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क्या प्रमोशन मिलना किसी कर्मचारी का है मौलिक अधिकार? उच्च न्यायालय ने दिया ये फैसला

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रमोशन को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि एक कर्मचारी का प्रमोशन उसका मौलिक अधिकार नहीं है. मिली जानकारी के अनुसार, पटियाला की एक महिला ने प्रमोशन के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किए जाने को लेकर एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने उन्हें पदोन्नत नहीं करने के विभागीय फैसले को बरकरार रखा.

Author Edited By : Versha Singh
Updated: Dec 31, 2025 14:32

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रमोशन को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि एक कर्मचारी का प्रमोशन उसका मौलिक अधिकार नहीं है. मिली जानकारी के अनुसार, पटियाला की एक महिला ने प्रमोशन के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किए जाने को लेकर एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने उन्हें पदोन्नत नहीं करने के विभागीय फैसले को बरकरार रखा.

दरअसल, पंजाब में साल 1990 से टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट से अपनी नौकरी की शुरुआत करने वाली महिला ने ये याचिका दायर की थी. उन्होंने इस अंतराल में प्रमोशन हासिल करते हुए साल 2023 तक डिस्टिक्ट टाउन प्लानर के पद पर अपनी सेवाएं दीं. इसके साथ ही वह सीनियर पोस्ट के लिए पात्र हो गई थीं.

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जिसके बाद अब प्रमोशन के लिए आगे उनके नाम पर विचार नहीं किया गया. वहीं, विभाग के निदेशक ने भी महिला पर कई आरोप लगाये हैं. उनका कहना है कि सेवा में रहने हुए याचिकाकर्ता महिला ने विकलांगता का सर्टिफिकेट जमा किया था. इसमें उनके अस्थायी सुनने की विकलांगता 41 फीसदी होने की जानकारी दी गई थी. बताया गया कि यह प्रमाण पत्र उन्होंने दिव्यांग कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों के लिए किया था. इसमें रिटायरमेंट की उम्र 58 की जगह 60 भी शामिल की गई है.

उन्होंने बताया कि इसके बाद याचिकाकर्ता ने एक और सर्टिफिकेट जमा कराया था, जिसमें सुनने की अक्षमता 53 फीसदी और स्थायी दिव्यांग बताया गया. जिसमें विभाग के पास दो सर्टिफिकेट पहुंचे और दोनों में अलग-अलग जानकारी दी गई जिसके कारण शक पैदा हुआ.

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वहीं, दूसरी ओर मेडिकल बोर्ड ने उनके दिव्यांग होने को अस्थायी बता दिया और उनके दिव्यांग के तौर पर पहचाने जाने वाले दावे को भी अधिकारियों ने खारिज कर दिया. इसके बाद उन्हें 58 साल की उम्र में रिटायर करने का फैसला लिया गया.

जस्टिस नमित कुमार महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ‘कोर्ट ने कहा कि कानून के मुताबिक, प्रमोसन ना ही निहित अधिकार है और ना ही किसी का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतिवादियों की ओर से याचिकाकर्ता को सीनियर टाउन प्लानर पद पर प्रमोट नहीं किए जाने में कुछ भी गलत नहीं है.’

वहीं, मामले में सेवा में रहने के दौरान महिला को सीनियर टाउन प्लानर कार्यभार सौंपा गया था. अब कोर्ट ने इस कार्यभार को संभालने के लिए उनकी भत्ते और भुगतान की मांग वाली याचिका स्वीकार कर ली है.

First published on: Dec 31, 2025 02:32 PM

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