Reforms of 1991: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बतौर वित्त मंत्री देश को आर्थिक संकट से कैसे बाहर निकाला, यह बात सभी जानते हैं। लेकिन वह वित्त मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे कैसे इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। साल 1991 की एक रात मनमोहन सिंह विदेश में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल होकर दिल्ली वापस लौटे थे। नीदरलैंड से भारत के सफर के बाद वह थोड़े थके हुए महसूस कर रहे थे, इसलिए सोने चले गए।
देर रात बजा फोन
डॉ. मनमोहन सिंह के कमरे की लाइट बंद हो चुकी थी, जो संकेत था कि वह अब सो गए हैं। देर रात उनके फोन की घंटी बजी। फोन डॉ. सिंह के दामाद विजय तन्खा ने उठाया। दूसरी ओर से आवाज आयी, ‘मैं पी.सी एलेक्जेंडर बात कर रहा हूं’। इतना सुनते ही विजय तन्खा एकदम से खड़े हो गए। दरअसल, पीसी एलेक्जेंडर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के करीबी थी।
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तन्खा ने नींद से जगाया
एलेक्जेंडर ने विजय तन्खा से अनुरोध किया कि डॉ. मनमोहन सिंह को नींद से जगाएं, क्योंकि उन्हें बहुत जरूरी बात करनी है। विजय तन्खा ने डॉ. सिंह को उठाकर पूरी बात बताई। इसके कुछ घंटे के बाद मनमोहन सिंह और पीसी एलेक्जेंडर की मुलाकात हुई। जहां उन्हें बताया गया कि पीएम उन्हें देश का वित्त मंत्री (FM) बनाना चाहते हैं।
ऑफर पर गंभीर नहीं थे सिंह
मनमोहन सिंह उस समय UGC के चेयरमैन थे, उन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उन्होंने पीसी एलेक्जेंडर की बातों को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन पी.वी नरसिम्हा राव इस बात के लिए बेहद गंभीर थे और चाहते थे कि मनमोहन सिंह उनका ऑफर स्वीकार कर लें। 21 जून 1991 को जब मनमोहन सिंह अपने UGC कार्यालय में काम कर रहे थे, तब उनसे कहा गया कि वह घर जाकर कपड़े बदल लें, क्योंकि उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होना है।
किसी को नहीं था यकीन
जब मनमोहन सिंह शपथ ग्रहण समारोह को शामिल होने के लिए पहुंचे, तो उन्हें देखकर हर कोई हैरान था। किसी ने सोचा भी नहीं था कि PM राव एकदम नए चेहरे को अपनी टीम में शामिल कर सकते हैं. लेकिन ऐसा बाकायदा हुआ। मनमोहन सिंह को शपथ दिलाई गई, लेकिन पोर्टफोलियो बाद में सौंपा गया। वैसे तब तक सभी जान चुके थे कि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभालेंगे।
कई साहसिक फैसले लिए
यहीं से भारतीय अर्थव्यवस्था के अच्छे दिनों की शुरुआत हुई। हालांकि, यह रास्ता इतना भी आसान नहीं था। देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। बतौर फाइनेंस मिनिस्टर डॉ. सिंह ने कई साहसिक फैसले लिए, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभाई। कभी दुनिया की सबसे सुस्त अर्थव्यवस्थाओं में शामिल रहा भारत यदि आज सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, तो उसमें 1991 में लिए गए फैसलों का भी बहुत बड़ा योगदान है।
वाकई गंभीर था संकट
जब मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री की कुर्सी संभाली , भारत का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 6 अरब डॉलर रह गया था। ऐसी स्थिति में पेट्रोलियम सहित दूसरी आवश्यक वस्तुओं का अधिकतम दो सप्ताह तक आयात किया जा सकता था। समस्या वाकई गंभीर थी, लेकिन डॉ. सिंह इसका समाधान जानते थे। उन्होंने एक के बाद एक कई ऐसे कदम उठाए, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आई और एक बड़ा संकट देश से टल गया।
बदली देश की तस्वीर
24 जुलाई 1991 को मनमोहन सिंह ने अपना पहला बजट पेश किया, जो देश की तस्वीर बदलने वाला बजट साबित हुआ। देश में लाइसेंस राज खत्म करने का श्रेय भी डॉ. सिंह को ही जाता है। उन्होंने 18 सेक्टर में लाइसेंसिंग व्यवस्था को खत्म किया और कम से कम 34 इंडस्ट्रीज में विदेशी निवेश का रास्ता खोला। उन्होंने विदेशी निवेश बढ़ाने और कंपनियों के लिए भारत में बिजनेस करना आसान बनाकर अर्थव्यवस्था को तेजी से दौड़ने के लिए ईंधन प्रदान किया।