भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के कारण गुरुवार रात 8 मई को देश के 15 से ज्यादा शहरों में ब्लैकआउट कर दिया गया। रात में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से लेकर गुजरात के भुज और पंजाब-हरियाणा के कई शहरों तक लाइटें बुझा दी गईं। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि भारतीय सेना पाकिस्तान की तरफ से आ रहे ड्रोन और मिसाइल हमलों का जवाब दे रही थी। ब्लैकआउट करने का मकसद यह था कि दुश्मन के जहाज या मिसाइल जमीन पर मौजूद लोगों, इमारतों या जरूरी ठिकानों को आसानी से न देख सकें और उन पर हमला न कर सकें। इस तरह से अंधेरा करके दुश्मन को निशाना तय करने में परेशानी होती है, जिससे जान-माल की हानि से बचा जा सके।
ब्लैकआउट क्या होता है?
ब्लैकआउट का मतलब होता है किसी इलाके में सभी तरह की रोशनी को बंद कर देना या बहुत कम कर देना। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि रात के समय दुश्मन के जहाजों को निशाना बनाने में मुश्किल हो। यह नागरिक सुरक्षा का एक तरीका होता है, जिसमें आम लोग भी अपनी सुरक्षा में मदद करते हैं। 7 मई को देश के 244 जिलों में ब्लैकआउट का अभ्यास कराया गया। इसका मकसद यह था कि लोगों को यह सिखाया जा सके कि अगर कोई हमला हो तो उन्हें क्या करना चाहिए।
ब्लैकआउट से क्या फायदा होता है?
गृह मंत्रालय के डायरेक्टरेट जनरल सिविल डिफेंस की एक गाइडलाइन के अनुसार, यह जरूरी है कि सामान्य मौसम में जमीन से 5,000 फीट ऊपर तक कोई रोशनी न दिखे। इस तरह का ब्लैकआउट दुश्मन के पायलट को भी मुश्किल में डालता है। अंधेरे में उसे निशाना तय करना मुश्किल हो जाता है, जिससे उसकी चिंता बढ़ जाती है।
ब्लैकआउट कैसे लागू किया जाता है?
सड़क की लाइटें कम कर दी जाती हैं और उनकी चमक भी घटा दी जाती है, ताकि रोशनी जमीन पर न पड़े। इमारतों में भी ध्यान रखा जाता है कि बाहर से जो रोशनी दिखे, वह एक छोटे दीये या लालटेन जितनी ही हो। फैक्ट्रियों और बड़े ऑफिस बिल्डिंग्स के लिए ‘क्रैश ब्लैकआउट’ का नियम होता है, जिसमें अचानक सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं। इससे दुश्मन को किसी इमारत या इलाके को पहचानने में परेशानी होती है। यह सब मिलकर देश के नागरिकों और इमारतों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत सुरक्षा उपाय बनाता है।