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भारत एक सोच

अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए किस तरह के रामराज्य की जरूरत?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ लगाने के बाद कई देश मंदी की आशंका जता रहे हैं। भारत की अपनी भी खुद की चुनौतियां हैं। अगर रामराज्य स्थापित करना है तो खुद में बदलाव करने की जरूरत है।

Author Edited By : Anurradha Prasad Updated: Apr 7, 2025 19:17
Anuradha Prasad

आज की तारीख में बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। देश के 21 राज्यों में बीजेपी या एनडीए की सरकार है। अब बीजेपी 45 साल की हो चुकी है। वह जिस मुकाम पर खड़ी है, उसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की बड़ी भूमिका है। भारत की सनातन परंपरा में राम आरंभ भी हैं और अंत भी। राम एक सोच भी हैं और जीवनशैली भी। ये संयोग ही है कि 6 अप्रैल को बीजेपी का स्थापना दिवस भी है और इस साल रामनवमी भी यानी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्मोत्सव। त्रेतायुग में अयोध्या में पैदा हुए श्रीराम ने दुनिया को आदर्श शासन प्रणाली का रास्ता दिखाया, जिसे रामराज्य के तौर पर जाना जाता है। त्रेतायुग का रामराज्य कैसा था, ये हममें से किसी ने देखा नहीं है? हजारों साल से लोग अपनी सोच और समझ के हिसाब से रामराज्य की कल्पना करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि आज का रामराज्य कैसा होना चाहिए, जहां पूरी दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी है?

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ट्रेड टैरिफ बढ़ाते हैं तो पूरी दुनिया में मंदी की आहट महसूस की जाने लगती है। दुनिया के ज्यादातर देशों के शेयर बाजार लड़खड़ाने लगते हैं। अमेरिका हो या चीन, यूरोप हो या एशिया, सबकी अपनी परेशानियां हैं। भारत जैसे विशालकाय देश की अपनी चुनौतियां हैं। किसी भी सरकार या व्यवस्था के लिए एक अरब 40 करोड़ लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं है। इतनी बड़ी आबादी को खिलाने के लिए अनाज का इंतजाम, रोजगार की व्यवस्था, पढ़ाई के लिए स्कूल-कॉलेज चलाना, इलाज के लिए अस्पताल खोलना… रोजाना एवरेस्ट की चढ़ाई जैसा काम है। ऐसे में आपको जानने की जरूरत है कि आज का रामराज्य कैसा होना चाहिए? रामराज्य के लिए सत्ता में बैठे हुक्मरान और हम भारत के लोगों का आचरण कैसा होना चाहिए?

Ultra Individualistic, Ultra Consumerist और वर्चुअल वर्ल्ड के रिश्तों के लिए रियल वर्ल्ड से कटती सामाजिक व्यवस्था में किस तरह के श्रीराम की जरूरत है? चरमराती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए किस तरह की मर्यादा की जरूरत है? आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली जेनरेशन को श्रीराम कौन सा रास्ता दिखाते? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

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आबादी के साथ बढ़ीं चुनौतियां

इस धरती पर ऐसे लोग बहुत कम मिलेंगे, जो अपनी जिंदगी से खुश हैं। 140 करोड़ से अधिक आबादी वाले भारत में कई तरह की चुनौतियां हैं। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी हमारे देश में ही है, लेकिन बेरोजगारों की फौज भी लंबी-चौड़ी है। उससे भी बड़ी समस्या ये है कि ज्यादातर के पास डिग्री के मुताबिक नौकरी नहीं है। इसे दो तरह से देखा जा सकता है– एक डिग्री के हिसाब से हुनर नहीं है। दूसरा हुनर है, पर बाजार में नौकरी नहीं है, जिसके पास नौकरी है– उसकी महंगाई और खर्च के हिसाब से सैलरी नहीं बढ़ रही है। कोई सिस्टम को कोस रहा है तो कोई किस्मत को, लेकिन 140 करोड़ लोगों की जिंदगी में खुशहाली लाना मुश्किल काम है।

प्रधानमंत्री मोदी 2047 तक विकसित भारत का सपना लेकर आगे बढ़ रहे हैं, जिनके पीछे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी खड़ी है। क्या विकसित भारत बनाने के लिए संघर्ष करना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है? इसमें देश के लोगों का आचार-विचार, कर्म-धर्म कैसा होना चाहिए? ऐसा समाज कैसे बने, जिसमें सरकार को 80 करोड़ लोगों की भूख मिटाने के लिए मुफ्त में सरकारी अनाज बांटने की जरूरत न पड़े? लोग इतने संपन्न और खुशहाल हो जाएंगे कि खुद ही सब्सिडी को खैरात समझते हुए छोड़ने लगेंगे। युवाओं को इस तरह से स्कूल-कॉलेजों में ट्रेंड किया जाए कि उन्हें नौकरी के लिए धक्के नहीं खाने पड़ें। क्या बीजेपी और नरेंद्र मोदी रामराज्य के ऐसे ही मॉडल पर काम कर रहे हैं?

