Bharat Ek Soch : दुनिया में जब भी ज्वालामुखी विस्फोट होता है तो उससे एक ओर जान-माल का नुकसान होता है, दूसरी ओर धरती के भीतर की गर्मी थोड़ी शांत होती है। ज्वालामुखी विस्फोट के साथ कई बेशकीमती पत्थर और मिनरल्स भी निकलते हैं। इसी तरह दुनिया में होने वाली कुदरती या कूटनीतिक हलचलों के बीच संहार और सृजन दोनों के रास्ते खुलते हैं। डोनाल्ड ट्रंप अपनी दूसरी पारी में टैरिफ को ‘मिसाइल’ की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन पर अमेरिका 245 प्रतिशत तक टैरिफ लगा चुका है और दुनिया के 75 से अधिक देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ फिलहाल तीन महीने के लिए टाल चुके हैं। ऐसे में प्रेसिडेंट ट्रंप ने एक तरह से टैरिफ वॉर शुरू कर दुनिया में बिजनेस रिलेशंस का रीसेट बटन दबा दिया है। दुनिया के नक्शे पर दिखने वाला हर छोटा-बड़ा देश अपने नफा-नुकसान से हिसाब से कूटनीतिक और कारोबारी रिश्तों को नया आकार देने की कोशिशों में जुटा है। एक अरब चालीस करोड़ आबादी वाला भारत भी इसी रास्ते पर है।
ट्रंप टैरिफ के शुरुआती झटकों के बाद अब भारतीय शेयर बाजार संभल चुका है। दुनिया के तेज-तर्रार अर्थशास्त्री ट्रंप के टैरिफ वॉर को अमेरिका के लिए हानिकारक तो भारत के लिए एक बड़े मौके के तौर पर देख रहे हैं। अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर कितना लंबा खिंच सकता है? क्या डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच समझौते की कोई गुंजाइश है? ट्रंप के टैरिफ वॉर में भारत के लिए कहां-कहां मौका है? क्या दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश मौके पर चौका मारने की स्थिति में है? भारत के लिए चाइना जैसा मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की राह में कहां-कहां स्पीड ब्रेकर हैं? दुनिया की फैक्ट्री बनने के लिए हमारी वर्कफोर्स को चाइना से क्या-क्या सीखने की जरूरत है?
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अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर कब होगा खत्म?
दुनियाभर के तेज-तर्रार अर्थशास्त्री और कूटनीतिज्ञ लगातार हिसाब लगा रहे हैं कि अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर कितना लंबा खिंचेगा और कब खत्म होगा? डोनाल्ड ट्रंप एक बहुत ही चतुर बिजनेसमैन हैं। वो एक डीलमेकर हैं। वो अच्छी तरह जानते हैं कि दूसरों पर दबाव कैसे बनाया जाता है, वो ये भी अच्छी तरह समझते हैं कि उनके समर्थक उनके मुंह से क्या सुनना चाहते हैं? हाल ही में दुनिया के जाने-माने निवेशक और लेखक रुचिर शर्मा ने एक इंटरव्यू के दौरान डोनाल्ड ट्रंप की वर्क स्टाइल के बारे में कहा कि वो एक ऐसी शख्सियत हैं- जो एक लाख डॉलर के अपने किसी प्रोडक्ट की कीमत 10 लाख डॉलर बताएंगे और मोलभाव करते-करते डेढ़ लाख डॉलर पर डील के लिए तैयार हो जाएंगे। दुनिया कहेगी कि कहां 10 लाख से शुरू हुए और गिरते-गिरते डेढ़ लाख पर आ गए, लेकिन ट्रंप एक लाख को डेढ़ लाख डॉलर में बदलने को अपनी जीत मानते हैं। वो अच्छी तरह जानते हैं कि मेड इन चाइना प्रोडक्ट अमेरिकियों की जिंदगी का कितना अहम हिस्सा हैं। हर साल चीन अपना कितना माल अमेरिकी बाजार में डंप करता है? ऐसे में वो चाइना पर टैरिफ बढ़ाकर 245 प्रतिशत तक ले जाते हैं।
यूएस-चीन के बीच बातचीत का बन रहा माहौल
अब बड़ा सवाल ये है कि इसके आगे क्या? ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका चाइना के साथ बहुत अच्छी डील करने जा रहा है। चीन ने भी कदम आगे बढ़ाते हुए अमेरिका से बातचीत के लिए ली चेंगगांग को अपना नया वार्ताकार नियुक्त किया है, जो विश्व व्यापार संगठन (WTO) के पूर्व प्रतिनिधि रह चुके हैं। मतलब, टैरिफ को लेकर अमेरिका और चाइना के बीच बातचीत की मेज सजने के लिए माहौल बनने लगा है। ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि 245 फीसदी की टैरिफ रेट को घटाकर ट्रंप कितना नीचे तक लेकर आते हैं? दुनिया की नंबर वन और नंबर टू Economy के बीच जारी टैरिफ वॉर के बीच भारत के सामने किस तरह की संभावनाएं हैं?
