Kerala High Court Decision : केरल हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले से निपटने के दौरान मौखिक रूप से कहा कि महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि एक महिला के फैसले किसी भी तरह से हीन नहीं हैं। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने गुरुवार को फैमली कोर्ट के आदेश पर गौर करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने पत्नी द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था और उसकी शिकायतों को सामान्य नाराजगी करार दिया था। आदेश में पक्षकारों (अलग हो रहे पति-पत्नी) को आपसी मतभेद भुलाकर वैवाहिक जीवन की पवित्रता के अनुरूप काम करने की सलाह दी गई।
‘फैमली कोर्ट का आदेश पितृसत्तात्मक’
केरल हाई कोर्ट ने बताया कि फैमली कोर्ट का आदेश पितृसत्तात्मक था। पति के वकील ने बताया कि फैमली कोर्ट के आदेश में पत्नी को यह सुनने के लिए कहा गया था कि उसकी मां और सास को इस मुद्दे पर क्या कहना है। रामचन्द्रन ने टिप्पणी की कि एक महिला के निर्णयों को उसकी मां या उसकी सास के निर्णयों से कमतर नहीं माना जा सकता। रामचंद्रन ने कहा, महिलाएं अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं।
न्यायाधीश ने जताई आपत्ति
न्यायाधीश ने पति के वकील की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि मौजूदा विवादों को अदालत के बाहर आसानी से सुलझाया जा सकता है। पति के वकील की दलील का जवाब देते हुए, रामचंद्रन ने स्पष्ट किया कि वह अदालत के बाहर समझौता करने का निर्देश तभी दे सकते हैं, जब महिला भी ऐसा करने को तैयार हो। हाई कोर्ट के जज ने कहा, उसका अपना दिमाग है। क्या आप उसे बांधेंगे और समझौता करने के लिए मजबूर करेंगे? इसीलिए वह आपको छोड़ने के लिए मजबूर हुई। अच्छा व्यवहार करें, एक आदमी बनें।