चुनौतियों से जूझ रही दुनिया

दुनिया जिस तरह की चुनौतियों से जूझ रही है, उसमें एक ऐसे रामराज्य की जरूरत है, जिसमें हर व्यक्ति देश को, राज्य को, समाज को पूरी ईमानदारी से बेस्ट देने की कोशिश करे। चाहे नौकरी में हो या स्वरोजगार में, दोनों को अपना कर्मक्षेत्र मानते हुए उसे बढ़ाने के लिए लगातार संघर्ष करें। दुनिया में तेजी से होते तकनीकी बदलावों के हिसाब से खुद को अपडेट रखें, तभी आधुनिक समय की जरूरतों के हिसाब से रामराज्य के सपने को साकार करना आसान होगा। दुनिया का हर सभ्य समाज अपने हिसाब से रामराज्य की कल्पना को जमीन पर उतारने की कोशिश करता रहा है। वाल्मीकि के रामराज्य में सामाजिक न्याय की बात है, तो तुलसीदास का रामराज्य एक यूटोरिया, जहां न कष्ट है और न छोटे-बड़े के बीच भेदभाव। वहीं, 20वीं सदी आते-आते रामराज्य ने आधुनिक उदार लोकतंत्र का रूप धारण कर लिया, जिसकी मकसद Welfare State की स्थापना और लोगों का अधिक से अधिक कल्याण बन गया।

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प्रधानमंत्री मोदी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बात करते हैं, लेकिन चुनावी मौसम में बीजेपी नेता भी वोटों के ध्रुवीकरण के लिए हर तरह के दांव आजमाते दिखते हैं। कटेंगे तो बटेंगे, एक रहेंगे सेफ रहेंगे, जैसे नैरेटिव आगे बढ़ाते हैं। एक ओर औरंगजेब की कब्र, संभल की शाही जामा मस्जिद, ज्ञानवापी, मथुरा जैसे मुद्दों को समय-समय पर गर्म किया जाता है, दूसरी तरफ बीजेपी कार्यकर्ता मुस्लिम समुदाय की हिचक दूर करने और करीब लाने के लिए सौगात-ए-मोदी किट भी बांटते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आज के रामराज्य में चुनाव जीतने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण और राजधर्म के नाम पर सबको बराबरी के चश्मे से देखने की बात भी चलती रहेगी?

वक्त के साथ बदलाव करती है बीजेपी

बीजेपी एक प्रयोगधर्मी पार्टी है। वक्त के साथ बदलावों को कबूल करती है। 6 अप्रैल 1980 को स्थापना के बाद से बीजेपी ने सत्ता हासिल करने के लिए कई प्रयोग किए। श्रीराम राजपुत्र थे, उन्हें सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव की प्रक्रिया से नहीं गुजरना था। ऐसे में श्रीराम राजतंत्र को मर्यादित और लोगों के करीब लाने का काम करते थे, राजा को राज्य और प्रजा के बीच संपर्क सेतु के रूप में प्रस्तुत करते थे, जिसमें राजा का काम जनता की सेवा होता था। आधुनिक लोकतंत्रीय व्यवस्था में जनता अपने वोट से शासक का चुनाव करती है, जनता ही तय करती है कि कौन उसकी सेवा करेगा? ऐसे में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने बीजेपी को Election Winning Machine में बदल दिया। सरकार और संगठन में मोदी का कद इतना बड़ा हो गया कि उनके सामने दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा है।

इस साल मोदी का 75वां जन्मदिवस

17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी 75 साल के हो जाएंगे। उम्र के इस पड़ाव पर भी वो जोश और ऊर्जा से लबरेज हैं। देश के आम आदमी के मन में एक सवाल अक्सर उठता रहता है कि बीजेपी में नरेंद्र मोदी का विकल्प कौन? इस बारे में जब भी किसी बीजेपी नेता से ये सवाल पूछा जाता है तो जवाब बहुत सधे अंदाज में दिया जाता है कि 2029 में भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा और वही प्रधानमंत्री बनेंगे। कुछ का जवाब होता है कि बीजेपी परिवार की पार्टी नहीं, कार्यकर्ताओं की पार्टी है। समय आने पर बीजेपी के करोड़ों कार्यकर्ताओं में कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है।

राम को आदर्श मानने वाली बीजेपी में आज मोदी का कद इतना ऊंचा हो चुका है कि उन्हें अपना रोल और रिटायरमेंट की तारीख खुद ही तय करनी है। श्रीराम के चरित्र में बहुत कुछ ऐसा है, जिससे आज के हुक्मरानों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। वे बतौर राजा एक तपस्वी की तरह थे, जहां एक साधारण जन के सवाल पर भी बड़ा फैसला लेने से नहीं हिचकते थे। राम मन और कर्म दोनों से लोकतंत्रिक रहे हैं। ऐसे में श्रीराम के पदचिह्नों पर चलने वाली बीजेपी को भी समझना जरूरी है कि बीजेपी ने कमल में करंट लाने के लिए पिछले 45 वर्षों में किस तरह के प्रयोग किए। पार्टी ने सत्ता हासिल करने के लिए कब-कब रास्ता और चेहरा बदला?

क्षेत्रीय दलों को हराना आसान नहीं

मोदी-शाह के दौर में बीजेपी ने पहले चरण में कांग्रेस को अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी न माना, पर क्षेत्रीय दलों को हराना बीजेपी के लिए मुश्किल रहा। दूसरे चरण में बीजेपी अब क्षेत्रीय दलों को निपटाने में लगी है। बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि भारत के नक्शे पर अभी कई ऐसे क्षत्रप मजबूती से खड़े हैं, जो कभी भी बीजेपी के अश्वमेध घोड़े को पकड़ सकते हैं। आज की तारीख में कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में होता, तो शायद विकसित भारत के लिए कमोवेश उसी तरह के एजेंडे को आगे बढ़ाता, जैसा पीएम मोदी कर रहे हैं? आज की बीजेपी के रामराज्य में गर्वनेंस का मोदी मॉडल है, तो पार्टी में कड़ा अनुशासन भी। सियासी विरोधियों को किनारे लगाने वाली मुखर सोच भी, किसी भी कीमत पर सत्ता में बने रहने की चाह भी। श्रीराम सबको साथ लेकर चलने के प्रतीक थे।

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Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Apr 07, 2025 07:04 PM

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