Laxman Rao: जिंदगी में कई बार आप जो चाहते हैं वो उस वक्त मिलती है जब आप उसकी उम्मीद छोड़ने लगते हैं। आपके हिस्से वो सारी चीजें आती तो हैं, आपके मन के हिसाब से चीजें होती भी हैं लेकिन उसके बदले में समय आपसे बहुत कुछ वसूल लेता है। ये कहानी एक ऐसे लेखक की है जिसके ऊपर एक ही धुन सवार थी- किताब लिखने की। वो किताब लिख तो देते हैं मगर इसके पीछे जो कहानी है वो भी किसी किताब से कम नहीं है।
चाय बेचने वाला ‘शेक्सपियर’
कोई उन्हें चायवाला साहित्यकार कहता है तो कोई चाय बेचने वाले ‘शेक्सपियर’ के नाम से जानता है। ये कहानी है दिल्ली के आईटीओ इलाके में सड़क किनारे चाय की एक छोटी सी स्टॉल लगाने वाले लक्ष्मण राव की। वह सड़क किनारे बैठकर अब तक 25 किताबें लिख चुके हैं। किताब लिखने की धुन उन्हें महाराष्ट्र के अमरावती जिले से दिल्ली तक ले आई।
भोपाल में की मजदूरी
आठवीं तक की पढ़ाई के बाद गरीबी ने उन्हें नौकरी की चिमनी में धकेल दिया। लेकिन अफसोस जिस राइस मिल में काम करते थे वो एक दिन बंद हो गया। यहीं से लक्ष्मण राव की जिंदगी में एक नया किस्सा शुरू हुआ। कुछ दिनों के लिए मध्य प्रदेश का भोपाल शहर उनका एक पड़ाव बना। जहां कुछ दिन उन्होंने मजदूरी की। इसके बाद उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया।
62 साल की उम्र में किया एमए
लक्ष्मण राव की लड़ाई खुद से थी। उन्हें खुद को हराना था और खुद से ही जीत हासिल करनी थी। इन सारी बातों में वक्त तो जरूर लगा लेकिन वो सब पूरा भी हुआ। वरना 50 साल की उम्र में 12वीं और 62 साल में हिन्दी से एमए की डिग्री हासिल करना किसी बुजुर्ग के लिए मामूली बात नहीं है। लक्ष्मण राव के लिए ये सिर्फ उपलब्धि ही नहीं, उनकी जीत है।
ढाबे पर बर्तन तक साफ किए
लक्ष्मण राव ने खुद को नए तरीके से स्थापित करने के लिए क्या-क्या नहीं किया। मजदूरी से लेकर ढाबे पर बर्तन साफ करने का काम फिर पान की दुकान और जब गुटखे पर प्रतिबंध लगा तो शुरू की चाय की स्टॉल। जिंदगी ने उन्हें जिन-जिन रास्तों से गुजरने को कहा, वो मुस्कुराकर गुजरते रहे। आगे उनके सपनों की मंजिल भी मिली। दर-दर की ठोकरों के बाद उनके नाम से अब तक 25 किताबें छप चुकी हैं।
मिल चुका है राष्ट्रपति सम्मान
शब्दों की दुनिया बड़ी विचित्र होती है। लक्ष्मण राव इस दुनिया में खुद को स्थापित कर रहे थे। गुलशन नंदा को पढ़ते हुए गुलशन नंदा बन जाने की लड़ाई बहुत मामूली नहीं थी। लेकिन हिम्मत वाला वही होता है जो अपनी लड़ाई के लिए सब कुछ झोंक देता है। लक्ष्मण राव ने यही किया। लक्ष्मण राव को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
तमरा रेस्टोरेंट में जॉब
फिलहाल 71 साल की उम्र में लक्ष्मण राव दिल्ली के सबसे बड़े फाइव स्टार होटल संग्रीला के तमरा रेस्टोरेंट में बतौर टी कंसल्टेशन काम करते हैं। यहां उनकी लिखी हुई सभी किताबों का संग्रह है। जो भी यहां चाय पीने आता है, वह उनकी किताबों को जरूर पढ़ता है।