वक्फ कानून से जुड़ी याचिकाओं को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में किसी भी तरह के अंतरिम आदेश का विरोध करते हुए कहा गया है यह पूर्व निर्धारित व्यवस्था है कि संसद से पारित किसी कानून पर बिना विस्तृत सुनवाई और अंतिम फैसले से पहले कानून के किसी प्रावधान पर अंतरिम रोक नहीं लगाया जा सकती है। इन याचिकाओं में आरोप लगाए गए कि यह कानून अनुच्छेद 25 के तहत मिले धार्मिक अधिकारों या 26 के तहत प्रदत्त अधिकार को छीन रहे हैं। सरकार ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून किसी के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता।
याचिकाओं को खारिज करने की मांग
सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना प्रारंभिक हलफनामा दायर किया है और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र को 17 अप्रैल को एक सप्ताह का समय दिया था।
हलफनामे में क्या है?
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में 22 सदस्यों में से अधिकतम दो गैर-मुस्लिम होंगे, यह एक ऐसा उपाय है जो समावेशिता का प्रतिनिधित्व करता है और यह वक्फ के प्रशासन में भी हस्तक्षेप नहीं करता है। केंद्र सरकार की तरफ से कहा कि जानबूझकर या गलत तरीके से वक्फ संपत्तियों के रूप में उल्लिखित सरकारी भूमि की पहचान राजस्व रिकॉर्ड को सही करने के लिए है। इसमें यह भी कहा गया है कि सरकारी भूमि को किसी भी धार्मिक समुदाय से संबंधित भूमि नहीं माना जा सकता है।
सरकार ने वक्फ-बाय-यूजर प्रावधान के हटाने को लेकर अपने हलफनामे में कहा है कि वक्फ-बाय-यूजर’ की छूट से मौजूदा पंजीकृत वक्फ की संपत्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। एक झूठी कहानी बनाई जा रही है कि इस इस प्रावधान के हटने से सदियों पुरानी वक्फ की संपत्तियों पर असर पड़ेगा। संशोधित कानून की धारा 3(1)(आर) के मुताबिक, मौजूदा पंजीकृत’वक्फ-बाय-यूजर संपत्ति के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। इसमें एक मात्र शर्त यह है कि उन्हें 8 अप्रैल, 2025 (अधिनियम की अधिसूचना की तिथि) तक पंजीकृत होना चाहिए।.
1954 और 1995 के वक्फ अधिनियम में भी था ऐसा ही आदेश
हलफनामे में कहा गया है कि वक्फ भूमि का पंजीकरण कोई नई शर्त नहीं है। यह व्यवस्था सौ साल पहले से है जब से मुसलमान वक्फ एक्ट 1923 लागू हुआ था। 1954 और 1995 के वक्फ अधिनियम में भी ऐसा ही आदेश था।
सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने को लेकर केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ काउंसिल की भूमिका केवल सामान्य सलाहकार की है और यह किसी विशिष्ट भूमि से संबंधित नहीं है। सरकार ने कहा है कि राज्यों के बोर्ड रेगुलेटरी शक्तियों का प्रयोग करते हैं जो सेक्युलर प्रकृति के होते हैं। वक्फ बोर्ड एक धर्मनिरपेक्ष निकाय(secular body ) है और मुसलमानों का प्रतिनिधि निकाय नहीं है।
मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों को नहीं करते प्रभावित
सरकार ने कहा है कि काउंसिल और बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की उपस्थिति किसी भी तरह से मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों को प्रभावित नहीं करते हैं। अनुच्छेद 26, का प्रकृति धर्मनिरपेक्ष है। यह किसी धर्म के सिद्धांतों के अनुसार संपत्ति का प्रशासन करने का अधिकार नहीं देता है।
केंद्र ने यह भी कहा कि नए कानून के ये परिवर्तन मुसलमानों को इन निकायों में अल्पसंख्यक नहीं बनाएंगे। सेंट्रल काउंसिल में गैर-मुसलमानों की अधिकतम संभावित संख्या 4 (22 सदस्यों में से) और बोर्डों में अधिकतम 3 (11 सदस्यों में से) है, यह मानते हुए कि पदेन सदस्य भी गैर-मुस्लिम हैं।
सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिम सदस्यों क्यों?
सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने को लेकर केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ काउंसिल की भूमिका केवल सामान्य सलाहकार की है और यह किसी विशिष्ट भूमि से संबंधित नहीं है। सरकार ने कहा है कि राज्यों के बोर्ड रेगुलेटरी शक्तियों का प्रयोग करते हैं जो सेक्युलर प्रकृति के होते हैं। वक्फ बोर्ड एक धर्मनिरपेक्ष निकाय ( secular body ) है और मुसलमानों का प्रतिनिधि निकाय नहीं है।
सरकार ने कहा है कि काउंसिल और बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की उपस्थिति किसी भी तरह से मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों को प्रभावित नहीं करते हैं। अनुच्छेद 26, का प्रकृति धर्मनिरपेक्ष है। यह किसी धर्म के सिद्धांतों के अनुसार संपत्ति का प्रशासन करने का अधिकार नहीं देता है। केंद्र ने यह भी कहा कि नए कानून के ये परिवर्तन मुसलमानों को इन निकायों में अल्पसंख्यक नहीं बनाएंगे। सेंट्रल काउंसिल में गैर-मुसलमानों की अधिकतम संभावित संख्या 4 (22 सदस्यों में से) और बोर्डों में अधिकतम 3 (11 सदस्यों में से) है।
वक्फ बोर्ड और मंदिरों से जुड़े ट्रस्ट में अंतर
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या मुस्लिमों को हिंदुओं से जुड़े ट्रस्ट में शामिल किया जा सकता है? इसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ बोर्ड और हिंदू धार्मिक संपत्तियों के रखरखाव के लिए बनाए गए ट्रस्ट में अंतर है। ( धार्मिक बंदोबस्ती hindu religious endowment की तुलना में वक्फ एक व्यापक और निरंतर विकसित होने वाली अवधारणा है। साथ ही, सभी राज्यों में हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती से निपटने के लिए कानून नहीं हैं और कई राज्यों में, उन्हें ट्रस्टों पर लागू सामान्य कानूनों द्वारा निपटाया जाता है।
हलफनामे में कहा गया है कि चूंकि वक्फ बोर्ड अक्सर गैर-मुसलमानों की संपत्तियों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हैं, इसलिए बोर्ड में गैर- मुस्लिम सदस्यों की उपस्थिति से दोनों पक्षों के लिए न्याय का समान अवसर उपलब्ध हो सकेगा। सरकारी अधिकारी को यह तय करने की अनुमति देने पर कि क्या वक्फ भूमि ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है? केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें सरकारी भूमि या यहां तक कि निजी भूमि को भी वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है। चूंकि सरकारी भूमि सार्वजनिक ट्रस्ट में रखी जाती है, इसलिए विधायिका उन्हें संरक्षित करने और उनसे संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिए एक तंत्र प्रदान कर सकती है। इसलिए सरकारी अधिकारी को वक्फ भूमि निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है।