कूटनीति और युद्धनीति में एक समानता ये है कि जो खुली आंखों से सबको दिखाई देता है, वो असल में होता नहीं है जो होता है वो सबको दिखाई नहीं देता है। ऑपरेशन सिंदूर से जहां भारतीय सेना का अदम्य शौर्य और तकनीकी दक्षता पूरी दुनिया ने देखी। वहीं, भारत अपनी सरहदों की सुरक्षा के मामले में कितना आत्मनिर्भरता हो चुका है। ये भी साफ हो गया। लेकिन, जिस एक चीज ने एक अरब चालीस करोड़ भारतीयों को हैरान किया– वो है अमेरिका और चाइना का रूख । भारत के लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका आचानक पाकिस्तान के पीछे खड़ा हो गया? ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय फौज ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। उसके बाद भी पाकिस्तान के हुक्मरान लगातार अपनी जीत का दावा कर रहे हैं? पाकिस्तान को कहां से हवा-पानी मिल रहा है?
भारत-पाकिस्तान के बीच टेंशन के दौरान ज्यादातर मुस्लिम देशों ने चुप्पी क्यों साधी ? क्या सऊदी अरब, UAE और कतर जैसे देश अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान के साथ खड़े होंगे? चाइना ने क्यों दिया खुलकर पाकिस्तान का साथ? क्या चाइना के दबाव की वजह से रूस ने भारत-पाकिस्तान टेंशन के बीच तटस्थ बने रहने का रास्ता चुना? क्या मौजूदा कूटनीति में ट्रेड और बैलेंस ऑफ पावर इतना अहम हो चुका है कि भावनात्मक रिश्तों के लिए कोई जगह नहीं बची है ? ऑपरेशन सिंदूर से दुनिया में कूटनीतिक रिश्ते कितने बदल गए?
दोस्ती-दुश्मनी सब हालात पर निर्भर
कूटनीति में कब दोस्त दुश्मन बन जाए और दुश्मन दोस्त, ये सब हालात पर निर्भर करता है। लेकिन, एक सच ये भी है कि संकट के समय ही दोस्ती की असली परीक्षा होती है। राजनीति के प्रकांड पंडित चाणक्य ने करीब ढाई हजार साल पहले ही कूटनीति के कई सूत्र दुनिया को दिए जिसमें दोस्त का दोस्त दुश्मन, दुश्मन का दुश्मन दोस्त जैसे विचार मौजूद हैं। राजा के निजी रिश्तों में भी राष्ट्रहित की सोच को आगे बढ़ाया गया लेकिन, मौजूदा समय में कूटनीति को आकार देने और रिश्तों को परिभाषित करने में ट्रेड ड्राइविंग सीट पर है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय कूटनीतिज्ञों के सामने एक गंभीर सवाल छोड़ा है कि किसी संकट की स्थिति में कौन दिल्ली के साथ खड़ा होगा और कौन पाला बदलने में देर नहीं लगाएगा? अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से परेशान चाइना के राष्ट्रपति जिनपिंग और विदेश मंत्री वांग यी भारत के साथ बेहतर रिश्तों की दलील दे रहे थे।
अमेरिकी रुख में साफ-साफ दिखा बदलाव
राष्ट्रपति ट्रंप की दूसरी पारी में दिल्ली-वॉशिंगटन में केमेस्ट्री और बेहतर होने की भविष्यवाणी की जा रही थी लेकिन, ऑपरेशन सिंदूर के एक्शन और रिएक्शन के बीच अमेरिकी रुख में बड़ा बदलाव साफ-साफ दिखा। अमेरिका ने पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर के बीच ही इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड यानी IMF से साढ़े आठ हजार करोड़ रुपये का फंड दिलाने में मदद की। आने वाले दिनों में पाकिस्तान को और 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक का फंड मिलना तय है। ऐसे में सवाल उठता है कि जो अमेरिका कल तक खुद को भारत का दोस्त कहता था। वो अचानक पाकिस्तान के साथ क्यों खड़ा हो गया ? एक थ्योरी ये भी सामने आ रही है कि पाकिस्तान के पास जो परमाणु हथियार है, वो उसके नहीं बल्कि अमेरिका के हैं।
मुस्लिम वर्ल्ड ने पाकिस्तान से किया किनारा
पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम वर्ल्ड के देशों से दिल्ली के बेहतर रिश्तों की बातें जोर-शोर से की जा रही थीं । मेल-मुलाकात, आवाजाही और स्वागत-सत्कार की तस्वीरों का समय-समय पर विश्लेषण होता रहता था। ये भी कहा जा रहा था कि मुस्लिम वर्ल्ड ने भी आतंकियों को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान से किनारा कर लिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप की एक यात्रा और कुछ बिजनेस डील ने सऊदी अरब, UAE और कतर जैसे देशों को चुप कर दिया? क्या कूटनीति में रिश्ते ओछे की प्रीत बालू की भीत जैसे बन चुके हैं जिसे मामली झंझवात या नफा-नुकसान की आहट भी ध्वस्त कर देती है।
