पहलगाम आतंकी हमले में 26 भारतीयों ने अपनी जान गंवाई। आतंकियों से भिड़कर उनका विरोध करने वाला कश्मीरी लड़का सैयद आदिल हुसैन भी मारा गया। वहीं एक शख्स ने अपनी और अपने परिवार समेत 40 लोगों की जान भी आतंकियों से बचाई। उसकी बहादुरी की कहानी सुनकर सीना चौड़ा हो जाएगा। वह शख्स भारतीय सेना में वरिष्ठ अधिकारी है और कर्नाटक के मैसूर जिले का रहने वाला है। उसके सॉफ्टवेयर इंजीनियर भाई प्रसन्ना कुमार भट्ट ने एक पोस्ट लिखकर दावा किया कि उनके भाई वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारी हैं।
उन्होंने पहलगाम में लगभग 40 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाकर आतंकियों से उनकी जान बचाई। प्रसन्ना कुमार भट ने एक्स हैंडल पर लिखी पोस्ट में बताया कि कैसे वह, उनका परिवार और लगभग 35-40 अन्य लोग 22 अप्रैल को हुए घातक आतंकी हमले में बाल-बाल बच गए। भयावह घटना का वर्णन करते हुए प्रसन्ना ने लिखा कि आतंकी हमला किसी राक्षसी कृत्य से कम नहीं था, लेकिन भगवान की कृपा, किस्मत और सेना के एक अधिकारी की सूझबूझ से न केवल हमारी, बल्कि 35-40 लोगों की जान बच गई।
Yet another survival story from the tainted Baisaran valley in Pahalgam. We survived the horror to tell the story of what can only be described as monstrous act and paint the heavenly beauty blood-red with hellfire.
By the grace of the God, luck, and some quick thinking from… pic.twitter.com/00ln2y0DJo---विज्ञापन---— Prasanna Kumar Bhat (@prasannabhat38) April 25, 2025
संकरा रास्ता मिलने से जान बची
प्रसन्ना ने बताया कि खराब मौसम के कारण उन्हें अपना ट्रिप 2 दिन के लिए स्थगित करना पड़ा तो वे 22 अप्रैल की दोपहर को अपनी पत्नी, भाई और भाभी के साथ बैसरन घाटी में पहुंचे। वे मौज-मस्ती कर रहे थे, तभी दोपहर करीब 2.25 बजे उन्हें 2 गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी। गोलियां चलने के बाद सन्नाटा छा गया। उसने और उसके परिवार ने 2 शव पड़े देखे। उसके भाई ने जान लिया कि यह एक आतंकवादी हमला था। देखते ही देखते गोलियों की बौछार होने लगी और अफरा-तफरी मच गई। चीख-पुकार मच गई और लोग जान बचाने के लिए भागने लगे।
वह, उनका परिवार और कुछ लोग गेट की ओर भागे, लेकिन वहां आतंकवादी पहले से ही घात लगाए प्रतीक्षा कर रहे थे। एक आतंकी हमारी ओर बढ़ा तो दूसरी ओर भागने का निर्णय लिया। किस्मत से बाड़ के नीचे एक संकरा रास्ता मिल गया और लोग बाड़ के रास्ते फिसलकर संकरे रास्ते की ओर भागे। भाई ने अपने परिवार और उन 35-40 पर्यटकों को विपरीत दिशा में जाने का निर्देश दिया। उन्होंने लोगों को नीचे की ओर भागन को कहा, ताकि गोलीबारी वाली जगह से वे दूर चले जाएं।
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पेड़ के नीचे गड्ढे में छिपे रहे
प्रसन्ना ने बताया कि वह रास्ता एक ढलान थी, जहां पानी बह रहा है। कीचड़ भरी ढलान पर दौड़ना मुश्किल था, क्योंकि फिसलन था तो कई लोग फिसलकर नीचे गिरते गए, लेकिन इस वजह से उनकी जान बच गई। नीचे जाकर सभी लोग पेड़ों के नीचे एक संकरे गड्ढे में छिप गए। गोलियों की आवाज घाटी में आधे घंटे तक गूंजती रही। हम एक घंटे तक गड्ढे में डरे हुए, निराश बैठे रहे, लेकिन सुरक्षित रहे। दोपहर 3.40 बजे हेलीकॉप्टर की आवाज सुनाई दी तो पता चला कि सुरक्षाबल आ गए हैं।
शाम 4 बजे तक सेना के जवानों ने इलाके को घेरकर सुरक्षित कर दिया, लेकिन बंदूकों की आवाजें कानों में गूंजती रहीं। प्रार्थना करता हूं कि किसी को भी अपने जीवन में आतंक के ऐसे अनुभव से गुजरना न पड़े। हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं, जो मारे गए। उम्मीद है कि भगवान उन्हें न्याय प्रदान करेंगे। में अपने भाई और पूरी भारतीय सेना के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिनकी वजह से हम अपने परिवार के साथ हैं और जीवित हैं। अगले दिन सुबह वह, भाई और पूरा परिवार मैसूर लौट आया, उसके जान में जान आई।