गर्भाशय में सूजन जिसे एंडोमेट्रियोसिस भी कहा जाता है इस स्थिति में गर्भाशय के बाहर वाले हिस्से में एक लेयर बन जाती है, जो कई बार गंभीर रूप ले लेती है। इसके कारण शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव भी होते हैं। भारत में इस बीमारी से 25 से 43 करोड़ महिलाएं प्रभावित हैं। इस बीमारी के बारे में कुछ लोग जानते हैं तो कुछ लोग नहीं जानते हैं। वहीं कई लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर कुछ मिथ भी फैले हुए हैं। जागरण इंग्लिश की रिपोर्ट के अनुसार, द्वारका में बिरला फर्टिलिटी और आईवीएफ की डॉ. शिल्पा सिंघल ने एंडोमेट्रियोसिस और उससे जुड़े तथ्यों और मिथ के बारे में क्या कहती हैं?
मिथक और तथ्य
मिथक- गर्भावस्था एंडोमेट्रियोसिस को ठीक करती है।
तथ्य- डॉक्टर बताती हैं कि गर्भावस्था के कारण हार्मोनल बदलाव होते हैं जो एक्टिव एंडोमेट्रियोटिक जमाव को दबा देते हैं, जिससे अस्थायी राहत मिलती है। वह कहती हैं कि ये इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
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मिथक- एंडोमेट्रीयोटिक सिस्ट को हटाने से स्थायी इलाज मिलता है।
तथ्य- डॉ. शिल्पा का कहना है कि एंडोमेट्रीयोटिक सिस्ट को हटाना जरूरी है, अगर वे 5 सेमी से बड़े हैं या गंभीर दर्द पैदा कर रहे हैं, जिसे दवा से ठीक नहीं किया जा सकता। वह कहती हैं कि इन सिस्ट में पुराना खून होता है और समय के साथ-साथ फिर से एक्टिव हो सकता है, खासकर युवा मरीजों में।
मिथक- एंडोमेट्रियोसिस से कैंसर का खतरा ज्यादा होता है।
तथ्य- डॉक्टर का कहना है कि एंडोमेट्रियोसिस का कैंसर से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, ये गंभीर दर्द का कारण बन सकता है और आपकी लाइफस्टाइल को खराब कर सकता है, लेकिन एंडोमेट्रियोटिक से कैंसर का खतरा नहीं होता है।
एंडोमेट्रियोसिस का इलाज
पेन किलर- इबुप्रोफेन जैसी नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स दर्द और सूजन को कम करने में मदद कर सकता है।
हार्मोनल थेरेपी- के लिए बर्थ कंट्रोल पिल्स, प्रोजेस्टिन और एरोमाटेज इनहिबिटर जैसी दवा को शामिल कर सकते हैं, जिससे इस बीमारी का प्रभाव कम हो सकता है।
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