दुनिया का हर देश एक-दूसरे पर निर्भर है
ग्लोबलाइजेशन और तकनीक के दौर में दुनिया का हर देश एक-दूसरे से जुड़ा है। अपनी जरूरतों के लिए कम या अधिक एक-दूसरे पर निर्भर है। अमेरिका को जितनी जरूरत भारत की है उतनी ही भारत को अमेरिका की। शायद, यही वजह है कि देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में एक दल 19 से 22 मई तक द्विपक्षीय व्यापार समझौता के लिए अमेरिका में बातचीत की मेज पर बैठने वाला है। इधर भारत-पाकिस्तान के बीच टेंशन लगातार बढ़ रहा था दूसरी ओर अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ पर डील भी सील हो गई। संकट की घड़ी में चाइना भी पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया। मेड इन चाइना हथियारों के दम पर पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से राजस्थान तक हवाई हमले की कोशिश की, जिसे भारतीय फौज ने नाकाम कर दिया। बदले हालात में बीजिंग के साथ दिल्ली किस तरह से अपने कूटनीतिक रिश्तों को आगे बढ़ाएगा ये भी एक यक्ष प्रश्न है।
15 महीने में ही टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन सब भूल गए
सवाल उठता है कि क्या कारोबार में कोऑपरेशन और बॉर्डर पर मिलिट्री टेंशन के बीच ऑपरेशन दोनों साथ-साथ चलेंगे ? क्या अमेरिका मुस्लिम देशों को एक बार फिर अपने पाले में खींचने के लिए गोटियां चल चुका है? क्या चीन, पाकिस्तान और ईरान के बीच बन रहे गठजोड़ को बड़ी चतुराई से तोड़ने की स्क्रिप्ट को ट्रंप आगे बढ़ा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि कल तक जो मुस्लिम देश भारत के साथ बेहतर रिश्तों में अपना चमकदार कल देख रहे थे वो भविष्य में किस रास्ते आगे बढ़ेंगे?
जरा याद कीजिए पिछले साल फरवरी में टर्की में सदी का सबसे शक्तिशाली भूकंप आया। टर्की के लोग त्राहिमाम कर रहे थे –तब संकट में फंसे टर्की के लोगों को बचाने के लिए भारत ने ऑपरेशन दोस्त चलाया, अनगिनत जिंदगियां बचाई गई। लेकिन, मुश्किल से 15 महीने में ही टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन सब भूल गए और पाकिस्तान के साथ खड़े हो गए। इजरायल जरूर खुलकर भारत के साथ खड़ा रहा। ब्रिटेन और फ्रांस ने भी ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन किया। लेकिन, जर्मनी, इटली और स्पेन जैसे देशों का रवैया ढुलमुल वाला रहा। ऐसे में दिल्ली के सामने अगली चुनौती कूटनीतिक रिश्तों में रीसेट बटन दबाने की भी है।
रूस को तटस्थता में दिखा फायदा
रूस को भारत का सदाबहार दोस्त कहा जाता है। इतिहास गवाह है कि साल 1971 की जंग में रूस पूरी तरह भारत के साथ खड़ा रहा और संयुक्त राष्ट्र से लेकर हिंद महासागर में अमेरिका और पश्चिमी देशों की एक नहीं चलने दी । लेकिन, हालिया टेंशन के बीच हमारा सदाबहार दोस्त मास्को ने चुप्पी साध ली। हालांकि, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इतना जरूर कहा कि पश्चिमी देश भारत और चीन को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा रहे हैं। आज की तारीख में भारतीय सेना के तरकश में अभी भी बहुत से हथियार Made in Russia है। हाल के वर्षों में भारत ने एक तो रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम की है। दूसरा, अमेरिका और फ्रांस से नए हथियार खरीद रहा है। तीसरा, उन्नत क्वालिटी के स्वदेशी हथियार बनाने पर जोर है । वहीं, पिछले सवा तीन साल से यूक्रेन से जंग लड़ रहा रूस बहुत हद तक चीन पर निर्भर है। शायद, इसलिए रूस ने बदलते कूटनीतिक समीकरणों के बीच तटस्थ रहने में ही अपना फायदा देखा होगा।
धर्म संकट से गुजर रहे हैं पुतिन
