Odisha Mayurbhanj Chhattisgarh Jharkhand Red ants chutney eaten got GI tag: इस समय लाल चींटियों की चटनी बहुत चर्चा में है। इसकी वजह इसे जीआई टैग मिलना है। भारत के कई राज्यों में इसे लोग चटखारे लेकर खाते हैं। अपने स्वाद की वजह से यह बहुत पसंद की जाती है। ओडिशा की यह लाल चींटी चटनी बहुत फेमस हो गई है। इसे लाल बुनकर चींटियों से बनाया जाता है, जिसे सिमिलिपाल काई चटनी कहा जाता है। ओडिशा के मयूरभंज जिले के आदिवासी इसे बहुत पसंद करते हैं और यह वहां का पारंपरिक भोजन है। यह चींटी सिमिलिपाल जंगल और मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती है। माना जाता है कि यह स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
कुछ लोग लाल चींटी की चटनी सुनकर हैरान हो सकते हैं लेकिन यह सच है। ओडिशा के अलावा यह चटनी झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच काफी फेमस है। इसे जिओग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग मिला है। जीआई टैग को हिंदी में भोगोलिक संकेत कहते हैं।
ये भी पढ़ें-Noida: 6 महीने की बेटी गोद में ली और 16वीं मंजिल से कूद गई, क्यों महिला ने ऐसे मौत को गले लगाया?
क्या हैं इसके फायदे
चींटियों की इस चटनी में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, जिंक, प्रोटीन, आयरन और विटामिन बी-12 मिलता है। इसी वजह से इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। इसमें मैग्नीशियम और पोटैशियम भी अच्छी मात्रा में होता है। वहां के लोगों का मानना है कि इससे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का अच्छा विकास होता है। यह चटनी खांसी, फ्लू और सर्दी में भी बहुत फायदेमंद होती है। लोगों का माना है कि पोषक तत्वों से भरपूर इस चटनी से थकान भी कम होती है।
कैसे बनती है ये चटनी
चींटियों की यह चटनी बहुत मसालेदार और चटपटी होती है। इसे चपना और काई चटनी भी कहा जाता है। इसे सीलबट्टे पर पीसकर बनाया जाता है। इसे बनाने में चींटियों के अंडे का भी इस्तेमाल होता है। चटनी बनाने के लिए पहले चींटियों को लाकर साफ किया जाता है। इसके बाद उन्हें सुखाया जाता है। चटनी पीसने के बाद उसमें स्वाद बढ़ाने के लिए नमक, मिर्च, लहसुन और अदरक मिलायी जाती है।
ये भी पढ़ें-Ram Mandir Inauguration: नेपाल से आए 21000 पुजारी करेंगे खास काम, जानें क्या है तैयारी