संजीव शर्मा। Social Media Destroyed Indian Culture: अन्तर्राष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति दिल्ली की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने आज के समय में देश भर में सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए इस देश में सोशल मीडिया को लेकर उपभोक्ताओं में जागृति लाने का निर्णय किया है, जो एक महत्वपूर्ण निर्णय है। सोशल मीडिया से तात्पर्य है सामाजिक संजाल स्थल या Social Networking Sites जो कि आज इंटरनेट का अभिन्न अंग है जिसे विश्व में एक अरब से अधिक लोग उपयोग करते हैं। अकेले भारत में लगभग 350 मिलियन लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 के अंत तक यह आंकड़ा 447 मिलियन तक पहुंच जायेगा।
वर्ष 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के लोग औसतन 2.4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। फिलिपिंस के लोग 4 घंटे और सबसे कम जापान के लोग औसतन केवल 45 मिनट सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं परन्तु जिस प्रकार भारत में इसका प्रयोग बढ़ता जा रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब हम इस क्षेत्र में नम्बर वन होंगे, परन्तु वहां तक पहुंचने को हम क्या कुछ खो चुके होंगे इसका अनुमान लगना संभव नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार से हमारे देश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का दुरूपयोग हो रहा है उससे लगता है कि हम बहुत तेजी से बर्बादी की ओर अग्रसर हैं। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि सोशल मीडिया का आवश्यकता से अधिक प्रयोग मस्तिष्क नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे लोग डिप्रेशन जैसी घातक बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त किस प्रकार लोगों के खून पसीने की कमाई लूटी जा रही है। उसे आप और हम आये दिन देख और सुन रहे हैं। हेट स्पीच और फेक न्यूज के द्वारा समाज को तोड़ने का काम किया जा रहा है। आपका निजी डाटा किसी भी समय चोरी हो सकता है। आपकी गोपनीय जानकारियां सुरक्षित नहीं हैं। साईबर अपराध जैसे हैकिंग और फिशिंग का खतरा बना रहता है। साईबर क्राईम करने वाले ऐसे उपयोगकर्ताओं की तलाश में रहते हैं जिन्हें आसानी से फंसाया जा सके इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव एक और पहलू भी है हमारा देश भारत विभिन्न जाति सम्प्रदाय और धर्मों के ताने बाने में बुना विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अनेकता में एकता हमारी विशेषता है परन्तु सोशल मीडिया पर सबसे अधिक हमारा साम्प्रदायिक सौहार्द ही निशाने पर है। जाति, धर्म के नाम पर देश की अखंडता को खंड खंड किया जा रहा है।
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राजनैतिक दलों के द्वारा बनाए गए आईटी सेल पार्टी के राजनैतिक लाभ के लिये किसी हद तक जाने को तैयार हैं। धर्म और जाति के नाम पर फैलाई जा रही नफरत ने हमारे सामाजिक ताने बाने को तार-तार कर के रख दिया है। हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता की बात करने वालों को सोशल मीडिया पर पिछड़े हुए पुराने लोगों की सोच की तरह परोसा जा रहा है। अभद्रभाषा, अश्लीलता हमारी नौजवान पीढ़ी के जीवन में घोली जा रही है। पश्चिमी सभ्यता की ओर हमारी नई पीढ़ी को धकेला जा रहा है। एक प्रकार से देखें तो हमारी सामाजिक व्यवस्था पर पश्चिमी देश का कब्जा हो चुका है। आज भारत में रहने वाले भारतीय ही हिंदी जो कि हमारी मातृभाषा है इसे छोड़ते जा रहे हैं। देश में शिक्षा का स्तर बहुत कम है इसी के कारण सोशल नेटवर्किंग साईट से परोसी गई सामग्री का दुष्प्रभाव अधिक पड़ रहा है। अधिकांश लोग झूठी व सच्ची खबर के अंतर को समझ नहीं पाते, साईबर क्राईम का शिकार हो जाते हैं। इनके स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से बेखबर हैं। हमारे देश में इंटरनेट, सोशल मीडिया, गूगल, यूट्यूब जैसे सभी साईट्स को बच्चों को स्कूलों में सबजेक्ट के रूप में पढ़ाने की आवश्यकता है इसके अतिरिक्त सूचना प्रौद्योगिक विभाग को इस पर विशेष रूप से संज्ञान लेना होगा लोग तो सोशल मीडिया सोशल नेटवर्किंग साईट से होने वाले दुष्प्रभाव के लिये जागृत करना होगा यदि समझें तो यह अपने बच्चे अपना घर अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपना देश बचाने के लिये देशभक्ति की लड़ाई है जिसे सबको मिलकर लड़ना होगा।
लेखक संजीव शर्मा, अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति दिल्ली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।
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