Kashmiri Pandits Exodus From Kashmir Valley: कश्मीरी पंडितों की हत्या, महिलाओं से बलात्कार, न बच्चों पर तरसा आया, न बुजुर्गों का लिहाज, बस कत्लेआम करना था। हिंसा और आतंक फैलाना था। क्यों, क्या दुश्मनी है? किसी को कुछ नहीं पता था। बस सरेआम गोलियों से भून दिया जाता था। चाकू से गोद दिया जाता है।
19 जनवरी 1990 की ठिठुरन भरी रात, कोई सो रहा था तो कोई खाना खा रहा था कि अचानक हमला हुआ। हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई। देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडित आज भी उस खौफनाक रात को याद करके सिहर उठते हैं। उस रात हुए हमले ने ही उन्हें अपना घर-दुकानें छोड़कर पलायन करने को मजबूर किया था।
Ticket to exile: Bus ticket purchased by family on 19th Jan., 1990 when we were forced out of Kashmir. #KPExodusDay pic.twitter.com/dXBzVrKXoT
---विज्ञापन---— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) January 19, 2016
हिंसा में 50 लोग मारे गए, कश्मीर छोड़ने की धमकी
19 जनवरी 1990 की रात को चरमपंथियों ने घाटी में युद्ध का ऐलान कर दिया था। पाकिस्तान समर्थित, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, काफिरों को मार डालो के नारे लग रहे थे। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, नौजवान, बुजुर्ग हजारों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर थे, जिन्हें देखकर कश्मीरी पंडित और हिन्दू डर गए। पुलिस वाले चौकियां छोड़ भाग गए थे।
सुबह तक नारे लगते रहे, अगले दिन 20 जनवरी को गावकदल में सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं और कम से कम 50 लोग मारे गए। कश्मीरी पंडितों की महिलाओं से रेप करके हत्याएं कर दी गईं। घरों और दुकानों पर नोटिस लगाकर धमकियां दी गईं कि या तो इस्लाम कबूलो, मुसलमान बनो या कश्मीर छोड़कर चले जाओ।
Most hillarious video of the day😂😂
Farooq Abdullah who bhagaoed all Hindus from the valley is today singing Ram ji ka bhajan nd sone pe suhaaga Kapil Sibal who went to Supreme Court saying Prabhu Shri Ram is mythology nd does not exist is today saying he is following Ram ji’s… pic.twitter.com/wVAXnCOOdX— Lotus 🪷🇮🇳 (@LotusBharat) January 18, 2024
1987 का चुनाव घाटी में हिंसा-पलायन का कारण
BBC की रिपोर्ट के अनुसार, हिंसात्मक घटनाओं को देखकर 20 जनवरी की रात कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं ने घाटी छोड़ दी। करीब 2 लाख लोग अपने घरों-दुकानों को जैसे का तैसा छोड़कर घाटी से चले गए। दरअसल, 1987 में जम्मू कश्मीर में हुए चुनाव में पाकिस्तान स्थित हिज़्बुल मुजाहिदीन के कमांडर सैयद सलाहुद्दीन बतौर उम्मीदवार खड़ा हुआ।
चुनाव उसने अपने असली नाम सैयद यूसुफ़ शाह के नाम से लड़ा। उसके विरोध में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के युसुफ शाह चुनाव लड़ रहे थे। युसुफ चुनाव जीत गए। हारने वालों ने धांधली का आरोप लगाया तो जांच पड़ताल में सैयद यूसुफ़ शाह चुनाव हार गए। विरोध स्वरूप घाटी में विरोध प्रदर्शन हुए। सैयद युसुफ़ शाह को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया।
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन दिवस पर दुख जताता हूँ I उन्हें आज भी न्याय नहीं मिला I कश्मीरी हिन्दू और सिखों के बिना कश्मीर में धर्मनिरपेक्षता का कोई अर्थ नहीं है I मैं अभी भी उस दिन की कल्पना कर रहा हूँ जब ये कश्मीर में दोबारा बसेंगे I #कश्मीरी_पंडित #Kashmiri_Pandit #कश्मीर pic.twitter.com/IQVDbnWNm7
— Mritunjay Sharma (भारतीय) (@s73915) January 19, 2024
सरकार को राष्ट्रपति शासन तक लगाना पड़ा था
सैयद युसुफ़ शाह जब जेल से बाहर आया तो उसने कश्मीर को कब्जाने की साजिश रची। इसके लिए उसने घाटी में रह रहे पंडितों और हिन्दुओं को टरगेट किया। इसलिए कहा जाने लगा था कि अगर चुनाव में सैयद युसुफ़ शाह को जीतने दिया गया होता तो शायद पलायन की नौबत नहीं आती। उसने लोगों ने कश्मीर में आतंक फैलाया। 1989 शुरू होते-होते हिंसक घटनाएं शुरू हो गईं। करीब एक साल जम्मू कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था।
जनवरी 1990 में नरसंहार हुए। नेशनल फ्रंट की सरकार थी। जगमोहन राज्यपाल का कार्यभार संभाल चुके थे, लेकिन उन्होंने चरमपंथियों का साथ देते हुए कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उनके घरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी थी। नरसंहार इतना हो रहा था कि केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। इन सभी घटनाओं को देखकर कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा।