिले। करीब दो साल बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट बढ़कर 8,294,318 हो गया। मतलबयूपी में 25 से 26 महीने में ही कांग्रेस का वोट 61 लाख 43 हजार से अधिक बढ़ गया। ऐसे में किसी भी पार्टी के रणनीतिकार इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि रणनीति सही है और सत्ता दूर नहीं है। कांग्रेस यूपी की सत्ता से पिछले 32 साल से बाहर है। कभी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोर वोट बैंक सवर्ण, दलित, पिछड़ा और मुस्लिम हुआ करते थे। मंडल-कमंडल की राजनीति और समाजवादी पार्टी के उदय के साथ ही कांग्रेस के खासतौर से मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा मुलायम सिंह यादव के साथ चला गया।

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कांग्रेस ने मजबूती के साथ किया है कमबैक

बहुजन समाज पार्टी की उभार के बाद दलित मायावती की ओर शिफ्ट हो गए। लखनऊ पॉलिटिक्स में कांग्रेस धीरे-धीरे हाशिए की ओर जाने लगी। प्रदेश में कांग्रेस संगठन दिनोंदिन कमजोर होने लगा। 2019 में कांग्रेस के हाथ से अमेठी भी निकल गई। ये कांग्रेस के लिए गंभीर चिंता की बात थी। वक्त का पहिया आगे बढ़ा 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए प्रियंका गांधी ने एक नया प्रयोग किया। कांग्रेस ने यूपी की 40 फीसदी सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारने का ऐलान किया। महिलाओं को टिकट दिया भी गया। भले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा नहीं मिला। लेकिन प्रियंका की इस पहल ने देश की दूसरी राजनीतिक पार्टियों को महिला वोटरों की ओर खासतौर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया।

काम कर गई राहुल गांधी की यात्रा

दूसरी ओर, राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए देश के आम आदमी के साथ कनेक्शन जोड़ने की कोशिश की। उनकी छवि पहले की तुलना में निखरी। इसका फायदा कांग्रेस पार्टी को चुनाव में साफ-साफ महसूस हुआ। राहुल गांधी ने बहुत सोच-समझकर रायबरेली सीट से लोकसभा में बने रहने का फैसला किया है। वो अच्छी तरह जानते हैं कि यूपी में कांग्रेस का संगठन कितना कमजोर है। जिसे रायबरेली की नुमाइंदगी करते हुए दुरुस्त करने में सहूलियत होगी। उन्हें इस बात का भी अहसास है कि हिंदी पट्टी के राज्यों में सियासी हवा का रुख बदलने में यूपी अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में कांग्रेस रणनीतिकारों को यूपी के बदले सियासी समीकरण और वोटिंग पैटर्न में आते बदलावों के बीच 2027 में तय विधानसभा चुनावों में हाथ के मजबूत होने के संकेत दिख रहे होंगे।

सवर्ण वोटरों से अब कांग्रेस को उम्मीद

कांग्रेस हिसाब लगा रही होगी कि बीएसपी जिस रास्ते आगे बढ़ रही है, उसमें दलित और मुस्लिम दोनों की पसंद हाथी की जगह हाथ हो सकता है। इसी तरह पिछड़े और सवर्ण वोटरों को भी अपनी ओर आता कांग्रेस देख रही होगी। आज की तारीख में कौन संसद या विधानसभा जाएगा, ये तय करने में महिला वोटर अहम भूमिका निभा रही हैं। प्रियंका गांधी महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। 2022 के यूपी चुनाव में प्रदेश की महिलाओं के लिए किस तरह की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था चाहती हैं, इसका ट्रेलर सामने आ चुका है। दक्षिण भारत के राज्यों की सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में प्रियंका गांधी को आगे कर कांग्रेस दक्षिण भारत की राजनीति में हाथ को मजबूत करने का गुना-भाग कर रही होगी।

विपक्ष भी नहीं लगा सकेगा आरोप

प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनावी अखाड़े में उतरने का मतलब होगा, गांधी परिवार का दक्षिण भारत से रिश्ता लगातार जुड़ा रहना। इतिहास गवाह रहा है कि साल 1978 में गांधी परिवार की साख दक्षिण भारत ने बचाई, इंदिरा गांधी कर्नाटक के चिकमंगलूर सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। इसी तरह 1999 में सोनिया गांधी बेल्लारी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। 2019 में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए, लेकिन वायनाड सीट से संसद पहुंचे। अब प्रियंका गांधी की राजनीति में चुनावी पारी की शुरुआत वायनाड सीट से हो रही है। कांग्रेस की नई रणनीति में उत्तर और दक्षिण भारत दोनों से गांधी परिवार का कनेक्शन बराबर का जुड़ा रहेगा। वहीं, विपक्ष ये नहीं कह पाएगा कि गांधी परिवार ने रायबरेली के लिए वायनाड को छोड़ दिया या वायनाड के लिए रायबरेली को छोड़ दिया।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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Written By

Parmod chaudhary

First published on: Jun 18, 2024 08:41 PM

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