भारत अच्छी तरह जानता है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन किस धर्म संकट से गुजर रहे हैं। रूसी की तटस्थ दिखने की रणनीति के बीच दिल्ली और मॉस्को को किस तरह बढ़ना है। इसका रास्ता भी निकालने की भीतरखाने कोशिशें चल रही होंगी। दूसरी ओर,सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर दुनिया को सही जानकारी देने के लिए सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भेजने की तैयारी हो चुकी है। संसदीय कार्य मंत्रालय की ओर से प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने वाले 7 सांसदों का नाम जारी किया गया है–जिसमें कांग्रेस के शशि थरूर, बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, जेडीयू के संजय कुमार झा, DMK के कनिमोझी करुणानिधि, NCP (शरद पवार) की सुप्रिया सुले और शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत एकनाथ शिंदे शामिल हैं। हर प्रतिनिधि मंडल में लीडर समेत 5 सांसदों को रखने बात सामने आ रही है।
नरसिम्हा राव ने अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था
कभी पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री रहते संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था। मकसद था कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के मंसूबे को नाकाम करना। ये दल से ऊपर देश वाली सोच थी। अब फिर सत्ता पक्ष-विपक्ष को साथ लेकर दुनिया के सामने पाकिस्तान को बेनकाब करने की तैयारी है। ऑपरेशन सिंदूर से शुरू हुआ Diplomatic alignment और Power Balance बहुत हद तक बदलने के ग्रह संयोग बनने लगे हैं। लेकिन, हमें ये भी समझना होगा कि आजादी के बाद से लेकर अब तक अमेरिका के साथ रिश्तों की सांप-सीढ़ी किस तरह आगे बढ़ी है ।
अमेरिका से दुश्मनी खतरनाक और दोस्ती घातक है
अमेरिका के एक विदेश मंत्री हुआ करते थे – हेनरी किसिंजर । उनका एक मशहूर कोट है – It may be dangerous to be America’s enemy, but to be America’s friend is fatal. यानी अमेरिका से दुश्मनी खतरनाक और दोस्ती घातक है । इतिहास गवाह रहा है कि अमेरिका से जिसने भी दोस्ती की चाहे इराक के सद्दाम हुसैन रहे हों, लीबिया के कर्नल गद्दाफी रहे हों, यूक्रेन के जेलेंस्की, अंजाम सबके सामने है। कभी एशिया में अमेरिका का दुलारा पाकिस्तान हुआ करता था। लेकिन, आज की तारीख में पाकिस्तान की हालत किसी से छिपी नहीं है। अमेरिकी हुक्मरान अपने फायदे के लिए तानाशाह पैदा करते हैं। वहां का डीप स्टेट दुनिया में तनाव पैदा कर हथियारों की रेस पैदा करता है। इतिहास गवाह है कि दुनिया में पैदा होने वाले ज्यादातर तनाव में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।
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दिल्ली को फूंक-फूंक कर बढ़ाने होंगे कदम
ऐसे में अमेरिका फिर पाकिस्तान को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर मुस्लिम वर्ल्ड में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश कर रहा है तो चीन की गोद से पाकिस्तान को हटा कर मुस्लिम वर्ल्ड में बन रहे नए गठजोड़ को तोड़ने में लगा है। ऐसे में दिल्ली को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर बढ़ाना होगा। दोस्तों को नए सिरे से परखना होगा। कारोबारी रिश्तों के साथ इस बात का खासतौर से ध्यान रखना होगा कि भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती ताकत है। जिसे रोकने के लिए महाशक्तियां आपस में हाथ मिला सकती हैं। क्षेत्र में अशांति पैदा कर भारत की तरक्की की रफ्तार पर ब्रेक लगाने की कोशिश कर सकती हैं।
शायद, इसीलिए भारत के पड़ोसियों को चीन और अमेरिका अपने-अपने तरीके से खींचने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन, कूटनीति इसी का नाम है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साथ-साथ भी दिखना है और हर कदम पर सावधान भी रहना है। हर मंच पर शांति की बात भी करनी है और हर दिन खुद को शक्तिशाली भी बनाते रहना है। दोस्ती की आड़ में मुखौटा पहने चेहरों को भी बड़ी सफाई से पहचान और उनके साथ व्यावहारिक तरीके से निपटना वक्त की जरूरत है।
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