CSTT Directorate changed the rules to give benefit to its favorite officer:
कमीशन फॉर साइंटिफिक एंड टेक्नीकल टर्मिनोलॉजी (CSTT) संस्थान के कर्णधारों की कारगुजारी देखकर सुप्रीम कोर्ट का भी पारा चढ़ गया। जस्टिसेज इतने ज्यादा खफा थे कि उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द करके उस अफसर से पैसे की रिकवरी करने का आदेश दिया जिसकी तनख्वाह को लेकर बवाल मचा हुआ था।
टॉप कोर्ट ने CSTT की अथॉरिटी को तीखी फटकार लगाते हुए कहा कि एक शख्स को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को लगातार ताक पर रखा गया। अनुचित तरीके से अपने चहेते अफसर की तनख्वाह बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने डॉ पीएन शुक्ला बनाम केंद्र के मामले की सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया। बेंच ने अपने आदेश में CSTT के 13 दिसंबर 2006 के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें संबंधित अफसर को हायर पे स्केल दिया गया था। 4 जनवरी 2010 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया गया जिसमें पहले के आदेश को सही ठहराया गया था। इसके अलावा टॉप कोर्ट ने ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट के उन फैसलों को भी खारिज कर दिया जिसमें संबंधित अफसर की पे हाइक को सही ठहराकर रिट को खारिज किया गया था।
तनख्वाह बढ़वाने के लिए डेपुटेशन पर चला गया शख्स
डबल बेंच ने मामले की सुनवाई में कहा कि रिस्पांडेंट नंबर 4 ने CSTT में बतौर रिसर्च असिस्टेंट जॉइन किया था। लेकिन उसके बाद वो अपनी पैरेंट आर्गनाइजेशन में काम करने की बजाए दूसरी जगहों पर डेपुटेशन पर काम करता रहा। उसकी पूरी रणनीति बढ़ा पे स्केल लेने की थी। इसमें वो कामयाब भी रहा।
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2006 में डायरेक्टरेट ने रिस्पांडेंट नंबर 4 का पे स्केल 6500-10500 से बढ़ाकर 8000-13500 कर दिया। उसका पद असिस्टेंट साइंटिफिक ऑफिसर (मेडिसिन) का था। अलबत्ता उसे जो पे स्केल दिया गया वो डाक्टरों को मिल सकता है। बवाल तब खड़ा हुआ जब 2007 में एक आदेश जारी करके असिस्टेंट साइंटिफिक ऑफिसर (मेडिसिन) के पद को एक्ट कैडर घोषित कर दिया गया। उसके बाद ट्रिब्य़ूनल के साथ हाईकोर्ट में अपील दायर की गईं।