Why BJP lost in Jammu Kashmir Election: जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने का बीजेपी का सपना टूटता नजर आ रहा है। ताजा रुझानों के मुताबिक कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस 52 सीटों पर बढ़त के साथ स्पष्ट बहुमत की ओर जाती दिख रही है। वहीं बीजेपी 27 सीटों पर ही आगे है। ऐसे में जम्मू कश्मीर में तस्वीर साफ होती दिख रही है। शुरुआती अनुमानों में माना जा रहा था कि महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और निर्दलीय उम्मीदवार गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। मगर अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
लद्दाख को अलग करने और आर्टिकल 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की यह पहली बड़ी अग्निपरीक्षा थी। मगर बीजेपी कश्मीर के लोगों को यह विश्वास दिलाने में नाकामयाब रही कि उनकी पार्टी की सरकार उनके हित में साबित होगी। बीजेपी ‘नया कश्मीर’ की बात कर रही थी, लेकिन शायद यहां की जनता इस सपने पर विश्वास करने में नाकामयाब रही। आखिर बीजेपी क्यों फेल हुई, आइए जानते हैं 5 बड़े कारण..
1. अलगाववादियों के खिलाफ एप्रोच से नाराजगी
घाटी में हिंसा को रोकने के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मजबूत योजना बनाई। अलगाववादियों, पत्थरबाजी और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए। इस कदम की सराहना भी हुई, लेकिन एक तबके में यह संदेश भी गया कि इस एप्रोच के साथ आम लोगों के अधिकारों को दबाया गया। ऐसा माहौल बना, जैसे बीजेपी के सत्ता में आने के बाद आम नागरिकों के अधिकारों को दबाया जाएगा। यह डर बीजेपी के खिलाफ गया।
2. 370 पर नहीं दिला पाई भरोसा
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और लद्दाख को अलग करने के फैसले पर भी बीजेपी यह यकीन दिलाने में नाकामयाब रही कि यह फैसला उनके हित में है। विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को उठाया। आम लोगों में यह संदेश गया कि उनसे अधिकार छीना गया है।
3. कश्मीर में पैठ बनाने में विफल
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कश्मीर घाटी में अपना एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा था। विधानसभा चुनाव में भी घाटी के भीतर बीजेपी अपनी पकड़ नहीं बना पाई। गठबंधन के तहत जिन सहयोगियों पर उसने भरोसा जताया, वो भी कुछ कमाल करने में फेल रही। घाटी की 47 में से महज 19 सीटों पर ही उसने उम्मीदवार उतारे। पार्टी सहयोगियों और निर्दलियों के भरोसे ही सरकार बनाने का सपना देख रही थी। ऐसे में मुख्य मुकाबला नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच ही रहा।
4. मुख्यमंत्री फेस
जम्मू कश्मीर में अगर बीजेपी जीतती तो मुख्यमंत्री कौन बनता? यह एक बड़ा सवाल आम वोटर्स के मन में जरूर रहा होगा। बीजेपी के पास सबसे बड़ा चेहरा प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ही थे। मगर उन्हें भी मुख्यमंत्री के तौर पर जनता के बीच पेश नहीं किया गया। साथ ही उनकी छवि हिंदुत्ववादी नेता की है और कश्मीर में उन्हें बहुत समर्थन नहीं मिलता।
5. बेरोजगारी
जब जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया तो बीजेपी ने वादा कि बेरोजगारी दूर होगी। जम्मू-कश्मीर में ढेर सारे प्रोजेक्ट्स शुरू करने और भारी-भरकम निवेश की बात कही गई। मगर ये वादे उस स्पीड से परवान नहीं चढ़ सके, जिससे चढ़ने चाहिए थे। इस वजह से युवाओं में एक हताशा पैदा हो गई।