---विज्ञापन---

Azadi Ka Amrit Mahotsav: कौन हैं आजाद भारत के जल क्रांतिकारी जो बने ‘चेंज मेकर्स’, जानिए

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष 12 मार्च 2021 से ही ‘आजादी का अमृत महोत्व’ प्रारंभ कर दिया है। देश में आजादी की 75वीं वर्षगांठ को वृहद रूप से मनाने की तैयारी है। इसके साथ ही 2 से 15 अगस्त तक माहौल को तिरंगामय कर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘हर […]

Edited By : Yashodhan Sharma | Updated: Aug 6, 2022 22:33
Share :
आजादी
आजादी

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष 12 मार्च 2021 से ही ‘आजादी का अमृत महोत्व’ प्रारंभ कर दिया है। देश में आजादी की 75वीं वर्षगांठ को वृहद रूप से मनाने की तैयारी है। इसके साथ ही 2 से 15 अगस्त तक माहौल को तिरंगामय कर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘हर घर तिरंगा’ का अभियान भी छेड़ा है।

इसी कड़ी में हम आपको कुछ ऐसे देशभक्तों से रूबरू कराने जा रहे हैं जो पर्यावरण से लगाव रखते हैं और जिनका प्राकृतिक स्त्रोत के संरक्षण में अहम योगदान है। हम आपको ऐसे योद्धाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी वजह से न केवल प्रकृति को फायदा पहुंच रहा है बल्कि ये सभी आजाद हिंदुस्तान के लिए ‘चेंज मेकर्स’ साबित हुए हैं।

---विज्ञापन---

दरअसल, नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 21 राज्यों में पूरी तरह से पानी की कमी का खतरा है। इसने चेतावनी दी कि कुछ शहरों में उपलब्ध प्रदूषित पानी का 70% जल्द ही शून्य-दिन के स्तर तक पहुंच सकता है। यहां 5 जल योद्धा हैं जो पानी के प्रबंधन में सर्वश्रेष्ठ हैं।

राजेन्द्र सिंह

‘वाटर मैन’ राजेंद्र सिंह ने कहा है कि सूखा मानव निर्मित है। राजेंद्र सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के दौला गांव में हुआ था। 1984 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने के बाद, वह आयुर्वेदिक चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए राजस्थान के अलवर जिले के एक गांव में चले गए जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई की।

---विज्ञापन---

गांव के लिए शिक्षा और दवा से ज्यादा जरूरी जल समस्या को समझकर राजेंद्र सिंह ने अकेले ही गांव का तालाब खुदवा दिया। उन्होंने वर्षों तक कड़ी मेहनत की और तालाब का क्षेत्रफल बढ़ाया। तभी अचानक हुई बारिश से तालाब भर गया। फिर युवाओं को संगठित किया गया और सालभर के अंदर अकेले 36 गांवों में तालाबों को काट दिया गया।

वह गांव-गांव पैदल तीर्थ यात्रा पर गए और वर्षा जल संचयन के बारे में जागरूकता पैदा की। उन्होंने राजस्थान राज्य में 7 नदियों का जीर्णोद्धार किया। उनके मार्गदर्शन से विभिन्न राज्यों में जल क्रांति हुई है। उल्लेखनीय है कि ‘वाटर मैन’ के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह को ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ मिला है, जो विश्व स्तर पर जल प्रबंधन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को दिया जाता है।

अमला रुया

इनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्हें जल की माता के रूप में जाना जाता है। वह 1998 में राजस्थान में सूखे के बाद क्षेत्र के लोगों की मदद करती रही हैं। वहां उन्होंने आकार चैरिटेबल ट्रस्ट नाम से एक धर्मार्थ संगठन बनाया, जिसके माध्यम से उन्होंने उन गांवों को पानी की सुविधा प्रदान की है, जिन्हें पानी नहीं मिल पा रहा है।

उनकी चैरिटी ने 2006 से 2018 के बीच 317 बांध बनाए हैं। इससे राजस्थान के 182 ग्रामीणों को सीधा लाभ होगा। उल्लेखनीय है कि यह धर्मार्थ संगठन राजस्थान के लोगों की पढ़ाई का खर्च भी वहन कर रहा है।

अयप्पा मसाकी

कर्नाटक राज्य के रहने वाले अयप्पा मसाकी एक ऐसे ‘वाटर वॉरियर’ हैं जिन्हें ‘वाटर गांधी’ के नाम से भी जाना जाता है। मसाकी कर्नाटक के कटक जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में बारिश का आधा पानी समुद्र में चला जाता है। बाद में उन्होंने अपने द्वारा खोजे गए जल संग्रहण के तरीकों से लोगों के लिए पानी की कमी को दूर करने का प्रयास किया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है।

अयप्पा मसाकी का ‘वाटर लिटरेसी फाउंडेशन’ चौदह राज्यों में अच्छा काम कर रहा है। इसने देश भर में 4500 से अधिक स्थानों पर जलापूर्ति के लिए कार्य परियोजनाओं को क्रियान्वित किया है।

आबिद सुरती

आबिद सुरती ड्रॉप डेड फाउंडेशन नाम से एक सदस्यीय एनजीओ चलाते हैं, जो मुंबई के घरों में पानी की बर्बादी का कारण बनने वाली लीक जैसी नलसाजी समस्याओं की देखभाल करके टन पानी बचा रहा है। 80 वर्षीय स्वयंसेवक और एक प्लंबर की टीम के साथ यह सब मुफ्त में करते हैं।

फाउंडेशन के अस्तित्व के पहले वर्ष 2007 में, आबिद ने मीरा रोड पर 1666 घरों का दौरा किया। 414 लीक नलों को मुफ्त में ठीक किया और लगभग 4.14 लाख लीटर पानी की बचत की। उनके काम ने अब देश भर के अन्य लोगों को उनका उदाहरण लेने और अपने शहरों में पानी बचाने में मदद करने के लिए प्रेरित किया है।

शिरीष आप्टे

मालगुजार लगभग दो शताब्दी पहले पूर्वी विदर्भ में स्थानीय जमींदार थे। उन्होंने जल संचयन के लिए कई टैंकों का निर्माण किया है साथ ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया था। उन्होंने 1950 से पहले इन टैंकों का निर्माण, स्वामित्व और रखरखाव किया था, लेकिन जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करने के बाद राज्य सरकार ने टैंकों का स्वामित्व ले लिया और टैंकों का इस्तेमाल करने वालों से जल कर वसूलना शुरू कर दिया।

मालगुज़ारों ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर किया, जिसके बाद 1000 से अधिक टैंकों को वर्षों तक बिना ध्यान दिए छोड़ दिया गया। यह तब तक था जब तक कि महाराष्ट्र में भंडारा जिले के लघु सिंचाई प्रभाग के एक कार्यकारी अभियंता शिरीष आप्टे ने 2008 में प्रवेश नहीं किया और लगभग दो साल के समय में इस तरह के पहले टैंक को बहाल कर दिया। इससे भूजल स्तर का पुनर्भरण हुआ और क्षेत्र में कृषि उत्पादन और मछली उत्पादन में वृद्धि हुई। अंततः जिला प्रशासन को भंडारा में लगभग 21 मालगुजारी टैंकों को बहाल करने के लिए प्रेरित किया।

 

HISTORY

Written By

Yashodhan Sharma

First published on: Aug 06, 2022 09:58 PM
संबंधित खबरें