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शरद पवार किस तरह बने महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े बाजीगर?

Maharashtra Politics: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद ईवीएम पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि क्या नवंबर में एक बार फिर EVM पर सवाल उठने जा रहे हैं?

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Oct 10, 2024 18:22
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sharad pawar
Sharad Pawar (File Photo)

विजय शंकर

हरियाणा के चुनावी नतीजों के बाद Electronic Voting Machine (EVM) को लेकर एक नई थ्योरी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि जहां EVM 90 परसेंट चार्ज थी- वहां नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए। जहां EVM कम चार्ज थी, वहां नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए। ज्यादातर चुनावी नतीजों के बाद EVM पर सवाल उठना कोई बड़ी बात नहीं है। कभी बीजेपी विपक्ष में हुआ करती थी तो बीजेपी के दिग्गज नेता EVM पर सवाल उठाया करते थे। अब यही काम कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी नेता कर रहे हैं, लेकिन इसी EVM ने कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस को बड़ी जीत दिलाई।

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क्या फिर उठेंगे ईवीएम पर सवाल?

इसी EVM से हुई वोटिंग से आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है। इसी EVM से हुई वोटिंग के तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस, तमिलनाडु में एमके स्टालिन की सरकार है। अब सवाल उठ रहा है कि आगे क्या? जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के बाद अब महाराष्ट्र और झारखंड के लोगों को वोट की चोट से फैसला सुनाना है। वहां भी लोग EVM का बटन दबाकर लोग सरकार चुनेंगे। क्या नवंबर में फिर ईवीएम में हेराफेरी का मुद्दा सेंटरस्टेज पर आएगा?

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महाराष्ट्र की राजनीति का अतीत क्या?

अभी तो महाराष्ट्र में चुनावी बयार चल रही है। जिसमें हर महारथी अपने लिए बेहतर सत्ता समीकरण बनाने के लिए दांव-पेंच अजमा रहा है? ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि महाराष्ट्र में बाजी पलटने का खेल किस तरह से होता रहा है? बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना कहां से कहां पहुंच गई? चढ़ाव और उतार के बीच शरद पवार किस तरह महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े बाजीगर बने? वहां की राजनीति को गिनती के खानदान किस तरह कंट्रोल करते रहे हैं? महाराष्ट्र पॉलिटिक्स के अतीत के पन्नों को पलटते हुए ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

गांधीजी के आंदोलन का केंद्र रहा महाराष्ट्र 

महाराष्ट्र के चुनावी अखाड़े की गर्मी और दांव-पेंच को समझने के लिए वहां की आबोहवा से निकले दिग्गजों की कार्यशैली को समझना होगा। महाराष्ट्र की मिट्टी पर बाजी पलटने का खेल हमेशा चलता रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने खास युद्ध कौशल से न सिर्फ मुगलों को दक्षिण में रोका बल्कि मुगलिया सल्तनत की नाक में हमेशा दम किए रहे। मराठा साम्राज्य का झंडा लिए पेशवा लड़ते हुए पंजाब तक पहुंच गए। आजादी की लड़ाई में महाराष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानियों ने बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म भी महाराष्ट्र की धरती पर हुआ। महात्मा गांधी के आंदोलन का बड़ा केंद्र भी महाराष्ट्र रहा।

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महाराष्ट्र की मिट्टी ने पैदा किए ‘रत्न’

इसी मिट्टी में विनोवा भावे भी पैदा हुए और विनायक दामोदर सावरकर भी। समाज सुधारक ज्योतिबा फुले भी और डॉक्टर बी.आर. अंबेडकर भी। बाल गंगाधर तिलक भी और नानाजी देशमुख भी। महाराष्ट्र की मिट्टी ने एक से बढ़कर एक रत्न दिए। जिन्होंने संघर्ष के रास्ते समाज को जोड़ने और आगे बढ़ाने में अपनी पूरी जिंदगी खपा दी, लेकिन महाराष्ट्र की सियासी राजनीति कैसी रही है– इसे समझने के लिए कैलेंडर को पीछे पलटते हुए साल 1960 पर ले जाना होगा। इसी साल भाषा के आधार पर बॉम्बे प्रांत से निकलकर महाराष्ट्र अलग राज्य के रूप में वजूद में आया। मुख्यमंत्री बने- यशवंत राव चव्हाण। ऐसे में सबसे पहले ये समझते हैं कि आखिर महाराष्ट्र एक अलग राज्य कैसे बना और वहां की राजनीति में किन परिवारों का दबदबा रहा है।

