क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि यूरोपीय संघ ने अपने 45 करोड़ नागरिकों को किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है। यूरोप, रूस के रुख और डोनाल्ड ट्रंप की बढ़ती टैरिफ नीतियों से आशंकित है। यदि दुनिया अब किसी नए युद्ध में घिरती है, तो एक नया आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो जाएगा।
इस वजह से बढ़ा खतरा
यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा का कहना है कि रक्षा के बिना शांति एक भ्रम है। ब्रुसेल्स में यूरोपीय नीति केंद्र के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि रूस यह मानता है कि यूक्रेन की सीमाएं मानचित्र पर एक रेखा मात्र हैं, तो वह दूसरे देशों की सीमाओं का सम्मान क्यों करेगा? दरअसल, रूस की ओर से लगातार बढ़ते खतरे के कारण यूरोपीय लीडर्स युद्ध की तैयारी के महत्व पर जोर दे रहे हैं।
एकजुटता की अपील
यूरोपीय संघ ने लोगों को 72 घंटों के लिए पर्याप्त भोजन, पानी और आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करने की सलाह दी है। वैसे, इसे यूरोपीय रणनीति का एक हिस्सा बताया जा रहा है। लेकिन अमेरिका और रूस से यूरोप के बढ़ते टकराव के मद्देनजर इसके अलग मतलब भी निकाले जा रहे हैं। वहीं, नाटो महासचिव मार्क रूट ने यूरोपीय देशों से एकजुटता की अपील की है, क्योंकि अमेरिका ने चेतावनी दी है कि यूरोप को भविष्य में अपनी सुरक्षा का ध्यान स्वयं रखना होगा।
बिगड़ रहे हैं रिश्ते
यूरोपीय संघ ने अपने 27 सदस्य देशों को किसी भी संकट से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है। मौजूदा वक्त में अमेरिका और यूरोप के रिश्ते तेजी से बिगड़ रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप लगातार यूरोप के खिलाफ फैसले ले रहे हैं और उनके सहयोगी एलन मस्क बयानबाजी कर रहे हैं। इससे यूरोपीय देशों में एक डर उत्पन्न हो गया है। इसके अलावा, जिस तरह से ट्रंप यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ पेश आए हैं, उसे लेकर भी यूरोप में गुस्सा है। ऐसे में EU की चेतावनी किसी बड़े संकट की तरफ ही इशारा कर रही है।
भारत को ऐसे होगा नुकसान
अगर रूस, यूरोपीय देश और अमेरिका किसी बड़े टकराव की तरफ बढ़ते हैं, तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। भारतीय बाजार ट्रंप के टैरिफ से उत्पन्न दबाव से बाहर निकल रहा है, किसी नए संकट का मतलब होगा बाजार का वापस उसी अवस्था में लौट जाना। युद्ध जैसी स्थिति में नुकसान केवल संबंधित देशों तक ही सीमित नहीं रहता। भारत के अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं, उन पर भी सीधा असर पड़ेगा और अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ेगा।
भारत को ऐसे मिलेगा फायदा
इस संकट से भारत की उन कंपनियों को जरूर सीधे फायदा मिल सकता है, जो यूरोपीय देशों को डिफेंस इक्विपमेंट की सप्लाई करती हैं। मौजूदा समय में भारत की कई कंपनियां यूरोप को सैन्य हथियार भेजती हैं। संभावित संकट के मद्देनजर यूरोप से इन कंपनियों को अधिक ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। इस स्थिति में इन कंपनियों के शेयर भी उछाल मार सकते हैं। वैसे भी डिफेंस स्टॉक इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं। क्योंकि रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को घरेलू स्तर पर भी कई ऑर्डर मिले हैं।
क्या है री-आर्म प्लान?
कुछ वक्त पहले खबर आई थी कि यूरोपीय देशों ने ‘री-आर्म’ प्लान का ऐलान किया है। इसके तहत 800 अरब यूरो का पैकेज जारी किया जाएगा और हथियार जुटाकर यूक्रेन की मदद की जाएगी। इससे एक तरफ जहां रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द खत्म होने की संभावना कम हो गई है। वहीं, रक्षा खरीद में तेजी देखने को मिल सकती है। इस स्थिति का फायदा कई भारतीय कंपनियों को भी मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर पीटीसी इंडस्ट्रीज लिमिटेड डिफेंस सेक्टर की लीडिंग कंपनी है। PTC पहले से ही यूरोपीय कंपनियों के लिए ऑर्डर पूरे करती रही है। यूरोप के ‘री-आर्म’ प्लान का फायदा इसे मिल सकता है। एयरबस, रोल्स रॉयस और प्रैट एंड व्हिटनी के साथ साझेदारी इसकी वैश्विक उपस्थिति को मजबूत करती है।
ये कंपनियां भी हैं शामिल
इसी तरह, गोला-बारूद और विस्फोटक बनाने वाली कंपनी सोलर इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड एक बड़ा नाम बन गई है। कंपनी की ऑर्डर बुक करीब 13,000 करोड़ रुपये की है, जिसमें लगभग आधी हिस्सेदारी निर्यात की है। कंपनी को हाल ही में Pinaka रॉकेट सिस्टम और Bhargavastra काउंटर ड्रोन सिस्टम का ऑर्डर मिला है। डायनामैटिक टेक्नोलॉजीज लिमिटेड डिफेंस और एयरोस्पेस दोनों क्षेत्रों में आक्रामक रूप से विस्तार कर रही है। जर्मनी में कंपनी की फाउंड्री आइसेनवेर्क एर्ला जीएमबीएच यूरोपीय बाजारों के लिए आर्टिलरी सप्लाई कर सकती है। कंपनी ने एयरबस, डसॉल्ट, बेल और ड्यूश के साथ अपनी साझेदारी को भी मजबूत किया है। आजाद इंजीनियरिंग, माझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड भी इस सेक्टर से जुड़ी दिग्गज कंपनियां हैं।
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