Bharat Ek Soch: राजनीति हो या कूटनीति वही राजनेता सफल होता है, जो दीवारों के पास देखने की क्षमता रखता है। इन दिनों पूरी दुनिया में एक अजीब सी ऊहापोह की स्थिति है, एक ओर दिल्ली से करीब 4100 किलोमीटर दूर इजरायल की हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ जंग जारी है। दूसरी जंग दिल्ली से करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर दूर रूस-यूक्रेन के बीच चल रही हैं।
उधर, सीरिया में बशर-अल-असद को मुल्क छोड़कर भागना पड़ा और अब वहां विद्रोही गुट के नेता अहमद अल शरा का हुक्म चल रहा है। इन सभी युद्ध और तनाव वाले क्षेत्रों में अमेरिका एक बड़ा खिलाड़ी है, जहां 20 जनवरी 2025 को नए राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप कार्यभार संभालेंगे। अब दुनियाभर के कूटनीतिज्ञ लगातार हिसाब लगा रहे हैं कि तुनकमिजाज ट्रंप के सेंटर स्टेज पर आने के बाद World Order कितना बदलेगा? भीतरखाने खाड़ी देशों की टेंशन भी बढ़ी होगी क्योंकि, इस क्षेत्र में वर्षों अमेरिका ने दमदार भूमिका निभाई है।
मोदी की कुवैत कूटनीति
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खाड़ी देशों में एक बड़े खिलाड़ी कुवैत पहुंच गए। पिछले चार दशकों में ये किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली कुवैत यात्रा थी। आज की तारीख में कुवैत दस लाख भारतीयों का घर है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विदेश नीति में पश्चिम एशिया खासतौर से खाड़ी देशों को खास तवज्जो दी। उन्हें दुनिया के कई प्रभावशाली मुस्लिम देशों ने अपने सबसे बड़े सम्मान से पीएम मोदी को नवाजा। भले ही देश के भीतर हिंदू-मुस्लिम की बातें जितनी भी हो। लेकिन, मोदी की कूटनीति में मुस्लिम वर्ल्ड के देशों से रिश्ता सुधारना प्राथमिकता सूची में रहा। ऐसे में आज समझने की कोशिश करेंगे कि मोदी ने अपनी कुवैत कूटनीति के जरिए मुस्लिम वर्ल्ड को कौन सा रास्ता दिखाया? मोदी के कुवैत दौरे से मुस्लिम वर्ल्ड के किन-किन देशों ने राहत की सांस ली होगी? खाड़ी पथ से किस तरह विकसित भारत का लक्ष्य पूरा करना आसान होगा?
असमंजस में फंसे खाड़ी देश
Diplomacy में टाइमिंग बहुत मायने रखती है । प्रधानमंत्री मोदी ने कुवैत की यात्रा के लिए एक ऐसे समय को चुना, जब खाड़ी के आबादी में छोटे लेकिन आर्थिक रूप से प्रभावशाली देश असमंजस की स्थिति से गुजर रहे हैं। असमंजस इस बात का अगर पश्चिम एशिया इसी तरह जंग का अखाड़ा बना रहा तो उनकी मुल्क की अर्थव्यवस्था का क्या होगा? असमंजस इस बात का कि अगर इजरायल और ईरान के बीच Full Scale War शुरू हो गया तो क्या होगा? असमंजस इस बात का कि डोनाल्ड ट्रंप ने अगर चुनावी वादे के मुताबिक अमेरिका में तेल-उत्पादन डबल कर दिया तो क्या होगा ? खाड़ी देशों की लाइफ लाइन तेल रहा है।
भारत के पास कुवैत को देने के लिए सब कुछ
कभी सुरक्षा तो कभी तकनीक देने के नाम पर इस क्षेत्र में अमेरिका का दखल रहा है। एक सच ये भी है कि खाड़ी देशों के बीच आपसी संबंध ऐसा रहा है, जिसमें किसी एक देश से कही गई बात आसानी से पड़ोसी देशों में भी पहुंच जाती है। कुवैत की जमीन से पीएम मोदी ने साफ-साफ संदेश देने की कोशिश की। भारत किस तरह से कुवैत की तरक्की में मददगार साबित बन सकता है। न्यू कुवैत बनाने के लिए तकनीक, मैनपावर जो भी चाहिए सब भारत के पास है। ऐसे में सबसे पहले ये समझते हैं कि मोदी के मिशन कुवैत में क्या खास रहा ?
मोदी के मिशन कुवैत में क्या खास रहा
खाड़ी देशों में अमेरिका ने किस तरह हेकड़ी चलाई ये किसी से छिपा नहीं है। पश्चिमी देशों ने अपने स्वार्थ के लिए किस तरह मुस्लिम वर्ल्ड के देशों को आपस में लड़ाया-भिड़ाया और इस्तेमाल किया, ये भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में पीएम मोदी ने कुवैत की जमीन से खाड़ी देशों को भारत का रास्ता दिखाया। साथ ही भविष्य की तस्वीर दिखाते हुए भारत को दुनिया का ग्रोथ इंजन बताया। खाड़ी देशों के लिए भारत पर भरोसे की एक बड़ी वजह वहां वर्षों से रह रहे लाखों की तादाद में भारतीय भी हैं। जिनके हुनर और पसीने की चमक खाड़ी देशों के ज्यादातर हिस्सों में साफ-साफ दिखती है। दिल्ली डिप्लोमेसी भी कुवैत को साधने में मुस्लिम वर्ल्ड में अपने साथ एक दमदार अवाज का साथ मिलने का हिसाब लगा रही होगी। मसलन, Organization of the Petroleum Exporting Countries यानी OPEC का स्थापक सदस्य रहा है कुवैत।
भारत के लिए कुवैत के मायने क्या
भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को सुरक्षित रखने के इरादे से संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत और कतर के साथ रिश्तों को मजबूत किया है। इसी खाड़ी देशों की सबसे असरदार छतरी Gulf Cooperation Council में भी कुवैत एक बहुत दमदार आवाज है। इतना ही नहीं मुस्लिम देशों के सबसे बड़े संगठन Organization of Islamic Cooperation में भी कुवैत का अच्छा खासा दखल है। ऐसे में एक कुवैत को साधने से OPEC, OIC और GCC तीनों में दिल्ली डिप्लोमेसी का पलड़ा भारी हो जाता है। अब ये समझना जरूरी है कि भारत के लिए कुवैत और कुवैत के लिए भारत के मायने क्या हैं?