शरद पवार- राजनीति के चाणक्य 

वैसे तो इस बार महाराष्ट्र के चुनावी अखाड़े में वहां के कई असरदार खानदानों की दूसरी या तीसरी पीढ़ी का मैदान में उतरना तय है, लेकिन वहां के दो बड़े परिवारों पर पूरे देश की नजर है। इसमें से एक है पवार परिवार और दूसरा ठाकरे परिवार, दोनों ही परिवार असली और नकली की लड़ाई में बुरी तरह उलझे हुए हैं। शरद पवार को महाराष्ट्र पॉलिटिक्स का चाणक्य कहा जाता है- लेकिन उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में दो फाड़ हो चुका है। उनके भतीजे अजित पवार अपने गुट को असली NCP बता रहे हैं। इसी तरह बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को उद्धव ठाकरे से एकनाथ शिंदे छिन चुके हैं। ऐसे में इस बार के चुनाव में उद्धव ठाकरे के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को असली और एकनाथ शिंदे गुट को नकली साबित करने की है। युवा पीढ़ी के अधिकतर लोगों को शायद नहीं पता होगा कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना का उदय किस तरह हुआ और मराठा पॉलिटिक्स में बाल ठाकरे कैसे बने सबसे बड़े बाजीगर?

बाला साहेब का नारा 

1960 के दशक में बाला साहेब ठाकरे अक्सर नारा लगाया करते थे- अंशी टके समाजकरण, बीस टके राजकरण’ मतलब 80 फीसदी समाज सेवा और 20 फीसदी राजनीति। शायद, इसी फलसफे ने उन्हें महाराष्ट्र पॉलिटिक्स में फौलाद की तरह स्थापित कर दिया। बाल ठाकरे ने हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की। वो अक्सर कहा करते थे कि सत्ता का हिस्सा नहीं बनना बल्कि सत्ता का रिमोट अपने हाथ में रखना है। उन्होंने पार्षद, विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन खुद कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे। महाराष्ट्र की राजनीति में दूसरे बड़े बाजीगर हैं- शरद पवार…जो छात्र राजनीति से होते हुए विधानसभा पहुंचे और सिर्फ 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गए।

जब कांग्रेस को मिला प्रचंड बहुमत 

पहली बार शरद पवार सिर्फ 580 दिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रह पाए। केंद्र में सत्ता का मिजाज बदल चुका था। इंदिरा गांधी की प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी हो चुकी थी। महाराष्ट्र में शरद पवार की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। महाराष्ट्र पॉलिटिक्स से निकले मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुके थे, तो यशवंतराव चव्हाण भी देश के रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री जैसी जिम्मेदारियां संभाल चुके थे। बात 1980 की है। राष्ट्रपति शासन के बीच महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला।

मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए आलाकमान यानी इंदिरा गांधी की पसंद बने एआर अंतुले, लेकिन कुछ समय के भीतर ही विवादों के बवंडर में अंतुले फंस गए और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिसलन बढ़ती गई। आठ साल में मुख्यमंत्री के सरकारी आवास वर्षा के बाहर पांच बाद नेमप्लेट बदली।

गिरा पवार की पॉलिटिक्स का ग्राफ

शरद पवार को राजनीति का एक ऐसा चतुर खिलाड़ी माना जाता है- जिनकी चाल समझने में बड़े-बड़े गच्चा खाते रहे हैं। 1980 में महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल होने के बाद पवार की पॉलिटिक्स का ग्राफ नीचे जा रहा था। तमाम कोशिशों के बाद भी वो कुछ खास नहीं कर पा रहे थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के सियासी हालात तेजी से बदले। सरकार और संगठन पर पूरी तरह राजीव गांधी का कंट्रोल हो गया। उधर, महाराष्ट्र में शिवसेना तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटी थी।

कहा जाता है कि ऐसे में राजीव गांधी ने शरद पवार को कांग्रेस में वापसी का ऑफर दिया। शायद मन ही मन पवार भी यही चाह रहे थे। महाराष्ट्र के कई कांग्रेसी नेताओं ने न चाहते हुए शरद पवार की पार्टी में दोबारा एंट्री हुई। कुछ महीने बाद शंकरराव चव्हाण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर राजीव सरकार में मंत्री बने। उनकी जगह पवार को महाराष्ट्र की कमान सौंप दी गई।

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Written By

Pushpendra Sharma

First published on: Oct 10, 2024 05:27 PM

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