वैश्विक सुरक्षा के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए वैज्ञानिकों और रक्षा विशेषज्ञों ने परमाणु विस्फोट की निगरानी के लिए अत्याधुनिक न्यूक्लियर डेटोनेशन डिटेक्शन सिस्टम (Nuclear Detonation Detection System-NDDS) को विकसित और तैनात करना शुरू कर दिया है। यह प्रणाली संभावित परमाणु धमाकों की तुरंत पहचान कर, उनकी प्रकृति और स्थान की सटीक जानकारी दे सकती है। न्यूक्लियर डिटोनेशन डिटेक्शन सिस्टम एक ऐसी प्रणाली है, जो परमाणु विस्फोटों का पता लगाने और उनकी पहचान करने के लिए डिजाइन की गई है। यह भूकंपीय तरंगों, हाइड्रो-ऑडियो संकेत और वायुमंडलीय रेडियोधर्मी कणों जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग करता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं परमाणु विस्फोट हुआ है या नहीं?
क्या है NDDS प्रणाली?
न्यूक्लियर डेटोनेशन डिटेक्शन सिस्टम (NDDS) एक ऐसा एडवांस टेक्निकल फ्रेमवर्क है, जिसमें उपग्रह, सीस्मिक सेंसर, इनफ्रारेड डिटेक्टर और वायुमंडलीय सेंसर शामिल होते हैं। यह प्रणाली धरती पर या उसके वायुमंडल में होने वाले किसी भी अप्राकृतिक विस्फोट को पहचानने में सक्षम है। परमाणु विस्फोट का पता लगाने वाली प्रणाली (NDDS) एक उपकरण या उपकरणों की एक श्रृंखला है, जो यह संकेत देने में सक्षम है कि परमाणु विस्फोट हुआ है और साथ ही यह विस्फोट की दिशा भी बता सकता है।NDDS प्रणाली न केवल तकनीकी उन्नति का प्रतीक हैं बल्कि ये शांति और सुरक्षा के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को भी दर्शाती हैं। यह भारत और विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच बन सकती है।
परमाणु डिटेक्टर कैसे काम करता है?
परमाणु डिटेक्टर परमाणुओं से बिखरने वाले फोटॉनों को महसूस करके उनकी गणना करते हैं। यह प्रतिदीप्ति विधि (Fluorescence Method) एक विशिष्ट आवृत्ति के लेजर प्रकाश के साथ परमाणुओं को रोशन करके और बिखरे हुए लेजर प्रकाश की मात्रा को मापकर काम करती है। परमाणु डिटेक्टर का उपयोग हवा में मौजूद परमाणुओं की संख्या को मापने के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग एक रासायनिक प्रतिक्रिया में शामिल परमाणुओं की संख्या को मापने के लिए भी किया जा सकता है। साथ ही इसके जरिए किसी सामग्री के परमाणु संरचना का अध्ययन भी किया जा सकता है।
NDDS की मुख्य विशेताएं क्या हैं?
- NDDS से वैश्विक स्तर पर परमाणु विस्फोट की निगरानी की जा सकती है।
- उपग्रह आधारित रिमोट डिटेक्शन।
- तापीय और रेडियोधर्मी बदलावों की पहचान।
- सिग्नल प्रोसेसिंग द्वारा परमाणु विस्फोट की पुष्टि।
परमाणु विस्फोट का पता लगाने के अलग-अलग तरीके
परमाणु विस्फोट का पता लगाने के कई अलग-अलग तरीके हैं, इनमें सीस्मोग्राफ, हाइड्रोएकॉस्टिक और इंफ्रासाउंड डिटेक्शन, एयर सैंपलिंग और सैटेलाइट शामिल हैं। इनकी अपनी कमजोरियां और ताकतें हैं, साथ ही अलग-अलग उपयोगिताएं भी हैं। इनमें से हर एक का अलग-अलग उपयोग किया गया है, लेकिन सबसे अच्छे परिणाम तब मिलते हैं जब डेटा का एक साथ उपयोग किया जाता है, क्योंकि विस्फोट के कारण उत्पन्न ऊर्जा विभिन्न माध्यमों में स्थानांतरित हो जाती है।
परमाणु विस्फोट का कैसे लगाया जा सकता है पता?
परमाणु विस्फोट का पता लगाने के कई तरीके हैं, जिनमें सीस्मोग्राफ, रेडियोधर्मी पदार्थों का पता लगाना, और जलगत निगरानी शामिल हैं।
- सीस्मोग्राफ: सीस्मोग्राफ भूकंप के झटकों की निगरानी करते हैं और वैज्ञानिक इन झटकों के पैटर्न का विश्लेषण करके यह पता लगा सकते हैं कि कोई परमाणु विस्फोट हुआ है या नहीं।
- रेडियोधर्मी पदार्थों का पता लगाना: परमाणु विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ हवा में फैलते हैं, जिन्हें विमान या रेडियोन्यूक्लाइड स्टेशनों द्वारा एकत्र किया जा सकता है। इन पदार्थों में अमेरिकियम-241, आयोडीन-131, सीजियम-137, क्रिप्टन-85, स्ट्रोंटियम-90, प्लूटोनियम-239, ट्रिटियम और जेनॉन शामिल हैं।
- जलगत निगरानी: महासागरों में परमाणु विस्फोटों का पता लगाने के लिए हाइड्रोएकॉस्टिक निगरानी प्रणाली का उपयोग किया जाता है। यह प्रणाली महासागरों में ध्वनि तरंगों की निगरानी करती है और वैज्ञानिक इन तरंगों के पैटर्न का विश्लेषण करके यह पता लगा सकते हैं कि कोई परमाणु विस्फोट हुआ है या नहीं।
- अंतरराष्ट्रीय निगरानी प्रणाली (IMS): यह प्रणाली दुनिया भर में कई प्रकार के सेंसर का उपयोग करके परमाणु विस्फोटों का पता लगाने के लिए डिजाइन की गई है।
- हालांकि, इस की कुछ कमजोरियां भी है, क्योंकि परमाणु विस्फोट और भूकंप के झटकों के बीच अंतर करना कभी-कभी मुश्किल होता है, खासकर यदि विस्फोट और भूकंप का केंद्र पास में हो।
भारत की क्या है भूमिका?
भारत पहले ही Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty (CTBT) का समर्थन करता है, लेकिन उसका सदस्य नहीं है। हालांकि, भारत अब इस तरह की निगरानी प्रणालियों के विकास और डेटा साझा करने में अहम भूमिका निभा रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) इस परियोजना पर मिलकर काम कर रहे हैं। आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर कोरिया, ईरान जैसे देशों की गतिविधियां वैश्विक चिंता का विषय बनी हुई हैं। ऐसे में NDDS जैसे सिस्टम संभावित परमाणु खतरे को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये सिस्टम न केवल विस्फोट की जानकारी देते हैं बल्कि उसके पीछे की तकनीकी जटिलताओं को भी उजागर करने में मदद करते हैं।