Supreme Court News: (प्रभाकर मिश्रा) सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों (प्राइवेट प्रॉपर्टी) को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है। मतलब आपकी निजी संपत्ति को कोई सरकार जबरन नहीं ले सकती। हां, कुछ निजी संपत्ति सामुदायिक संपत्ति हो सकती हैं, जिसका समाज की भलाई के लिए सरकार अधिग्रहण कर सकती है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत सार्वजनिक संपत्ति नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने अपने तीन हिस्सों में बंटे फैसले में कहा कि निजी संपत्ति किसी समुदाय की सामुदायिक संपत्ति हो सकती है। लेकिन किसी व्यक्ति के मालिकाना हक वाली हर संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कहा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस सुधांशु धुलिया, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि तीन फैसले हैं। एक मेरे द्वारा, और 6 अन्य लोगों के लिए। दूसरा जस्टिस नागरत्ना का, जो आंशिक रूप से सहमत हैं और तीसरा जस्टिस सुधांशु धूलिया का, जिन्होंने असहमति जताई है।
बता दें कि 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति के हर निजी संसाधन को सामुदायिक संपत्ति मानना अस्वाभाविक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इससे निवेशक भी डर जाएंगे, जो उन्हें मिलने वाली सुरक्षा के स्तर से चिंतित हो सकते हैं।
बता दें कि कोर्ट का ये फैसला कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी और अन्य के मामले में 1978 के फैसले में दो जजों के विचारों के संदर्भ में आया है। 1978 का फैसला रोड, ट्रांसपोर्ट सेवाओं के राष्ट्रीयकरण से जुड़ा था। इसके एक फैसले में जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर की राय थी कि सामुदायिक संपत्तियों में प्राकृतिक और मानव निर्मित के साथ सार्वजनिक और प्राइवेट स्वामित्व वाले दोनों तरह के संसाधन शामिल होंगे। जस्टिस अय्यर ने कहा था कि सभी तरह के निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।
हालांकि दूसरे फैसले में जस्टिस एनएल उंटवालिया ने कहा था कि अधिकांश जज, जस्टिस अय्यर द्वारा अनुच्छेद 39बी के संबंध में दिए गए दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। जस्टिस अय्यर के रुख को 1982 के संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड एवं अन्य के मामले में पुष्ट किया गया था।