Despatch Movie Review: (Ashwani Kumar) ओटीटी ने एक्टर्स को स्टारडम दिया है और ऐसी कहानियों को प्लेटफॉर्म, जिसके लिए कम से कम थिएटर्स तो तैयार नहीं है। हम अक्सर कहते हैं कि इंडियन सिनेमा वाले हमको सेंसिबल स्टोरी नहीं देते… लेकिन सच ये है कि सेंसिबल सिनेमा को थिएटर्स में ऑडियंस नसीब नहीं होती। वहां चलती है – मास फिल्में, हैवी स्टारडम वाला एक्शन और डांस… पिछले 5 साल के ट्रैक रिकॉर्ड से जाहिर है। ऐसे में सेंसिबल सिनेमा को ओटीटी स्पेस दे रहा है। मनोज बाजपेयी जैसे एक्टर्स को सिर्फ तारीफों से नहीं, बल्कि भोंसले से लेकर, फैमिली मैन, एक बंदा ही काफी है, गुलमोहर, जोरम से लेकर ये काफिला – डिस्पैच तक आ पहुंचा है।
कैसी है फिल्म की कहानी?
तितली और आगरा जैसी फिल्मों कनू बहल ने पैरेलल और हार्ट हिटिंग फिल्मों की एक नई लकीर खींची है, जहां उनका सिनेमा – किसी लकीर पर नहीं चलता, लेकिन जिंदगी के आड़े-तिरछे किरदारों और हालात की कहानी कहता है। कनू का हीरो, फाइट नहीं करता… समाज से नहीं लड़ता, रोमांस भी नहीं करता, ना ही विलेन होता है, जो किसी डॉन के डेन से अपना राज चलाए। ये आपके पड़ोसी सा होता है…जिसे आप पसंद भले ही ना करें, लेकिन पीछा भी नहीं छुड़ा सकते।
क्राइम जर्नलिस्ट का किरदार निभा रहे मनोज
डिस्पैच की कहानी एक क्राइम जर्नलिस्ट – जॉय बाग की कहानी है, जो एक नंबर-3 न्यूज पेपर – डिस्पैच में काम करता है। डिजिटल के तूफान में, ट्विटर के जर्नलिज्म के बीच जॉय अब भी ट्रेडिशनल क्राइम रिपोर्टिंग का तरीका अपनाता है। पुलिस वालों की दुखती रग़ पकड़कर, उनके साथ आधी रात को एनकाउंटर पर जाता है और तस्वीर खींचने के चक्कर में पिट भी जाता है। उससे आगे जॉय, पुलिस कनेक्शन का इस्तेमाल करके खुद को पीटने वाले प्यादे को लॉकअप के अंदर पीटकर भी आता है। बहुत हद तक जॉय बाग की कहानी, मुंबई के बेहद फेमस क्राइम एंड अंडरवर्ल्ड जर्नलिस्ट जे डे की कहानी से इंस्पायर्ड है।
लेकिन इशानी बनर्जी के साथ मिलकर कनू बहल ने इस कहानी के किरदार को थोड़ा मोरली करप्ट भी बनाया है, जो बीवी से इसलिए डिवोर्स चाहता है क्योंकि वो उसकी मां और भाई के साथ नहीं रहना चाहती। लेकिन अपनी एक जूनियर के साथ वो पार्किंग का शेर बनकर, कार सेक्स करने से नहीं चुकता। और उसके साथ रहने के लिए एक कॉन्ट्रैक्टर के खिलाफ़ सबूत का इस्तेमाल करके, एक फ्लैट का जुगाड़ करता है… क्योंकि उसकी गर्लफ्रैंड को भी – मां और भाई, साथ में उनके मछली खाने से एलर्जी है।
मनोज की एक्टिंग शानदार
एक्सक्लूसिव और एक्सप्लोसिव न्यूज की चाहत में जॉय एक ऐसे मकड़जाल में फंसता चला जाता है, जहां 2G स्कैम से होते हुए, IPL चीफ़ का लंडन में जाकर छिपना, और उसके पीछे शेल कंपनीज़ के ज़रिए मीडिया को खरीदने को कोशिश और लाखों करोड़ों का खेल है। इस गुत्थी को सुलझाने के फेर जॉय गुड़गांव से होता हुआ, लंडन तक पहुंच जाता है। अपनी जान छुड़ाने की कोशिश में, वो जो कदम उठाता है, वो इस जाल में और उलझता चला जाता है।
अब ये कहानी, जिसके पीछे जॉय पड़ा है, ये उतनी ही धुंधली है, जितनी जॉय के जर्नलिस्टिक मोरल ग्राउंड की लकीर। आप समझते तो ये हैं कि ये इतना बड़ा खेल है कि जिसमें हर किसी के हाथ गंदे हैं, लेकिन कोई भी इसे पूरा नहीं समझता। लेकिन आप भी इस फाइल और फैक्ट की लकीर को समझ नहीं पाएंगे।
हां, जॉय की रंगरलियों, उनको मिल रहे धोखों, उसकी बेचैनी को आप समझते जाएंगे और आपको समझ ये भी आएगा कि कॉरपोरेट फ्रॉड, पॉलिटिकल करप्शन और मीडिया मैनिपुलेशन के इस खेल में – आखिरी सच तक पहुंचते-पहुंचते सांस छूट जाती है।
फिल्म की एंडिंग पर कई मोड़
कनू बहल की फिल्म आपको किसी नतीजे पर नहीं पहुंचाती, बल्कि एक ऐसे मोड़ पर छोड़कर चली जाती है – जहां आप बदहवास खड़े रहते हैं और सोचते हैं कि इस सारी दौड़-भाग, मशक्कत का क्या फायदा? यही Despatch का मकसद भी है। जॉय के किरदार में मनोज बाजपेयी ने सारे परदे गिरा दिए हैं और वो इसलिए नहीं क्योंकि उन्हे अपने किरदार को सेक्सिएस्ट साबित करना था। बल्कि ये जाहिर करना था, कि इस क्राइम जर्नलिस्ट को आप हीरो ना समझे, इसमें खामियां कम नहीं है।
जॉय के किरदार में मनोज वाजपेयी ने खुद को फिर से छोड़ दिया है, आपको वो एक्टर नजर ही नहीं आता। अर्चिता अग्रवाल इस मुश्किल रोल में कहीं से पीछे नहीं हटी हैं, लगता ही नहीं ये उनकी पहली फिल्म है। शहाना गोस्वामी ने अपने तीनों सीन्स में बहुत गहरा असर छोड़ा है। ऋतुपर्णा सेन ने अपने हर सीन में मिस्ट्री छोड़ी है, जिससे डिस्पैच और भी उलझता है।
ये ओटीटी का कमाल ही है, कि ऐसी कहानियों को जगह मिल रही है, जो बिल्कुल वैसी हैं – जैसे हमारी आज की दुनिया। गालियां और सेक्स सीन्स इस 2 घंटे 33 मिनट की फिल्म में भर-भरकर है तो ईयरफोर और मोबाइल स्क्रीन पर ही टिके रहने की वार्निंग देना ज़रूरी है।
डिस्पैच को 5 में से 3 स्टार।
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