आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने अपनी लेखनी में एक महत्वपूर्ण विचार रखा है, जो हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। उन्होंने अपने लेख में लिखा कि हमारे समाज में यह धारणा बन चुकी है कि सिर्फ शिक्षा ही सफलता का एकमात्र रास्ता है और खेलों को एक जोखिम समझा जाता है। ऐसे में जो बच्चे खेलों में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, उन्हें अक्सर शिक्षा के साथ समझौता करना पड़ता है। यह स्थिति तब और भी मुश्किल हो जाती है, जब परिवार आर्थिक असुरक्षा के कारण बच्चों को खेलों के बजाय शिक्षा को प्राथमिकता देने को मजबूर होते हैं।
‘बच्चों की प्रतिभा को निखारा जाए तो वे बड़ी ऊचाइयां छू सकते हैं’
जयंत चौधरी के मुताबिक, हर बच्चे में प्रतिभा होती है। बच्चों की प्रतिभा कभी-कभी स्पष्ट तौर पर दिख जाती है तो कभी-कभी वे व्यक्त नहीं कर पाते, लेकिन अगर उनकी प्रतिभा को पोषित किया जाए तो यह उन्हें बड़ी ऊंचाइयों को छूने में मदद कर सकता है। यह प्रतिभा अक्सर किसी की नजर में नहीं आती, खासकर जब बात खेलों की हो। कल्पना कीजिए कि अगर भारत का हर बच्चा जो दौड़ना, कूदना या गेंद को किक करना, शॉट पुट फेंकना या शतरंज खेलना पसंद करता है, उसे भविष्य का संभावित चैंपियन माना जाए, न कि गलत प्राथमिकताओं वाले बच्चे के रूप में देखा जाए। वैश्विक प्रतिस्पर्धी खेलों में भारत का प्रदर्शन क्षमता और वास्तविकता के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है। 1.4 अरब से अधिक लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद, ओलंपिक जैसे प्रमुख आयोजनों में हमारे पदकों की संख्या कम है। जबकि हमारे खिलाड़ियों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ रही है, लेकिन यह अभी तक परिणामों के अनुरूप नहीं है।
वहीं, पीवी सिंधु, नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, 2024 पैरालिंपिक स्वर्ण पदक विजेता प्रवीण कुमार और अन्य एथलीटों ने विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, जबकि खेलों का समर्थन करने वाली व्यापक प्रणाली सामाजिक धारणाओं, सीमित बुनियादी ढांचे और खेल और शिक्षा के बीच एकीकरण की कमी से ग्रस्त है। विचार करने का दूसरा पहलू शायद पदक जीतने से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
‘गरीब परिवार खेल को जोखिम भरा जुआ मानाता है’
उन्होंने कहा कि भारत में शिक्षा को लंबे समय से सफलता की एकमात्र सीढ़ी माना जाता रहा है। आर्थिक असुरक्षा की चुनौतियों से जूझ रहे परिवारों के लिए, खेल को जोखिम भरा जुआ माना जाता है या एक ऐसी विलासिता जिसे वे वहन नहीं कर सकते। कई युवा एथलीटों के लिए अपने जुनून को आगे बढ़ाने का मतलब है शिक्षा से समझौता करना, अगर उनके खेल के सपने साकार नहीं होते हैं तो उन्हें कोई विकल्प नहीं मिलता। प्रसिद्ध चेक लंबी दूरी के धावक एमिल जाटोपेक ने एक बार कहा था, ‘एक एथलीट अपनी जेब में पैसे लेकर नहीं दौड़ सकता। उसे अपने दिल में उम्मीद और दिमाग में सपने लेकर दौड़ना चाहिए।’ दूसरे शब्दों में कहे तो नए एथलीटों को एक व्यापक सहायता प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो उनकी क्षमताओं में विश्वास पैदा करे।
‘खेल और शिक्षा को एक साथ जोड़ने वाले संस्थानों की जरूरत’
लेकिन अगर हम खेलों और शिक्षा को एक साथ जोड़ने वाले संस्थानों की कल्पना करें तो यह बच्चों के लिए दोहरी सफलता का रास्ता खोल सकता है। एक ऐसा नेटवर्क, जो बच्चों को खेलों में उत्कृष्टता हासिल करने के साथ-साथ एक मजबूत शैक्षिक आधार भी प्रदान करे। इससे न केवल बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत को लाभ होगा बल्कि यह पूरे देश में खेलों के प्रति जागरूकता और रुचि को भी बढ़ावा देगा। उत्तर प्रदेश और तेलंगाना सहित कई राज्य खेल विश्वविद्यालय बनाने पर काम कर रहे हैं। एक आवासीय खेल विद्यालय ऐसे विश्वविद्यालयों के लिए एक फीडर सिस्टम बना सकता है।
जयंत चौधरी का यह विचार एक नई दिशा को सुझाता है, जिसमें खेलों को एक गंभीर करियर विकल्प के रूप में देखा जाएगा, न कि महज शौक या समय बिताने के तरीके के रूप में। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे संस्थानों की संरचना को इस तरह से तैयार किया जाए कि प्रत्येक बच्चे की क्षमता और रुचि को पहचाना जाए और उसे सही दिशा में प्रशिक्षित किया जाए।
‘यह मॉडल समाज का नजरिया बदल देगा’
इस मॉडल का उद्देश्य केवल पदक जीतना नहीं है बल्कि यह समाज के दृष्टिकोण को बदलने का भी है। इस तरह के संस्थान न केवल खेल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने वाले बच्चे तैयार करेंगे बल्कि उन बच्चों के लिए भी एक उज्जवल भविष्य तैयार करेंगे। इससे अगल वे खेल में सफलता नहीं पा सके तो शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस विचार को लागू करना चुनौतीपूर्ण जरूर होगा, लेकिन अगर सभी मंत्रालय, खेल संघ और स्थानीय सरकार मिलकर काम करें तो यह भारत में खेलों के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
जयंत चौधरी का यह दृष्टिकोण यह साबित करता है कि अगर सही अवसर मिले तो हर बच्चा अपना सपना पूरा कर सकता है, चाहे वह गोल्ड जीते या न जीते, खेलों से जो सीख मिलती है, वही सबसे बड़ी जीत होती है।