नई दिल्ली: रूस के लूना-25 की नाकामी के बाद अब हर किसी की नजर भारत के चंद्रयान-3 पर है। हर कोई उस खुशी का हिस्सेदार बनने के लिए बेताब है, जब चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतरेगा, लेकिन अभी यह सफर किसी वर्ल्ड कप के मैच में आखिरी बॉल पर छक्का मारने से कम रोमांचक और चुनौतीपूर्ण नहीं है। हालांकि इसरो की तरफ से निर्धारित समय से 2 घंटे पहले इसकी लैंडिंग की आस बरकरार है। दूसरी ओर इसरो के वैज्ञानिक नीलेश एम देसाई के मुताबिक ने कहा है कि अगर 23 अगस्त को इसकी लैंडिंग नहीं होती है तो फिर 27 अगस्त को इसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराई जा सकती है। इसी के साथ आइए, हमारे इस मिशन में आ रही चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं…
-
चंद्रयान-3 को 23 अगस्त की शाम तक चांद पर उतारने के लिए लगाई जा रही जुगत, इसरो के वैज्ञानिक नीलेश एम देसाई ने कहा-27 अगस्त को उतारा जा सकता है
बात 1960 के दशक की है, जब अमेरिका और सोवियत संघ रूस इंसान को चांद पर भेजने के लिए एक-दूसरे को टक्कर देने के लिए खड़े हुए। 1957 में स्पुतनिक-1 के रूप में धरती के ऑर्बिट में पहला सैटलाइट स्थापित करने और 1961 में यूरी गागरिन को स्पेश में भेजने और चांद के मानवरहित मिशन में तो रूस ने मैदान भले ही मार लिया, लेकिन अभी तक इस मिशन में अमेरिका के अपोलो मिशन के अलावा किसी को यह कामयाबी हासिल नहीं हुई है।
अब बीते कुछ बरसों से भारत और रूस के अलावा अमेरिका, चीन, इसराइल, जापान और कई निजी कंपनियां भी मिशन मून में जुटी हुई हैं। इसी कड़ी में 11 अगस्त को चांद की तरफ रवाना किया गया रूस का लूना-25 बीते दिनों लैंडिंग से पहले ही टकराकर नष्ट हो गया। अब हर कोई भारत के चंद्रयान-3 की चांद की दक्षिणी ध्रुव वाली सतह पर लैंडिंग को देखना चाहता है।
क्यों मुश्किल है यह डगर?
ध्यान रहे, 11 अप्रैल 2019 को इसराइल के बेयरशीट लैंडर चांद पर उतरने से ठीक पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 7 सितंबर 2019 को भारत का चंद्रयान-2 भी चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर विक्रम से कनेक्शन लॉस के चलते नाकाम हो गया। बाद में इसरो ने ऑर्बिटर से मिली तस्वीर के आधार पर इसकी हार्ड लैंडिंग की बात कही थी।
इसी तरह हाल ही में 26 अप्रैल 2023 को जापान के हाकुटो-आर का कनेक्शन भी कंट्रोल सेंटर से टूट गया। टोक्यो स्थित कंट्रोल सेंटर के मुताबिक आखिरी वक्त में कोई डाटा हासिल नहीं होने के चलते इसकी भी हार्ड लैंडिंग की आशंका जताई गई। अब भारत के चंद्रयान से मुकाबला कर रहे रूस के लूना 25 का हाल भी हर जानता है।
और पढ़ें – जानें लैंडिंग से ठीक पहले क्यों क्रैश हो गया चंद्रयान-3 से आधा हल्का रूस का Luna-25
जहां तक इसके कारण की बात है, अभी तक चांद पर भेजे मिशन उत्तरी ध्रुव पर या बीच में सिर्फ इसलिए लैंड कर पाए हैं कि वहां सूरज की रोशनी और पर्याप्त समतल जगह उपलब्ध है। इसके उलट चांद का दक्षिणी ध्रुव न सिर्फ पथरीला और ऊबड़-खाबड़ है, बल्कि वहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता। इस हिस्से की बेहद कम तस्वीरें अब तक मिल सकी हैं और इसी के चलते वैज्ञानिक सही से इस पर स्टडी नहीं कर पाए हैं।
दूसरा धरती की अपेक्षा चांद पर सिर्फ 16.6 प्रतिशत गुरुत्वाकर्षण ही उपलब्ध है। चांद पर वायुमंडल जैसी कोई चीज नहीं होने के चलते भी वहां उतरने वाले किसी भी यान की गति कम करने के लिए घर्षण बल नहीं लगता। इसके अलावा चांद पर पृथ्वी की भांति सैटलाइट सिग्नल का नेटवर्क भी नहीं है। एक सामान्य सिग्नल के आधार पर ही चांद पर उतरना संभव है, जिसके चलते चंद्रयान-3 के लैंडर को उतारने के लिए इसरो चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का इस्तेमाल कर रहा है।
यह भी पढ़ें: नवजातों की सीरियल किलर: 33 साल की नर्स को कोर्ट ने सुनाई बड़ी सजा
फिर भी उम्मीद अभी बरकरार है…
उधर, यह बात भी हर कोई जानता और मानता है कि डगर जितनी मुश्किल होती है, मंजिल पर पहुंचने की खुशी उतनी ही ज्यादा होती है। इसी आशा के साथ अब चंद्रयान-3 को 23 अगस्त की शाम तक चांद पर उतारने के लिए जुगत लगाई जा रही है। इस बारे में इसरो के वैज्ञानिक नीलेश एम देसाई ने कहा कि अगर 23 अगस्त को लैंड कर पाना किसी तरह मुमकिन नहीं हुआ तो इसे 27 अगस्त को उतारा जाएगा।
उधर, भारत सरकार की देखरेख में चल रहे नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर स्पेश एंड एलाइड साइंसेज (NRISAS) की एक रिसर्च पर गौर करें तो चंद्रयान-3 के प्रस्तावित प्राथमिक लैंडिंग स्थल के पश्चिम में ~6 किमी की औसत क्षैतिज दूरी पर स्थित लोबेट स्कार्प के लगभग “~58 किमी लंबे खंड” के अस्तित्व का संकेत देने वाले साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।
इसरो के चंद्रयान-3 लैंडर-रोवर-आधारित मिशन को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 68 और 70° S और 31 और 33° E निर्देशांक के बीच के क्षेत्र में दो क्रेटर मंज़िनस और बोगुस्लाव्स्की और तीसरे सिंपेलियस के बीच पठार में उतरने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त, मोरेटस क्रेटर (∼114 किमी व्यास; निर्देशांक: 70.6° दक्षिण, 6.2° पश्चिम) के पश्चिम में 68 और 70° दक्षिण और 16 और 18° पश्चिम के बीच के क्षेत्र में एक वैकल्पिक लैंडिंग साइट भी प्रस्तावित की गई है।