महराणा सांगा अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में मेवाड़ के शासक बने। कम उम्र में मेवाड़ की जिम्मेदारी उन्हें मिल गई थी। राणा सांगा को मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे ज्यादा प्रतापी योद्धा माना जाता था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने अपने जीवनकाल में 100 से भी ज्यादा युद्ध लड़े, जिसमें उन्हें अपना एक हाथ और आंख तक गंवानी पड़ी। राणा सांगा को युद्ध में लगातार मिली जीत के कारण ‘हिंदूपत’ की उपाधि दी गई थी। बताया जाता है कि राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों के साथ 18 युद्ध लड़े थे, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी।
कौन थे राणा सांगा?
राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के शासक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राणा रायमल था। महाराणा संग्राम सिंह, सोलहवीं शताब्दी में शासन करने वाले मशहूर राजपूत राजा थे। लोग उनको राणा सांगा के नाम से भी जानते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने 20 सालों तक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य मेवाड़ पर शासन किया था। राणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत के लोधियों और मुगल शासकों के खिलाफ युद्ध लड़े।
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जंग में खोए शरीर के अंग
राणा सांगा ने अपने जीवनकाल में 100 से ज्यादा जंग लड़ी थी, लेकिन उनको बहुत कम बार ही हार का सामना करना पड़ा। इन सभी लड़ाइयों में उन्होंने अपने शरीर के अंग खो दिए। राणा की एक आंख, एक हाथ और एक पैर काम नहीं करता था। जानकारी के मुताबिक, उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घाव के निशान थे। मेवाड़ में राणा सांगा का शासन आने के बाद इसकी सीमाएं दूर-दूर तक फैल गईं। जिसमें आगरा और दक्षिण में गुजरात की सीमा तक मेवाड़ की सीमा थी। राजपूताना इतिहास के विद्वान कर्नल जेम्स टाड के मुताबिक, महाराणा संग्राम सिंह के पास 80,000 घोड़े, 500 हाथी और 2 लाख पैदल सैनिकों की सेना थी।
हालांकि, राणा सांगा को उनके भाई पृथ्वीराज की मौत के बाद ही मेवाड़ की गद्दी मिली थी। बताया जाता है कि उनके भाई ने ही उनको अपने रास्ते से हटाने के लिए राणा सांगा की एक आंख फोड़ दी थी। इस दौरान पृथ्वीराज गद्दी पर बैठे। जब पृथ्वीराज की मृत्यु हुई, तब राणा सांगा ने 1508 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे।
क्या बाबर को राणा सांगा ने बुलाया?
अभी इस बात पर बहस छिड़ गई है कि बाबर को भारत बुलाने वाले राणा सांगा थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबर ने अपने प्रतिद्वंद्वी इब्राहिम लोदी के खिलाफ गठबंधन की उम्मीद में खुद ही राणा सांगा से राब्ता किया था। हालांकि, राणा सांगा शुरू में इसके लिए तैयार थे, लेकिन बाद में मेवाड़ दरबार में अपने सलाहकारों के प्रतिरोध के चलते उन्होंने अपने कदम पीछे ले लिए थे।
इब्राहिम लोदी से जंग
दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के नेतृत्व वाले लोदी वंश और राणा सांगा के नेतृत्व वाले मेवाड़ साम्राज्य के बीच 1517 में खतोली का युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी को बुरी तरह से शिकस्त दी थी। इसके बाद इब्राहिम लोदी ने दोबारा 1518-19 में हमला करने की कोशिश की, जिसमें एक बार फिर से वह राणा सांगा से हारा था। यह युद्ध राजस्थान के धौलपुर में हुआ था, जिसमें इब्राहिम लोदी उल्टे पैर भाग खड़ा हुआ था।
महमूद खिलजी द्वितीय से जंग
सन 1519 में राणा सांगा की मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय से जंग हुई। यह जंग ईडर और गागरोन में हुई, जिसमें भी राणा सांगा को ही जीत मिली थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान उन्होंने महमूद को 2 महीने तक बंधक बनाकर रखा था। जब महमूद ने उनसे माफी मांगी और दोबारा हमला न करने की बात कही, तब उन्होंने महमूद को छोड़ दिया था। आपको बता दें कि वर्तमान में राणा सांगा के वंशज उदयपुर पूर्व राजघराने के सदस्य हैं। हाल ही में उनके वंशज में से एक अरविंद सिंह मेवाड़ की मौत हुई है।
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