दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
Lok Sabha Election 2024: चंद्रशेखर के पीएम पद से इस्तीफे के साथ ही देश में तीसरा मध्यावधि चुनाव तय हो गया था। आजादी के बाद साल 1991 में हुआ यह 10 वां आम चुनाव था। पीएम रहे वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दी थीं। मंदिर आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था। मंडल-कमंडल की राजनीति तेज हो चली थी। नतीजा यह हुआ कि देश में जातीय हिंसा और धार्मिक हिंसा जहर की तरह फैली हुई थी। धरण-प्रदर्शन, आगजनी एवं तोड़फोड़ आम हो चला था।
राजनीतिक दलों एवं नेताओं की महत्वाकांक्षाएं
पंजाब-कश्मीर में आतंकवाद के जड़ें गहरी हो चली थीं। आए दिन बम धमाके हो रहे थे। आम लोग मौत के मुंह में जा रहे थे। नॉर्थ-ईस्ट में भी कुछ न कुछ अलग तरह के बवाल चल रहे थे। देश के सामने आर्थिक संकट भी मुंह बाये खड़ा था। कहा जा सकता है कि यह वह समय था जब देश के घुप्प अंधेरे चौराहे पर खड़ा था और कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। राजनीतिक दलों एवं नेताओं की महत्वाकांक्षाएं अलग कुलांचे मार रही थी। सबको अपने दल की सरकार बनानी थी और हर बड़ा नेता प्रधानमंत्री बनने की फिराक में जोड़तोड़ में जुटा हुआ था।
फिर किसी दल को नहीं मिला बहुमत
भारत निर्वाचन आयोग ने देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी। यह चुनाव तीन चरणों में तय किये गए। एक ही चरण का मतदान हो पाया था तभी 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चुनावी रैली के दौरान आतंकवादी हमले में हत्या कर दी गई। इसके बाद चुनाव के बचे दो चरणों के लिए चुनाव को एक पखवारे के लिए स्थगित कर दिया गया। उसके बाद 12 जून और 15 जून को फिर से मतदान कराए गए। मतगणना के बाद जो स्थिति बनी, उसके मुताबिक किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला।
59 सीटों के साथ जनता दल तीसरे नंबर पर
232 सीटों पर विजय के साथ कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई। लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में बढ़त हासिल कर 120 सीटों को अपने कब्जे में किया। 59 सीटों के साथ जनता दल तीसरे नंबर की पार्टी बनकर सामने आयी। कुल 57 फीसदी लोगों ने इस चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस चुनाव में नौ राष्ट्रीय और 136 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपने कैंडीडेट खड़े किये।
पी.वी नरसिम्हा बने प्रधानमंत्री
इस आम चुनाव में कश्मीर की हिस्सेदारी नहीं थी। बिहार और यूपी की कुछ सीटों पर भी चुनाव नहीं कराए गए थे। पंजाब में फरवरी, 1992 में चुनाव कराए गए और कुल 13 सीटों में से 12 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। सबसे बड़ा दल होने के नाते पीवी नरसिम्हा ने कुछ सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। यह दूसरा मौका था जब कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार से अलग किसी नेता ने पीएम पद की शपथ ली थी। इसके पहले नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री पीएम बने थे।
नरसिम्हा ने पूरे पांच साल सरकार चलाई
अनेक विवादों के बावजूद नरसिम्हा राव ने पूरे पांच साल सरकार चलाई। उनके वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने देश में अनेक आर्थिक सुधार लागू किये, जिसका असर लंबे समय तक देखा गया। उन्होंने ही पूरी दुनिया के के लिए भारत के दरवाजे खोले थे। राव सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। उन्हीं के पीएम रहते हुए 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया था।
केंद्र ने भाजपा शासित चार राज्य सरकारें बर्खास्त कर लागू किया राष्ट्रपति शासन
मंडल-कमंडल आंदोलन के बीच भारतीय जनता पार्टी की जड़ें गहरी हो चली थीं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में उसकी अपनी सरकारें बन चुकी थीं। भाजपा नेता अटल, आडवाणी, जोशी देश के बड़े नताओं में शुमार थे। अयोध्या में जब विवादित ढाँचा कारसेवकों ने ढहाया तो शाम होते-होते यूपी में कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश में सुंदर लाल पटवा, राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत और हिमाचल प्रदेश में शांता कुमार की सरकार बर्खास्त कर दी गई। इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। देश एक बार फिर से दंगे की आग में चला गया। सरकारी मशीनरी कई बार फेल नजर आई। पर इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को हुआ। सरकारें बर्खास्त होने के बाद पार्टी ने इसकी हवा को अपने पक्ष में मोड़ लिया। जनता के बीच में कांग्रेस को खलनायक और खुद को नायक के रूप में स्थापित करना शुरू किया।
देश की आर्थिक स्थिति में सुधार
अनेक विवादों, संघर्षों के बीच जो एक बाद काम राव और मनमोहन सिंह ने किया वह था देश में आर्थिक सुधार। मनमोहन सिंह को खुली छूट मिली हुई थी। वे एक के बाद एक फैसले लेते गए। कई बार पीएम की असहमति के बाद भी फैसले लिए और देश की आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार देखा गया। रुपये का अवमूल्यन भी राव सरकार ने किया। पीएम रहे नरसिंह राव को भारत सरकार ने अब भारत रत्न से सम्मानित किया है।