अब तक पीएम मोदी सात बार संयुक्त अरब अमीरात, दो-दो बार कतर और सऊदी अरब, एक-एक बार ओमान और बहरीन जा चुके हैं। भारत अरब देशों की सुरक्षा से जुड़ी चिंता भी दूर करने में अहम किरदार निभाने की स्थिति में है। ऐसे में अरब देशों के सामने सुरक्षा से जुड़ी चिंता और हथियारों की सप्लाई के लिए भारत नए विकल्प के रूप में मौजूद है। खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा भारतीय UAE में हैं करीब 35 लाख भारतीय वहां मजदूरी करने से लेकर कंपनियों के टॉप मैनेजमेंट तक में शामिल हैं। UAE के हर हिस्से में आपको लोग हिंदी में बात करते, भोजपुरी में गाने सुनते दिख जाएंगे। यहां तक कि UAE में लिट्टी-चोखा का जायका देने वाले रेस्टोरेंट भी आसानी से मिल जाएंगे। UAE की आबादी में करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी भारतीयों की है, जहां तरक्की की बुलंद कहानी तैयार करने में भारतीयों में ईंधन की भूमिका निभाई है।
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इस्लाम का उदार चेहरा बनने की कोशिश में UAE
यूएई जानता है कि मुल्क में रहने वाले मित्र देश के लोगों की भावनाओं का सम्मान कैसे किया जाता है, इसकी गवाही अबू धाबी में बना विशालकाय हिंदू मंदिर दे रहा है। इसी तरह सऊदी अरब में 25 लाख भारतीय रहते हैं, जो वहां का सबसे बड़ा प्रवासी समूह है। भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्तों की धुरी कच्चा तेल रहा है। सऊदी अरब की पूरी दुनिया में दो चीजों के लिए पहचान रही है – एक, इस्लाम और दूसरा कच्चा तेल। पिछले कुछ समय में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने मुल्क की अर्थव्यवस्था को तेल से दूसरी ओर शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। वहीं, बदलते वक्त के साथ वहां के सामाजिक ताने-बाने में इस्लाम का चेहरा भी उदार बनाने की कोशिश हो रही है। सऊदी अरब ने महिलाओं की आजादी का रास्ता खोला है, इसी तरह उन नियमों को उदार बनाया जा रहा है, जिससे दूसरे मुल्कों के लोग वहां की कंपनियों में आसानी से काम कर सकें।
भारत के लोग खाड़ी देशों की जरूरत और ताकत
दुनिया के सामने कुवैत, UAE और सऊदी अरब एक ऐसे रोल मॉडल की तरह हैं। जहां भारतीय मूल के लोगों के खून-पसीना और हुनर से इन देशों ने गजब की आर्थिक तरक्की की। कतर, मस्कट और बहरीन में भी लाखों की तादाद में भारतीय नौकरी कर रहे हैं। आज की तारीख में भारत के लोग खाड़ी देशों की जरूरत और ताकत दोनों बन चुके हैं। लेकिन, दुनिया में जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं उसमें खाड़ी देशों का डर भी वाजिब है। दरअसल, रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास-हिजबुल्ला की जंग में एक नए तरह की गोलबंदी सामने आ रही है। पूरी दुनिया समझ रही है कि यूक्रेन और इजराइल का कंधा आगे है–पीछे से लड़ अमेरिका रहा है। ऐसे में रूस-चीन के साथ ईरान भी मजबूती से खड़ा है। क्योंकि, ईरान के ट्रिपल H मतलब हमास, हिजबुल्लाह और हूती का नामो-निशान मिटाने की लगातार कोशिश चल रही है।
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ऐसे में अमेरिका पर सीधा चोट करने लिए रूस-चीन-ईरान के बीच डॉलर में लेनदेन नहीं करने के तंत्र पर काम चल रहा है। इससे अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में सीधी चुनौती मिलती है। माना जा रहा है कि रूस-चीन-ईरान के त्रिकोण को तोड़ने के लिए अमेरिकी डीप स्टेट अरब वर्ल्ड में उथल-पुथल की नई स्क्रिप्ट तैयार कर सकते हैं। ऐसी असमंजस की स्थिति में अरब वर्ल्ड के देशों को भारत के रूप में दुनिया के नक्शे पर दमदार भूमिका निभाने वाला एक भरोसेमंद दोस्त खड़ा है, तो भारत को नए कारोबारी साझीदार मिल रहे हैं। जहां भारत बड़ी की Skilled Workforce के लिए रोजगार के मौके भी हैं।