Financial Action Task Force: फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) जल्द ही भारत में अपनी टीम भेज सकता है। रिपोर्टस के मुताबिक एनजीओ और सिविल सोसायटी पर दबाव डालने के लिए भारत एफएटीएफ (FATF) की जांच के दायरे में आ सकता है। यह बात अमेरिकन मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग के आर्टिकल में कही गई है। ब्लूमबर्ग ने घटनाक्रम से जुड़े दो अधिकारियों का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी कि एफएटीएफ भारत के कानूनों का एनजीओ और सिविल सोसाइटी ग्रुप्स के कामकाज पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को देखना चाहता है।
यह भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। एफएटीएफ को लेकर भारत में अक्सर चर्चा होती रहती है। यह अपने ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट को लेकर सुर्खियों में रहता है। इसकी ग्रे और ब्लैक लिस्ट में जाने के नाम से ही देश डरते हैं। सवाल उठता है कि यह एफएटीएफ है क्या और इसकी ब्लैक और ग्रे लिस्ट का मतलब क्या है? बड़ा सवाल है कि एफएटीएफ की टीम भारत क्यों आ रही है। हालांकि यह बहुत मुश्किल है कि एफएटीएफ भारत के खिलाफ कोई कदम उठा पाएगा।
एफएटीएफ का मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है और इसे ग्लोबल वाचडॉग की तरह देखा जाता है। इसका काम दुनियाभ में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण यानी टेरर फाइनेंसिंग को रोकना है। पाकिस्तान कई बार इसकी ग्रे लिस्ट में जा चुका है। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को एफएटीएफ की लिस्ट से निकाल दिया गया था। कहा जा रहा है कि रूस इसकी ब्लैक लिस्ट में भी डाला जा सकता है। इसकी व्हाइट लिस्ट वाले देश वे होते हैं जहां टेरर फाइनेंसिंग बिल्कुल भी नहीं होती है। रूस के निकाले जाने के बाद आरोप लगे कि एफएटीएफ का राजनीतिकरण हो गया है।
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क्या है एफएटीएफ और इसका काम
एफएटीएफ वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी रखने वाली संस्था है। इसकी स्थापना 1989 में जी7 देशों की पहल पर की गई थी। यह अंतरराष्ट्रीय मानक तय करता है, जिसका मकसद इन अवैध गतिविधियों और उनसे समाज को होने वाले नुकसान को रोकना है। कोई भी देश नहीं चाहता है कि इसकी ग्रे या ब्लैक लिस्ट में रहे। ब्लैक और ग्रे लिस्ट वाले देशों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे आइएमएफ, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक आदि से आर्थिक मदद भी नहीं मिल पाती।
ग्रे, ब्लैक और व्हाइट लिस्ट का मतलब
जिन देशों में टेरर फंडिंग और मनी लान्ड्रिंग सबसे ज्यादा होती है उन देशों को एफएटीएफ अपनी ग्रे लिस्ट में डाल देता है। ग्रे लिस्ट वाले देश एफएटीएफ के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं तो वहीं ब्लैक लिस्ट में वाले देश आतंक और टेरर फंडिंग को खत्म करने में एफएटीएफ का साथ नहीं देते हैं। ग्रे लिस्ट वाले देश वे होते हैं जहां टेरर फाइनेंसिंग कम होती है, जबकि ब्लैक लिस्ट वाले वे देश होते हैं जहां बड़े पैमान पर टेरर फाइनेंसिंग होती है। इसकी व्हाइट लिस्ट वाले देश वे होते हैं जहां टेरर फाइनेंसिंग बिल्कुल भी नहीं होती है। पाकिस्तान पहले इसकी ग्रे लिस्ट में था, लेकिन आज पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से बाहर हो गया है। भारत पाकिस्तान को एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में डालने की अक्सर मांग करता रहा है।
सिविल सोसाइटी और एनजीओ पर आरोप
आरोप हैं कि भारत के कई गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। देशों में सिविल सोसाइटी और गैर सरकारी संगठनों को लेकर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। इनपर दूसरे देश द्वारा फंडिंग लेकर अन्य देश के विकास में बाधा डालने के भी आरोप लगते रहे हैं। हालांकि सिविल सोसाइटी और एनजीओ बहुत से अच्छे काम भी करते हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनमें से कुछ गलत भी करते हों। दरअसल सिविल सोसाइटी नागरिक समाज का वह दायरा है, जिसमें सामाजिक संगठन, कार्यकर्ता बुद्धिजीवी और एनजीओ आदि आते हैं। कुल मिलाकर यह बहुत ताकतवर होता है और किसी के भी पक्ष और विपक्ष में माहौल बनानें का दम रखता है।
किस बात के लिए आगाह किया था एनएसए डोभाल ने
