SC criticized comment of Calcutta HC: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कलकत्ता हाई कोर्ट की उस टिप्पणी पर कड़ी आलोचना की, जिसमें युवा लड़कियों से ‘यौन आग्रह पर नियंत्रण’ रखने और क्षणिक आनंद के लिए तैयार नहीं रहने को कहा गया था। इस दौरान जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायाधीशों को व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने या उपदेश देने से बचना चाहिए।
दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील के संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की भूमिका अपील की योग्यता का आकलन करने तक सीमित थी। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत राय व्यक्त करना या नैतिक उपदेश देना ऐसे मामलों में अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हाई कोर्ट की टिप्पणियां संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन हैं। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया।
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यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने की दी थी सलाह
कार्यवाही के दौरान, राज्य सरकार ने यह निर्णय लेने के लिए समय का अनुरोध किया कि फैसले के खिलाफ अपील की जाए या नहीं। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्याय मित्र नियुक्त किया गया तथा अधिवक्ता लिज मैथ्यू न्याय मित्र की सहायता करेंगी। जस्टिस चित्तरंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन द्वारा दिए गए विवादास्पद उच्च न्यायालय के फैसले में एक नाबालिग के साथ बलात्कार के दोषी व्यक्ति को बरी करते हुए युवा लड़कियों और लड़कों को अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने की सलाह दी गई थी।
सत्र अदालत के फैसले को किया रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह युवा लड़कियों का कर्तव्य है कि वे ‘अपने शरीर की अखंडता, गरिमा और आत्म-सम्मान के अधिकार’ की रक्षा करें। साथ ही लड़कों को लड़कियों की गरिमा का सम्मान करना चाहिए और अपने दिमाग को महिलाओं का सम्मान करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत के फैसले को रद्द कर दिया और कम उम्र में यौन संबंधों से होने वाली कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए स्कूलों में यौन शिक्षा का आह्वान किया है।