Cancer Screening: स्क्रीनिंग रोक सकती है कैंसर से होने वाली मौतें, एक्सपर्ट्स से जानें इसके बारे में सबकुछ
Cancer Screening
Cancer Screening: कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। भारत में लंग्स और स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की एक रिपोर्ट्स में बताया गया है कि साल 2025 तक भारत में कुल कैंसर पीड़ितों की संख्या 15 लाख के पार हो जाएगी, जिसका सबसे ज्यादा शिकार तम्बाकू का सेवन (27.1%) करने वाले होंगे।
हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लंग्स कैंसर में लगभग 45% रोगियों को इसके बारे में तब पता चलता है जब यह शरीर के अन्य भागों में फैल चुका होता है। ऐसे में आपके लिए कैंसर को लेकर जागरुक रहने की जरूरत है। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय कैंसर स्क्रीनिंग है।
दरअसल, जल्दी कैंसर का पता लगाने से आपकी जान बच सकती है। कैंसर के कई रूप बाहरी लक्षणों के बिना शरीर में मौजूद हो सकते हैं, जिन्हें आप स्क्रीनिंग की मदद से पहचान सकते हैं और समय पर इलाज किया जा सकता है।
कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग कितनी महत्वपूर्ण है?
जब विशेष रूप से स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर में कैंसर का खतरा अधिक रहता है तो स्क्रीनिंग करना बेहद जरूरी हो जाता है। क्योंकि समय रहते जांच होने से कैंसर का उपचार और निदान आसानी से किया जा सकता है। कैंसर स्क्रीनिंग क्या है, इसके क्या फायदे हैं और कैंसर से निपटने में कैसे फायदेमंद है? इस बारे में हमने डॉ. तेजिंदर कटारिया ने बातचीत की है। डॉ. तेजिंदर कटारिया गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में विकिरण कैंसर विज्ञान सैंटर की चेयरपर्सन हैं।
कैंसर स्क्रीनिंग क्या है?
कैंसर स्क्रीनिंग एक ऐसा शब्द है, जिसका उपयोग कैंसर के लक्षण प्रकट होने से पहले ही पता लगाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग या तो पूर्व-कैंसर की स्थिति में होता है या कैंसर की बहुत शुरुआती स्थिति में होता है।
कैंसर से होने वाली मौतों में कुल मिलाकर 25% की कमी
कैंसर स्क्रीनिंग की मदद से ही संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1995-2015 के बीच की अवधि में कैंसर से होने वाली मौतों में कुल मिलाकर 25% की कमी दर्ज की है। इस अवधि के दौरान कोलोरेक्टल कैंसर में पुरुषों के लिए 47% तो वहीं महिलाओं के लिए 44%% की कमी कोलोनोस्कोपी दिशानिर्देशों और स्क्रीनिंग के कारण ही संभव हो सकती है। कैंसर स्क्रीनिंग टूल के रूप में ब्रेस्ट मैमोग्राफी का उपयोग किया गया। इसके उपयोग से महिलाओं में कैंसर की मृत्यु दर में 39% की गिरावट आई।
स्क्रीनिंग के दौरान क्या-क्या होता है
कैंसर गर्भाशय ग्रीवा को स्क्रीनिंग-पैप स्मीयर, जबकि कोलोरेक्टल कैंसर के लिए वार्षिक कॉलोनोस्कोपी की मदद से पहचाना जा सकता है। प्री-कैंसर से फ्रैंक कैंसर की प्रगति में 10-15 साल की समय लग सकता है। सर्वाइकल प्री कैंसरस चेंजेस (डिसप्लासिस) को स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा हटाया जा सकता है और यह कैंसर के स्पष्ट विकास को रोकता है।
इसी तरह, कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्वस्थ लोगों में विशेष रूप से पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्तियों में छोटे पॉलीप्स हो सकते हैं। जिन्हें कोलोनोस्कोपी के समय हटाया जा सकता है और यह कैंसर के गठन को रोकता है। इस तरह कैंसर को रोकने में स्क्रीनिंग मददगार साबित हो सकती है।
स्तन और फेफड़ों के कैंसर की पहचान हो सकती है
कैंसर स्क्रीनिंग की मदद से स्तन कैंसर और फेफड़ों के कैंसर की जांच उनके लक्षण दिखने से पहले ही की जा सकती है। स्तन मैमोग्राफी की सिफारिश 50 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं और कैंसर की घटना से 5 वर्ष पहले की जाती है। जो महिलाएं पिछले कई सालों से धूम्रपान कर रही हैं, वो समय-समय पर कैंसर स्क्रीनिंग कराते रहें, इससे कैंसर के फैलने का खतरा कम हो जाता है।
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