अगले हफ्ते भारत आ रहे हैं अमेरिका के उप-राष्ट्रपति
अमेरिका-चाइना के बीच जारी खींचतान के बीच भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को इंटरनेशनल खिलाड़ी साबित करने की है। अगले हफ्ते अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नी उषा वेंस और बच्चों के साथ भारत आने वाले हैं। जेडी वेंस की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात तय मानी जा रही है। ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि पीएम मोदी और उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस के बीच किन-किन मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। लेकिन, अर्थशास्त्रियों के चश्मे से ट्रंप के ट्रेड वॉर के देखा जाए तो अगर अमेरिका 10 प्रतिशत बेस टैरिफ लागू करता है तो अकेले कारोबार के साइड इफेक्ट की वजह से ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था 1 प्रतिशत तक सुस्त हो सकती है। डॉलर कमजोर होता है तो उभरते बाजारों के लिए एक बेहतर मौका पैदा करता है। इसी तरह अगर टैरिफ वॉर की वजह से अमेरिका से कैपिटल का आउटफ्लो होता है तो भी इसका फायदा भारत जैसे देशों को हो सकता है। इससे भारत में Foreign Direct Investment भी बढ़ सकता है। ये भी माना जा रहा है कि चीन पर भारी टैरिफ से बचने के लिए बड़ी कंपनियों की पसंद भारत बन सकता है। लेकिन, बड़ा सवाल ये कि क्या विदेशी कंपनियों को चाइना जैसी सहूलियत भारत में मिल पाएंगी? उन्हें भारत में चीन जैसा माहौल मिल पाएगा?
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टैरिफ वॉर ने दुनिया के कारोबारी रिश्तों में रिसेट का दबाया बटन
ट्रंप के टैरिफ वॉर ने एक तरह से दुनिया के कारोबारी रिश्तों में रिसेट का बटन दबा दिया है। मल्टीनेशनल कंपनियां भी हिसाब लगा रही हैं कि कहां फैक्ट्री लगाने पर टैरिफ से बचने में सहूलियत होगी? इस पर भी गहराई से मंथन हो रहा है कि आखिर चाइना वर्ल्ड की फैक्ट्री कैसे बना और दुनिया की सप्लाई चेन का सिकंदर किस तरह बना हुआ है? आखिर चाइना में ऐसा क्या है, जिससे वो इतना सस्ता और बेहतर प्रोडक्ट बना लेता है? हमारे देश के हुक्मरानों, नौकरशाहों, अर्थशास्त्रियों और कारोबारी दिग्गजों के सामने भी ये सवाल अक्सर आता रहता है। दरअसल, चीन को दुनिया की फैक्ट्री बनाया है, वहां के लोगों ने, उनकी कड़ी मेहनत ने, उनके संस्कारों ने। भारत और चीन की फैक्ट्रियों में कर्मचारियों के काम के तौर-तरीकों में कितना अंतर है? ज्यादातर का जवाब था कि चाइना के युवाओं के दिमाग में ये बात बैठी हुई है कि वो चांदी के चम्मच के साथ पैदा नहीं हुए हैं, उन्हें जो कुछ हासिल करना है, उसका एक ही रास्ता है। मेहनत, मेहनत और सिर्फ कड़ी मेहनत। अगर वो मेहनत नहीं करेंगे तो उनकी जगह कोई और ले लेगा। अनुशासन और अपने काम के प्रति समर्पण चीन की वर्कफोर्स के संस्कार का अहम हिस्सा है। चाइना के ज्यादातर लोग इस बात की परवाह नहीं करते कि उनके काम को कोई देख रहा है या नहीं, वो सिर्फ और सिर्फ काम के प्रति समर्पित होते हैं। वो कितने कुशल हैं, इसका एक ही पैमाना है कि कम समय में कितना अधिक और बिना किसी गलती के प्रोडक्ट तैयार करते हैं।
जानें क्या है चाइनीज वर्क कल्चर?
