---विज्ञापन---

अमेरिकी लोकतंत्र को कहां से मिलती है मजबूती?

Bharat Ek Soch: अमेरिका के लोकतंत्र में कुछ गंभीर कमियां भी हैं। इसके बावजूद इस देश के लोकतंत्र को मजबूती कहां से मिलती है? आइए इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश करें।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Nov 4, 2024 22:46
Share :
US Election 2024
भारत एक सोच।

Bharat Ek Soch: अमेरिका में ऐसा क्या है- जिसकी वजह से दुनियाभर के बेस्ट टैलेंट और टेक्नोक्रेट को अपने सपने वहां पूरा होते दिखते हैं? अमेरिका में आखिर ऐसा क्या है- जिसने उसे दुनिया का सुपर पावर बना दिया? एक जमाने से दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति का ताज अमेरिका के सिर पर है। आज हम समझने की कोशिश करेंगे कि अमेरिकी लोकतंत्र और राष्ट्रपति चुनाव में कौन-कौन से फैक्टर ड्राइविंग सीट पर रहे हैं, बने हुए हैं और बने रहेंगे? कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप में से किससे डील करना दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए बेहतर रहेगा? क्या ट्रंप व्हाइट हाउस पहुंचने में कामयाब रहे तो विदेशियों को बाहर निकलवा देंगे।

शक्तियों का बंटवारा

सबसे पहले बात करते हैं कि अमेरिकी लोकतंत्र को मजबूती कहां से मिलती है? तमाम झंझावातों के बीच अमेरिकी लोकतंत्र मजबूती से किस तरह खड़ा है? इसमें पहले नंबर है- शक्तियों के बंटवारा और एक-दूसरे पर नियंत्रण रखने का संविधान से निकला मैकेनिज्म। अमेरिकी संविधान की सबसे बड़ी खासियत ये है कि देश को चलाने वाली कार्यपालिका यानी राष्ट्रपति, विधायिका यानि संसद और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का साफ-साफ बंटवारा है। दूसरे नंबर पर है- वहां का सुप्रीम कोर्ट। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक लिए सबसे सशक्त स्तंभ की तरह खड़ा है। तीसरे नंबर पर है- वहां का संघीय ढांचा, जिसमें तमाम भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विषमताओं के बावजूद सबको एक सूत्र में बांधने के लिए राज्यों को बहुत शक्तियां मिली हैं। चौथे नंबर पर है- वहां का मीडिया…जो इतना ताकतवर है कि मुश्किल हालात में अपने बुनियादी सिद्धांतों को बरकरार रखता है।

---विज्ञापन---

ये भी पढ़ें: अमेरिका में किस तरह स्थापित हुआ लोकतंत्र, दुनिया को कैसे दिखाया समानता और न्याय का रास्ता?

अमेरिकी लोकतंत्र में लॉबिंग कल्चर

अमेरिकी लोकतंत्र में कई खासियत होने के बावजूद कुछ गंभीर कमियां भी हैं। मसलन, वहां के चुनावी सिस्टम में पैसे का बहुत बोलबाला है। किसी भी उम्मीदवार को चुनाव में उतरने के लिए बहुत मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। दो दलीय व्यवस्था होने की वजह से ऐसे उम्मीदवारों को ही पार्टियां आगे करती हैं- जो फंड जुटाने में असरदार हों। इससे अमेरिकी लोकतंत्र में लॉबिंग कल्चर को बढ़ावा मिलता है। अमेरिकन पॉलिटिक्स को प्रभावित करनेवाली ऐसी ही एक लॉबी है- नेशनल राइफल एसोसिएशन यानी NRA अमेरिकी पॉलिटिक्स और इकोनॉमी को समझने वाले कहते हैं कि NRA ने खुलेआम अमेरिकी सांसदों की ग्रेडिंग करता है। इसके तहत A+, A, B, C, D, F की ग्रेडिंग है। A+ उस सांसद को दी जाती है जो NRA के पक्ष में वोटिंग करता है और गन लॉ को बनाए रखने की वकालत करते हैं।

---विज्ञापन---

ये भी पढ़ें: US Election में क्या भारतीय अमेरिका समुदाय के हाथों में है ‘White House’ की चाबी?

पॉलिटिकल फंडिंग

ग्रेडिंग के आधार पर ही पॉलिटिकल फंडिंग की बातें भी सामने आती हैं। टेस्ला के मालिक एलन मस्क खुलकर ट्रंप के साथ खड़े हैं तो बिल गेट्स कमला हैरिस को समर्थन कर रहे हैं। उद्योगपतियों ने भी अपने नफा-नुकसान के हिसाब से पाला चुन रखा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सांसदों के चुनाव का रास्ता लॉबिंग और कंपनियों की पॉलिटिकल फंडिंग से होते हुए गुजरेगा तो आम आदमी के मुद्दों की बात कितनी होगी? चुने हुए प्रतिनिधि अमेरिकी संसद में किसके हितों का ख्याल रखेंगे?

अमेरिकी राइफल एसोसिएशन की ओर से रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों को ही मोटी फंडिंग मिलती रही है। FORBES की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 के Presidential campaign में राइफल एसोसिएशन ने डोनाल्ड ट्रंप के प्रचार अभियान में 3 करोड़ डॉलर खर्च किया था। साल 2020 के चुनाव में भी प्रचार अभियान में मोटा खर्च किया। शायद डॉलर का ही कमाल है कि डोनाल्ड ट्रंप जमकर NRA की तारीफ करते हैं। उसे अमेरिका की BACKBONE यानी रीढ़ की हड्डी बताते हैं। अमेरिका में गन कल्चर एक बड़ा मुद्दा है और हाल ही में इसी गन कल्चर की उपज एक बीस साल के युवा ने डोनाल्ड ट्रंप पर भी गोली चला दी।

यह भी पढ़ें : बीजेपी-शिवसेना राज में मातोश्री कैसे बना महाराष्ट्र का पावर सेंटर?

लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन

उनकी किस्मत अच्छी रही कि गोली कान को छूते हुए निकल गई। इतिहास गवाह रहा है कि राष्ट्रपति रहते अब्राहम लिंकन, जेम्स गारफील्ड, विलियम मैककिनले और जॉन एफ कैनेडी की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। The Great America में हथियार खरीदने की प्रक्रिया कुछ वैसी ही है- जैसी हमारे देश में मोबाइल फोन का सिम खरीदना। ऐसे में प्रभावशाली हथियार लॉबी के खिलाफ जाने की हिम्मत न तो सत्ताधारी पार्टी जुटा पाती है और ना ही विरोधी पार्टी। इस कड़ी में एक और घटना का जिक्र करना जरूरी है। वो साल 2021 का था…महीना जनवरी का। राष्ट्रपति चुनाव के बाद अमेरिका में ट्रंप समर्थक सड़कों पर आ गए। ट्रंप हार मानने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में दुनियाभर में लोकतंत्र के झंडाबरदार की भूमिका में रहे अमेरिकी संसद पर जब 6 जनवरी को हमला हुआ, तो वहां के अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा-Trump Mob Storms Capital… डोनाल्ड ट्रंप की उकसाई भीड़ संसद भवन में घुस गई। उग्र रिपब्लिकन कार्यकर्ता हथियारों के साथ संसद में दाखिल हो गए। अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में इसे Black Day यानी काला दिन कहा गया।

ट्रंप समर्थकों की याचिकाएं

अमेरिकी प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में इस बार मुकाबला बिल्कुल कांटे का है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि हो सकता है जिसका पलड़ा पॉपुलर वोट में भारी साबित हो, उसे इलेक्टोरल कॉलेज वोट में कम मिले। जिसका पलड़ा इलेक्टोरल कॉलेज वोट में भारी साबित हो, उसे पॉपुलर वोट कम मिले। ऐसे में अमेरिका में जनवरी 2021 जैसे हालात बनने में देर नहीं लगेगी क्योंकि, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों ही पार्टियों के समर्थक पूरी तरह से चार्ज हैं। अमेरिका से ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि ट्रंप समर्थकों ने हार की स्थिति में नतीजे को गलत बताने की लिए तैयारियां कर रखी हैं। कहा ये भी जा रहा है कि ट्रंप समर्थकों ने अदालतों में कई याचिकाएं दाखिल कर रखी है, जिससे डेमोक्रेटिक वोटरों को अवैध बताया जा सके। अमेरिका की चुनावी पॉलिटिक्स में Ultranationalism के मुद्दे के धार देकर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है। ऐसे में दो सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश दुनियाभर के कूटनीतिज्ञ और पॉलिटिकल पंडित कर रहे हैं। पहला है– अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस किस हद तक प्रभावित कर रहा है? दूसरा है- अमेरिका के चुनावी नतीजों के बाद कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को दुनिया किस तरह देखने की कोशिश कर रही है।

यह भी पढ़ें : ‘महाराष्ट्र में ललकार’ : सियासी बिसात पर कौन राजा, कौन प्यादा?

अमेरिका को कहां से मिल रही है असली ताकत?

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है। आधुनिक समय में दुनिया को स्वतंत्रता, समानता, न्याय और मानवाधिकार की राह दिखाने में अमेरिकी लोकतंत्र की बड़ी भूमिका रही है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया की अधिकतर समस्याओं को सुलझाने में भी अमेरिका ने लीडर की भूमिका निभाई। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका अपनी इस भूमिका से पीछे हटता दिखा है। अमेरिकी लोकतंत्र में अगर पैसा तंत्र मजबूत हुआ है, तो वहां के हुक्मरानों ने वोटों के ध्रुवीकरण के लिए राष्ट्रीय हित के नाम पर अपनी सरहद को ऊंचा करने की बात जोर-शोर से की है। लेकिन, जरा सोचिए आज की तारीख में अमेरिका को असली ताकत कहां से मिल रही है? अमेरिका में बसे बाहरियों से, उनके हुनर से। ये अमेरिका की आबादी में घुले-मिले बाहरियों का प्रभाव ही है कि व्हाइट हाउस में दीपावली मनाई जा रही है। सैन फ्रांसिस्को में सत्तू का स्टॉल दिख जाता है।

सरहद की दीवारों को गिराने में अमेरिका की बेहतरी

वहां के गोल्डेन गेट ब्रिज के पास यूपी-बिहार के जायके वाले गोलगप्पे मिल जाते हैं। मेरीलैंड में कोई चाइनीज मूल का शख्स आपको मोमोज बेचता दिख जाएगा…सिलिकन वैली से लेकर वॉशिंगटन डीसी तक बाहर से अमेरिका आकर बसे लोग हर तरह की भूमिका में मिल जाएंगे। ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर चाहे डोनाल्ड ट्रंप बैठें या फिर कमला हैरिस, उनके दिमाग में एक बात साफ होनी चाहिए कि सरहद की दीवारों को ऊंचा नहीं, गिराने में अमेरिका की बेहतरी है। अमेरिकी लोकतंत्र की कामयाबी है। वैसे भी इंटरनेट और तकनीक ने भौगोलिक सरहद की लकीरों को बहुत हद तक पाट दिया है।

HISTORY

Edited By

Pushpendra Sharma

First published on: Nov 04, 2024 10:44 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें