प्रभाकर कुमार मिश्रा, दिल्ली। हम कहेंगे तो लोग कहेंगे कि हम कह रहे हैं। लेकिन आज हम नहीं कह रहे आज हम वो बता रहे हैं जो देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है। शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू यू ललित ने कहा कि शराब के बारे में कई लोग कहते हैं कि थोड़ी मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है! अब क्या चाहिए। देश की सबसे बड़ी अदालत से आवाज आई है, सुनना तो पड़ेगा ही!
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यूं तो पीने वाले किसी की नसीहत सुनते कब हैं, लेकिन जब नसीहत शराब अच्छाइयों के बारे में हो तो न केवल मानते हैं बल्कि सबको मनाते भी हैं। महँगाई के असर से कराह रहे मध्यम वर्ग के लिए पंकज उदास वर्षों से सलाह देते रहे कि ‘हुई महँगी बड़ी शराब की, थोड़ी थोड़ी पिया करो!’ किसने माना? मानता भी कैसे, शराब के सामने महँगाई की भला क्या विसात! ये शराब है जनाब कांदा बटाटा थोड़े है!
शराब को बदनाम करने वाले सदियों से इसके पीछे पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट के सामने भी शराब को बदनाम करने की एक कोशिश हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि सिगरेट के डिब्बे पर डरावनी तस्वीर के साथ चेतावनी लिखी होती है, उसी तरह शराब के बोतलों पर भी 50 फीसदी हिस्से पर डरावने चित्र के साथ चेतावनी लिखने का प्रावधान किया जाय।
अब वकील साहब को कौन समझाने जाए कि सिगरेट से भला शराब की क्या तुलना। जज साहब ने भी कहा कि कुछ लोग तो कहते हैं कि कम मात्रा में ली गई शराब स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है लेकिन सिगरेट के साथ ऐसा नहीं है। मी लॉर्ड ने तो यहाँ तक कह दिया कि ‘यह नीतिगत मामला है या तो आप याचिका वापस लीजिए नहीं तो हम इसे खारिज कर देंगे!’ सैकड़ों जनहित याचिका वाले वकील साहब ने अपनी याचिका वापस लेना ही बेहतर समझा। उनको भी लगा होगा कि कहाँ फ़िजूल में इससे उलझ गए क्योंकि यह शराब तो वो शय है होंठों से लगा लो तो जाम हो जाये!
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना! आरोप लगाने वाले कहते रहे कि शराब सेहत की दुश्मन है। इसमें नशा होता है जो इंसान को सही और ग़लत में भेद नहीं करने देती! शराब की यह बेइज्जती ज़ौक़ साहब से देखी नहीं गयी। उन्होंने कह दिया ‘ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ। क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया।’ बिग बी यानी अपने बच्चन साहब ने तो फ़िल्म शराबी में यहाँ तक कह दिया कि ‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल।’ सदी के महानायक से मिली इस क्लीनचिट से शराब चाहती तो बावली हो जाती! लेकिन ये शराब है जनाब, सरसों का तेल थोड़े है जो बेअन्दाज हो जाये!
सुप्रीम कोर्ट से जब टिप्पणी आयी तो लगा कि मुझे भी शराब पर आज कुछ लिखना चाहिए। इसलिए बैठ गया कि कुछ गम्भीर बातों को हल्केफूलके अंदाज़ में लिखने। लेकिन यहाँ तो इस तीन अक्षर के शय का जादू अब समझ में आया कि
‘आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’! जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।’ ये तो फ़िराक साहब ने कहा था। मैं खामखा शायर बनने की नकल कर रहा हूँ।
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आखिर में वैधानिक चेतावनी हनी सिंह वाली। युवा शराबियों के हीरो यो यो हनी सिंह ने जोश जोश में कह तो दिया था कि ‘चार बोतल वोदका काम मेरा रोज का’ लेकिन जब वोदका का रिएक्शन हुआ तो उनके भी सुर बदल गए कि ‘छोटे छोटे पैग बना रे बेबी’। इसलिए आप भी अपनी अक्ल लगायें। हम भी मानते हैं कि शराब और सिगरेट दोनों स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। थोड़ी थोड़ी पियेंगे तो थोड़ा थोड़ा ही नुकसान होगा।
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