चाइना की जमीन पर खड़ी बड़ी-बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों को अगर काम करते देखेंगे तो ऐसा लगेगा, जैसे वो किसी फैक्ट्री के कर्मचारी नहीं, सेना के ट्रेंड जवान हों। एक तरह की वर्दी, कम समय में मीटिंग और तैयार प्रोडक्ट की क्वालिटी चेक का मुकम्मल मैकेनिज्म। हमारे देश की फैक्ट्रियों या दफ्तरों में युवा सेना की तरह अनुशासित होकर काम करते नहीं दिखते, लेकिन धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, मोरल पुलिसिंग के नाम पर, जमीन पर कब्जा रोकने के नाम पर, गौरक्षा के नाम पर जरूर सेना दिख जाती है, जो हमारी युवा पीढ़ी को अपने मोहपाश में लेकर उनका इस्तेमाल करती है। इससे समाज को या देश को कितना फायदा होता है, इस पर शायद ही कोई ईमानदारी से चर्चा करना चाहता है।
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हम चीन जैसा मैन्युफैक्चरिंग हब तो बनना चाहते हैं, लेकिन वहां के सामाजिक ताने-बाने के संस्कारों की बात नहीं करते। चीन के समाज में व्यक्ति से अधिक सामूहिकता पर जोर दिया जाता है। स्कूल से कॉलेज तक पढ़ाई के दौरान युवाओं के दिमाग में ये बात कूट-कूट भर दी जाती है कि टीम की सफलता व्यक्तिगत सफलता से बहुत बड़ी होती है। टीम का टारगेट और सामूहिक रूप से हासिल करने का साझा प्रयास चाइनीज वर्क कल्चर की USP है। ऐसे में वहां के संस्थानों में Hierarchy का बहुत महत्व है। चीन के कर्मचारी अनुशासन और सम्मान के साथ Hierarchy को फॉलो करती है। ज्यादातर कर्मचारी तय SOP यानी Standard Operating Procedure पर सवाल नहीं उठाते, उसे फॉलो करने को अपनी ड्यूटी समझते हैं। अगर किसी को दिक्कत होती है या सवाल करना होता है तो अकेले में बात होती है- सार्वजनिक रूप से नहीं। इसी तरह चीन की फैक्ट्रियों में कर्मचारियों के काम की तारीफ सार्वजनिक होती और काम में खामियों को अकेले में गिनाया जाता है। इससे टीम लीडर और कर्मचारियों के बीच भरोसा बना रहता है।
भयंकर बेरोजगारी से जूझ रहा चाइना
चाइना की फैक्ट्रियों में काम करने वाले ज्यादातर सीनियर कर्मचारी इस बात में ज्यादा दिमाग खपाते हैं कि 50 आदमी के काम को तकनीक की मदद से किस तरह 10 आदमी पूरा कर सकते हैं। नई तकनीक कबूल और बाजार की जरूरतों के हिसाब से नया-नया प्रोडक्ट तैयार करना चीन की खासियत है। कुछ साल पहले तक चीन में 996 कल्चर बहुत प्रचलित था यानी हफ्ते में 6 दिन सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम, चाइना के कारखानों में काम का मतलब सिर्फ काम हुआ करता है। हमारे देश के ज्यादातर दफ्तरों की तरह नहीं, जहां 8 घंटे की शिफ्ट में कर्मचारी कई बार चाय और सुट्टा ब्रेक के लिए निकलते हैं। अच्छा खासा समय लंच पर गॉसिप में बर्बाद करते हैं, कुछ का तो ज्यादातर समय मीटिंग-मीटिंग खेलने में ही निकल जाता है। अधिकतर दफ्तरों और कारखानों में व्यक्तिगत और सामूहिक आउटपुट पर शायद ही ईमानदारी से मंथन होता हो, चीन अपने वर्क कल्चर की वजह से दुनिया की फैक्ट्री बना। लेकिन, आज का चीन भयंकर बेरोजगारी से जूझ रहा है। ऐसे में चीन की कम्युनिस्ट सरकार अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने के लिए 8 घंटे ही काम करने लिए कह रही है। ओवर टाइम बंद करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन चाइना की वर्कफोर्स को लंबे समय तक काम करने की आदत उनके DNA का हिस्सा बन चुकी है, उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा पैसे चाहिए, नौकरी में बने रहने के लिए अधिक लंबे समय तक काम करना जरूरी भी है और मजबूरी भी। ऐसे में चीन के वर्क-कल्चर से भारतीय युवाओं के पास बहुत कुछ सीखने के लिए है। ट्रंप के टैरिफ वॉर से पैदा हुई उथल-पुथल का भारत तभी पूरा फायदा उठा पाएगा, जब हमारे युवा श्रीमद्भागवत गीता के कर्मयोग को समझेंगे, चीन के युवाओं की तरह उसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में घर से दफ्तर तक उतारेंगे।