Apurva Review: पांच फिल्म पुरानी तारा सुतारिया को बॉलीवुड की ग्लैम डॉल से ज़्यादा अहमियत कभी नहीं मिली। वैसे भी तारा ने जैसे इस ग्लैम इमेज को ही अपनी पहचान बना लिया। स्टूडेंट्स ऑफ द ईयर 2 से डेब्यू करने वाली तारा को अब 4 साल बाद अपने करियर में ऐसा किरदार मिला है, जिसने सबको हैरत में डाल दिया है। डिज्नी हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही अपूर्वा (Apurva Review) से तारा के करियर ने एक जबरदस्त यू-टर्न ले लिया है। अपूर्वा कई मायने में खास फिल्म है। पहला यह कि ये फिल्म सिर्फ एक दिन और एक रात की कहानी है। दूसरा फिल्म में कोई बड़ा स्टार चेहरा नहीं है। तीसरा ये कि फिल्म को शूट करने के लिए किसी को देश के पार नहीं जाना पड़ा है, पूरी फिल्म चंबल, एक हाईवे और एक शहर में शूट हो गई है। चौथी ये कि अगर डायरेक्टर के पास विजन हो, तो कैसी भी मामूली फिल्म को वह कितना भी शानदार बना सकते हैं।
दमदार और दिलचस्प कहानी
अपूर्वा की कहानी बस इतनी सी है कि एक लड़की, अपने होने वाले पति को बर्थडे का सरप्राइज देने के लिए चंबल से एक प्राइवेट बस में आगरा जा रही है, जिसे रास्ते में चार गुंडे, बस को लूटने के दौरान किडनैप कर लेते हैं। उन चार वहशियों के बीच से वह लड़की अपूर्वा ना सिर्फ बचती है, बल्कि उसी एक रात के दौरान उनसे बदला भी लेती है। अब इस बेसिक सी कहानी में, थोड़ा फ्लैशबैक है, जिसमें अपूर्वा का सिड के घर लड़का देखने आना है। समोसा लड़के ने बनाए हैं या खरीदें हुए हैं, ऐसे शरारती सवाल पूछना। थोड़ा सा रोमांस का फीडबैक, जिसमें लड़की के करियर के सपने भी शामिल हैं और फिर कहानी में वर्तमान मोड में आ जाती है, जिसमें जुगनू भैया के साथ सूखा और उसके दो बेहरम दोस्तों की करतूत है। चंबल के डकैत के मॉर्डन वर्जन बने इन डकैतों का वहशी रंग है, जिसमें लड़की को किडनैप करना, उसका सेक्स वीडियो बनाने की कोशिश करने वाली दहशत भरी परिस्थितियां शामिल हैं।
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निखिल नागेश भट्ट ने फिसलने नहीं दी कहानी
अपूर्वा की कहानी में बहुत कुछ नहीं है, बस सबकुछ सिचुएशनल है, जिसमें लड़की अपनी जान और अस्मत को बचाने के लिए न सिर्फ उन वहशियों से भिड़ जाती है, बल्कि उन्हें एक-एक करके उनके अंजाम तक पहुंचाती है। इस बीच गुंडों और अपूर्वा के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता है। डायरेक्टर निखिल नागेश भट्ट एक लम्हे के लिए भी फिल्म को फिसलने नहीं देते हैं, सिचुएशन और किरदारों के एक्शन में ड्रामा से ज्यादा असलियत लगती है, जो दिल को और भी ज्यादा दहलाती है। यही स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन की जीत है। फिल्म की लोकेशन भी रियलिस्टिक है, कैमरावर्क, लाइटिंग सब कुछ कहानी के हिसाब से।
कॉमेडियन से हटकर छवि में खिले राजपाल यादव
परफॉरमेंस के तौर पर यह कहानी तारा सुतारिया के किरदार के नाम पर है और तारा ने इस किरदार के लिए पूरी ताकत लगा दी है। इस मेहनत ने स्क्रीन पर, जबरदस्त असर दिखाया है और यहां से तारा के करियर की भी नई राह खुलेगी। जुगनू भैया बने राजपाल यादव को यूं देखने का एहसास कमाल का है, वरना फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हे सिर्फ कॉमेडियन की पहचान तक सिमटा रखा है। सूखा बने अभिषेक बनर्जी किरदार को ओढ़े बैठे है, पाताल-लोक वाला असर उनका कायम है। अपूर्वा के मंगेतर बने धैर्य करवा के पास बहुत कुछ कर दिखाने का मौका नहीं था, हालांकि सुमित गुलाटी का काम फिल्म में शानदार है। अपूर्वा का ओटीटी पर रिलीज होना भी तारा के हक में जाता है, जिससे उनके ऊपर फिल्म के कलेक्शन का प्रेशर नहीं आने वाला।
अपूर्वा को 3 स्टार।