Rawatpura Sarkar: रावतपुरा सरकार मेडिकल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की मान्यता के मामले में CBI ने 35 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। इसमें मप्र के चर्चित संत और रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन रविशंकर महाराज का भी नाम है। उनके खिलाफ कॉलेज को मान्यता देने और सीटें बढ़ाने के लिए नेशनल मेडिकल काउंसिल को रिश्वत देने का आरोप दर्ज किया।
एमपी के भिंड जिले में रावतपुरा सरकार मंदिर स्थित है। रावतपुरा सरकार को रविशंकर महाराज भी कहा जाता है। रावतपुरा गांव के पास ही इनका आश्रम है। उन्हें “रावतपुरा सरकार” के नाम से प्रसिद्धि मिली है। वर्तमान में रविशंकर श्री रावतपुरा सरकार लोक कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक हैं। आए दिन उनके आश्रम में बड़ी राजनीतिक हस्तियों का आना लगा रहता है। बाबा अपने को स्वयं भू भी बताते हैं।
9 साल की उम्र में छोड़ा घर
रविशंकर महाराज का जन्म 5 जुलाई 1968 को मप्र के टीकमगढ़ जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम कृपाशंकर शर्मा और माता का नाम रामसखी शर्मा है। जानकारी के अनुसार, माता-पिता रविशंकर को पुरोहित का काम सिखाना चाहते थे। रामराजा संस्कृत विद्यालय ओरछा में रविशंकर का एडमिशन तक करवा दिया था। लेकिन उनका मन नहीं लगा। रविशंकर ने महज 9 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। भिंड जिले के रावतपुरा गांव के प्राचीन हनुमान मंदिर चले गए।
रविशंकर ने ऐसे बनाया साम्राज्य
बताया जाता है कि भिंड रावतपुरा के हनुमान मंदिर में रविशंकर महाराज को सिद्धि प्राप्त हुई। साल 2000 में रविशंकर ने रावतपुरा सरकार लोक कल्याण ट्रस्ट बनाया। इस ट्रस्ट के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कई स्कूल, कॉलेज और अस्पताल भी हैं। साल 2005 में बाबा ने अपने आश्रम का नाम रावतपुरा सरकार धाम कर दिया। इसके बाद से रविशंकर ने आश्रम ने कई आध्यत्मिक गतिविधियां कराईं। बाद में छत्तीसगढ़ में साल 2018 में रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी बनाई गई। इसके अलावा रावतपुरा के कई आश्रम, इंस्टीट्यूट, संस्कृत स्कूल, ब्लड बैंक, नर्सिंग, फार्मेसी कॉलेज, वृद्धाश्रम जैसी इकाई हैं।
महिला भक्त भी कर चुकीं हैं शिकायत
बाबा पहली बार विवादों में नहीं घिरे हैं। साल 2023 में एक महिला भक्त ने ग्वालियर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में बताया था कि आश्रम में सेवा के नाम पर लेबरों की तरह काम कराया जाता है। इतना ही नहीं, महिलाओं को निजी बातचीत के लिए मजबूर किया जाता था। विरोध करने पर मानसिक प्रताड़ना दी जाती थी। मामले में मानवाधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेकर जांच के आदेश दिए थे।