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बोध गया मंदिर में बौद्ध भिक्षु क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन? बुद्ध पूर्णिमा पर जानें विवाद की असली वजह

आज बुद्ध पूर्णिमा का पवित्र दिन है। इस बीच बिहार के बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर में 100 से अधिक भिक्षु पिछले कई महीनों से विरोध कर रहे हैं। ऐसे में बुद्ध पूर्णिमा पर जानते हैं विवाद की असली वजह क्या है?

Author Edited By : Rakesh Choudhary Updated: May 12, 2025 07:41
Bodh Gaya temple protest
Bodh Gaya temple protest

आज बुद्ध पुर्णिमा है। इस अवसर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं भारतीय शास्त्रों में भी इस दिन को लेकर कई परंपराएं हैं। इस बीच बोध गया में लगभग 100 बौद्ध भिक्षु पिछले कुछ समय से महाबोधि मंदिर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह आंदोलन महाबोधि मंदिर का नियंत्रण बौद्धों को सौंपने को लेकर हो रहा है। बौद्ध भिक्षु बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 में बदलने की मांग कर रहे हैं। गया स्थित महाबोधि मंदिर का संचालन इसी कानून के तहत किया जाता है। कानून के तहत बनी समिति में बौद्धों के साथ-साथ हिंदुओं को भी शामिल किया जाता है।

बोधगया का क्या महत्व है?

बता दें कि बोधगया चार पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। इस स्थान भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधगया के अलावा एक पवित्र स्थल लुम्बिनी है, जो भगवान बुद्ध की जन्मस्थली है। सारनाथ, जहां उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था। कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। ऐसे में बौद्ध भिक्षु 1949 में बने बोध गया मंदिर एक्ट को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। ऐेसे में आइये बुद्ध पूर्णिमा पर जानते हैं बौद्ध भिक्षु इस एक्ट को निरस्त करने की मांग क्यों कर रहे हैं?

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मंदिर पर नियंत्रण को लेकर विवाद

गौरतलब है बिहार सरकार ने बौद्ध और हिंदुओं के बीच महाबोधि मंदिर के नियंत्रण को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए बीटीए एक्ट पारित किया था। बीटीए ने चार हिंदुओं और चार बौद्धों को सदस्य बनाया और समिति का गठन किया। इसके अलावा स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट को समिति का पदेन अध्यक्ष बनाया गया। इसमें यह भी प्रावधान जोड़ा गया कि राज्य सरकार उस अवधि के लिए एक हिंदू को समिति का अध्यक्ष नामित करेगी जब गया जिलाधिकारी गैर हिंदू होगा। इसके बाद इस नियम को राज्य सरकार ने 2013 में बदल दिया इसके स्थान पर यह प्रावधान जोड़ा गया कि पदेन अध्यक्ष किसी भी धर्म का हो सकता है। इसी नियम को लेकर बौद्ध भिक्षुओं में नाराजगी है।

लालू यादव ने किया था ये प्रयास

1990 के दशक में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने बीटीए की जगह बोधगया महाविहार विधेयक का मसौदा तैयार किया। इसमें मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की अनुमति दी गई। इस विधेयक में मंदिर के अंदर मूर्ति विसर्जन और हिंदू विवाह पर रोक लगाई गई। हालांकि यह विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया। बोधगया मठ की देखरेख करने वाले विवेकानंद गिरि ने कहा कि अधिनियम और भारत की स्वतंत्रता से पहले मंदिर का स्वामित्व हिंदुओं के पास था। उन्होंने भिक्षुओं के विरोध प्रदर्शन को राजनीति करार दिया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले यह विरोध दबाव बनाने की रणनीति है।

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हिंदुओं के पास कैसे आया नियंत्रण?

गिरि ने आगे बताया कि मुस्लिम शासकों के आक्रमण के बाद बौद्ध मंदिर को छोड़कर चले गए। इसके बाद हमने मंदिर का संरक्षण किया और देखभाल की। हमने कभी भी बौद्ध आगंतुकों को अन्य नहीं माना। इस मंदिर की स्थापना मौर्य साम्राज्य के महान शासक अशोक ने की थी। 260 ईसा पूर्व में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। यह मंदिर अब यूनेस्को की धरोहर बन चुका है। राजा अशोक बोधि वृक्ष के नीचे पूजा करते थे। इसके बाद 13वीं शताब्दी तक बौद्धों के लिए यह स्थान मक्का की तरह था। बख्तियार खिलजी के 13वीं शताब्दी में आक्रमण के बाद मंदिर पूरी तरह वीरान हो गया। इसके बाद अकबर के शासनकाल के दौरान 1590 में हिंदू भिक्षु ने बोधगया मठ की स्थापना की। उन्होंने बोधगया में एक हिंदू मठ का गठन किया। इसके बाद से मंदिर का नियंत्रण गिरि के पूर्वजों के पास था।

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First published on: May 12, 2025 07:41 AM

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