Manipur Violence: मणिपुर में एक बार फिर भीड़ ने सुरक्षा बलों को निशाना बनाया है। इस बार सेना की दो बसों को रोककर उनमें आग लगा दी गई। अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि सुरक्षा बलों को ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दो बसों को मणिपुर के कांगपोकपी जिले में भीड़ ने आग लगा दी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, घटना में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। यह घटना सपोरमीना में उस समय घटी जब बसें मंगलवार शाम दीमापुर से आ रही थीं। अधिकारियों ने कहा कि मणिपुर में हिंसा में शामिल दो समुदायों में से एक समुदाय के लोग भीड़ के रूप में आए और मणिपुर रजिस्ट्रेशन वाली दो बसों को सपोरमीना में रोक दिया।
अधिकारियों के मुताबिक, भीड़ की ओर से कहा गया कि वे बस की जांच करेंगे कि कहीं दूसरे समुदाय का कोई सदस्य बस में सवार तो नहीं है। इसके बाद भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने बस में आग लगा दी।
24 जून को भी भीड़ ने सुरक्षा बलों को बनाया था निशाना
इससे पहले मणिपुर में 24 जून को सुरक्षा बलों को भीड़ ने अपना निशाना बनाया था। भारतीय सेना की स्पीयर कोर की ओर से कहा गया था कि सुरक्षा बलों की टीम को शनिवार (24 जून) को इथम गांव में भीड़ ने घेर लिया। महिलाओं के नेतृत्व वाली 1200 से 1500 लोगों की संख्या वाली भीड़ ने गिरफ्तार किए गए 12 उग्रवादियों को छोड़ने के लिए मजबूर किया।
स्पीयर कॉर्प्स ने ट्विटर पर ऑपरेशन का विवरण दिया और बताया कि इसे विशिष्ट खुफिया जानकारी के आधार पर लॉन्च किया गया था। मणिपुर के इथम गांव में शुरू किए गए एक ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों ने कांगलेई यावोल कन्ना लूप (KYKL) विद्रोही समूह के 12 कैडरों को गिरफ्तार किया था।
सेना ने कहा कि इतनी बड़ी भीड़ को देखने के बाद और संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए पकड़े गए सभी 12 उग्रवादियों को स्थानीय नेता को सौंपने का निर्णय लिया। इसके बाद भीड़ हटी तो सुरक्षाबल वहां से निकले। सुरक्षाबल के मुताबिक, विद्रोहियों से बरामद किए गए हथियारों को जब्त कर लिया गया।
3 मई को मणिपुर में भड़की थी हिंसा
लगभग तीन महीने पहले पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा भड़की थी, तब से अब तक 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं।
मैइेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को हिंसा भड़की थी।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।