साल 2021 में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी इसे लेकर बयान दिया था। डोभाल ने कहा था कि महंगा होने और अनिश्चित परिणाम होने की वजह से युद्ध अब राजनीतिक और सैन्य मकसद को हासिल करने का कारगर जरिया नहीं रहा। उन्होंने कहा था कि आज के समय में जंग का नया मोर्चा सिविल सोसाइटी को अपने काबू में लेकर किसी देश के राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाना है। उन्होंने इसे ‘फोर्थ जेनरेशन वॉरफेयर’ बताया था। साथ ही उन्होंने ट्रेनी आईपीएस अधिकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस नए तरह के खतरे को लेकर आगाह भी किया था। डोभाल ने कहा था कि सिविल सोसाइटी चौथी पीढ़ी के युद्ध का औजार है। आईपीएस अधिकारियों को देखना होगा कि इसके जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा पैदा न हो।
बता दें कि गैर सरकारी संगठन सिविल सोसाइटी के अंतर्गत ही आते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी सिविल सोसाइटी या एनजीओ गलत काम करते हैं। इनके बहुत से ऐसे काम हैं, जिससे देश के लोगों को फायदा हुआ है। लेकिन यह भी आरोप लगते हैं कि दूसरा देश सिविल सोसाइटी को फंड देकर दूसरे देश के विकास में बाधा बन सकता है। हाल के दिनों में ऐसी चिंताएं बढ़ी हैं।
क्या था अजीत डोभाल के कहने का मतलब
एनएसए अजीत डोभाल के कहने का मतलब भी यही था कि विरोधी देश सिविल सोसाइटी के माध्यम से हमारे राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह कई संवेदनशील मुद्दों को लेकर लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है। जैसे मान लीजिए कि भारत में कोई सड़क, एक्सप्रेसवे, बांध या किसी बड़ी परियोजना पर काम होने वाला है, तो दुश्मन देश जैसे चीन इसे रोकना चाहता है तो चीन इस परियोजना को रोकने के लिए सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कर सकता। वह किसी सिविल सोसाइटी या एनजीओ को पैसे देकर उसे इसके खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन करने के लिए खड़ा कर सकता है। इस तरह से चीन काफी हद तक उसे रुकवा भी सकता है। इस प्रकार दूसरे देश के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचता है। इसे किसी युद्ध से कम नहीं कहा जा सकता क्योंकि दुश्मन देश बिना अपना नाम उजागर हुए आपके देश को नुकसान पहुंचाता रहेगा।
कानून बदलने के बाद एनजीओ का आरोप
इसी को देखते हुए भारत सरकार ने 2020 और 2022 में विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act) में कई बदलाव कर दिए, ताकि विदेशी एनजीओ जिन्हें देश के बाहर से पैसा मिल रहा है को लाइसेंस लेना पड़े। इसमें कई तरह के नियम बना दिए गए। इसके बाद कई एनजीओ के आरोप हैं कि उन्हें आसानी से फंडिंग नहीं मिल पा रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे एनजीओ ने भी एफएटीएफ से इसे लेकर शिकायत की। इसका कहना था कि भारत सरकार द्वारा बनाए गए नए कानूनों से वहां के एनजीओ को विदेशी फंडिंग नहीं मिल पा रही है। एफएटीएफ की टीम के आने की वजह इसे ही चेक करना हो सकता है। हालांकि इस बात की बहुत कम आशंका है कि एफएटीएफ भारत के खिलाफ कुछ कदम उठा पाएगा। हालांकि अभी साफ तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि एफएटीएफ की टीम भारत क्यों आ रही है और यहां क्या-क्या करेगी।
ब्लैक लिस्ट वाले देश
एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में उत्तर कोरिया, ईरान और म्यांमार जैसे देश हैं।
ग्रे लिस्ट वाले देश
एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में अल्बानिया, बारबाडोस, बुर्किना फासो, कैमरून, केमन द्वीपसमूह, क्रोएशिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, जिब्राल्टर, हैती, जमैका, जॉर्डन, माली, मोज़ाम्बिक, नाइजीरिया, पनामा, फिलिपींस, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण सूडान, सीरिया, तंजानिया, तुर्किये, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम और यमन हैं। पहले पाकिस्तान भी इसकी ग्रे लिस्ट में था लेकिन बाद में उसे इससे बाहर कर दिया गया। पाकिस्तान को 2018 में इसकी ग्रे लिस्ट में डाला गया था लेकिन अक्टूबर 2022 में उसे इससे बाहर कर दिया गया था। पाकिस्तान 4 साल इसकी लिस्ट में रहा। इसकी लिस्ट से बाहर होना पाकिस्तान के लिए अच्छी खबर थी।
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