भारत में कई दवाएं इतनी महंगी हैं कि आम आदमी तो उन्हें खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकता। कुछ दवाएं तो ऐसी हैं कि पूरी घर-संपत्ति भी बिक जाए तो भी आप इन्हें खरीद नहीं सकते। इस बीच दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है। देश में 4 दुर्लभ बीमारियों की दवाएं बनाई गईं हैं। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इस वजह से इलाज का खर्च करीब 100 गुना कम हो जाएगा। यह देश में इन दवाओं के उत्पादन की वजह से संभव हो पाया है। जिन चार दुर्लभ बीमारियों की दवाएं बनाई गई हैं उनमें टायरोसिनिमिया टाइप-1, गौचर रोग, विल्सन रोह और ड्रेवेट-लेनक्स गैस्टॉट सिंड्रोम हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी दी।
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि 10 किलोग्राम वजन के बच्चे के लिए विल्सन रोग के कैप्सूल की कीमत 2 करोड़ 20 लाख रुपये प्रति वर्ष है, लेकिन अब यह 2 लाख 20 हजार प्रति वर्ष हो जाएगी। टायरोसिनेमिया टाइप वन नाम की बीमारी बहुत दुर्लभ है। एक लाख की जनसंख्या में इसका एक मरीज पाया जाता है। इसके इलाज में Nitisinone कैप्सूल नाम की दवा इस्तेमाल की जाती है। इस दवा कीमत 2 करोड़ 20 लाख रुपये प्रति वर्ष है, इसे विदेशों से मंगाया जाता है। अब देश में ही यह दवा बनेगी और इसकी कीमत घटकर ढ़ाई लाख रुपए हो जाएगी।
देखें डॉक्टर्स के लिए हुआ बड़ा ऐलान-
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ये दवाएं भी हुईं सस्ती
Gaucher’s बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा एलीग्लस्टैट कैप्सूल (Eliglustat) कैप्सूल के एक साल के डोज़ की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये है। अब यह दवा भारत में ही बनेगी और इसकी कीमत 6 लाख रुपये हो जाएगी। ड्रेवेट-लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के उपचार में कैनबिडिओल नाम की दवा का इस्तेमाल किया जाता है। यह मुंह के जरिए ली जाने वाली दवा है जो विदेशों से आयात की जाती थी। एक साल के लिए यह दवा सात लाख से 34 लाख रुपये तक की मिलती है। लेकिन अब भारत में ही इसका उत्पादन होने से एक साल के लिे यह दवा एक लाख से पांच लाख रुपये में मिल जाएगी।
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