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कृषि नीति सफल हो, इसके लिए नीति निर्माण में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी

आजादी के बाद से अब तक जो भी सरकारें आई हैं। किसानों की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ अवश्य किया है। बावजूद इसके आजादी के छिहत्तर साल बाद भी किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि सरकारें कृषि सम्बंधी नीतियां बनाने में किसानों को शामिल नहीं करतीं। किसानों की […]

Edited By : Prabhakar Kr Mishra | Updated: Aug 19, 2023 15:47
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आजादी के बाद से अब तक जो भी सरकारें आई हैं। किसानों की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ अवश्य किया है। बावजूद इसके आजादी के छिहत्तर साल बाद भी किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि सरकारें कृषि सम्बंधी नीतियां बनाने में किसानों को शामिल नहीं करतीं।

किसानों की स्थिति सुधारने के लिए केंद्र सरकार 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई थी। उन कानूनों से किसान इतने सशंकित थे कि उन्होंने तय कर लिया कि चाहे जो हो जाए कानून लागू नहीं होने देंगे। सरकार समझाती रही, किसान विरोध करते रहे और अंत में सरकार को उन कानूनों को वापस लेना पड़ा। कृषि क़ानूनों की समझ रखने वाले एक्सपर्ट और कुछ किसान संगठनों के नेता भी मानते हैं कि उन क़ानूनों में सभी प्रावधान गलत नहीं थे, लेकिन जिस ढंग से सरकार जल्दबाजी में अध्यादेश के जरिए कानून लेकर आई, किसानों के मन में शंका के बीज बो दिए थे। दिल्ली की सीमा पर सालभर से अधिक चले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान किसान बार बार यह आरोप लगाते थे कि यह कानून कॉरपोरेट को फ़ायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है। कानून लाने से पहले किसान संगठनों से राय नहीं ली गई।

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आंदोलन खत्म होने के करीब दो साल बाद अब जो जानकारी सामने आई है उससे किसानों के वो आरोप सच साबित हो रहे हैं कि ये कृषि क़ानून कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए, उनके परामर्श से लाया गया था। कानून लाने से पहले अर्थशास्त्रियों और किसान प्रतिनिधियों से सलाह लेने की जरूरत तक महसूस नहीं की गई थी।

पत्रकारों का समूह ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने अपनी रिपोर्ट में चौकाने वाला खुलासा किया है कि एक सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल, जिसका कृषि से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था, उसकी सलाह पर ऐसी नीति बनी थी जिसमें कृषि के निगमीकरण (कॉर्पोरेटाइजेशन ) पर ज़ोर दिया गया था। शरद मराठे नाम के एक सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल जो अमेरिका में सॉफ्टवेयर कम्पनी चलाते हैं। उन्होंने राय दी कि किसानों की आय दुगुनी करनी है तो खेती को बाज़ार से जोड़ना होगा। इसके लिए मार्किट ड्रिवेन एग्री- लिंक्ड मेड इन इंडिया से इनकम बढ़ानी होगी। भारत में किसानों की आय दुगुनी करने का यह आईडिया एक ऐसा व्यक्ति दे रहा था जो पिछले 60 साल से इंडिया से बाहर है, जिसे यहां की जमीनी हक़ीक़त से कोई तालुक नहीं है।

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2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दुगुना करना चाहती है। ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की रिपोर्ट के मुताबिक शरद मराठे जो बीजेपी और प्रधानमंत्री से बहुत प्रभावित थे, उन्होंने तुरत अपना आईडिया नीति आयोग को प्रेषित कर दिया। शरद मराठे का मौजूदा बीजेपी सरकार में अच्छी पैठ है इसलिए नीति आयोग ने न केवल उनके आईडिया को तवज्जो दिया बल्कि किसानों की आय दुगुनी करने का उपाय सुझाने के लिए जब टास्क फोर्स का गठन किया तो आईडिया देने वाले शरद मराठे को भी उसका सदस्य बनाया गया। टास्क फोर्स का फोकस स्पष्ट था कि किसानों की आय दुगुनी करने के लिए एग्रीकल्चर का कॉर्पोरेटाइजेशन करना होगा। इसलिए टास्क फोर्स ने कॉरपोरेट जगत के उन लोगों से बात की जिनकी एग्रीकल्चर प्रोडक्ट में रुचि थी। अडानी ग्रुप, महिंद्रा ग्रुप, पतंजलि और आईटीसी जैसे कॉरपोरेट्स से राय मशविरा हुआ। और क़ानून बना दिया गया। इस बीच टास्क फोर्स ने कृषि क्षेत्र से जुड़े किसी एक्सपर्ट अर्थशास्त्री और किसान प्रतिनिधियों से विमर्श की कोई जरूरत नहीं समझी।

प्रधानमंत्री मोदी ने जब कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी तब उन्होंने कहा था ‘मैं देशवासियों से क्षमा माँगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूँ कि शायद हमारी तपस्या में कोई कमी रह गयी होगी जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए…।’ प्रधानमंत्री की तपस्या में कोई कमी नहीं रही थी। कमी बस यही थी कि जिन किसानों के लिए क़ानून लाया जा रहा था उनसे कोई विचार विमर्श नहीं किया गया। विमर्श हुआ होता तो शायद कृषि क़ानूनों में कुछ किसानों की बात भी शामिल हुई होती। किसानों की चिंताओं का भी निवारण हुआ होता। फिर तो न विरोध होता, न आंदोलन की जरूरत होती। न साढ़े सात सौ किसानों को शहादत देनी पड़ती और न ही कृषि क़ानूनों को वापस लेना पड़ा होता। यह घटना सरकारों के लिए सीख है कि किसानों के लिए नीति बनाते समय किसानों से, उनके प्रतिनिधियों से विमर्श किया जाना जरूरी है। तभी किसानों के लिए बनायी गयी कृषि नीति सफल हो पाएगी और किसानों की स्थिति बदलेगी।

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Edited By

Prabhakar Kr Mishra

First published on: Aug 19, 2023 02:06 PM

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