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Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण ने बसाए थे ये तीन नगर, जानें इसका इतिहास

Janmashtami 2022: देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी तेज है और कान्हा के भक्त कृष्णमय होने लगे हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल, वृंदावन, गिरिराज और द्वारिका में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण क्षण गुजारे, लेकिन बहुत ही कम लोग उन नगरों के […]

Edited By : Pankaj Mishra | Updated: Aug 17, 2022 15:16
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Janmashtami 2022: देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी तेज है और कान्हा के भक्त कृष्णमय होने लगे हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल, वृंदावन, गिरिराज और द्वारिका में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण क्षण गुजारे, लेकिन बहुत ही कम लोग उन नगरों के बारे में जानते हैं जिनको श्रीकृष्ण ने बसाया था। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, लेकिन वह पूरे भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर गए। श्रीकृष्ण ने सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में देह त्यागा और वहां उनका समाधि है।

भगवान श्रीकृष्‍ण ने कराया था इन तीन नगरों का पुनर्निर्माण

द्वारिका (Dwarika)

द्वारिका का पूर्व में नाम कुशवती था, जो उजाड़ हो चुकी थी। श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर नए नगर का निर्माण करवाया। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहां एक नए राज्य की स्थापना की। कुछ साल पहले नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोग्राफी को समुद्र के अंदर प्राचीन द्वारका के अवशेष प्राप्त हुए थे। इस नगरी का एक हिस्सा आज भी समंदर में है। अनेक द्वारों का शहर होने के कारण इस नगर का नाम द्वारका पड़ा। ये दीवारें आज भी समुद्र के गर्त में हैं। मान्यता है कि कृष्ण अपने 18 साथियों के साथ द्वारका आए थे। यहां उन्होंने 36 साल तक राज किया। इसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। भगवान कृष्ण के विदा होते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई और यादव कुल नष्ट हो गया।

इंद्रप्रस्थ (Indraprastha)

इस तरह इंद्रप्रस्थ, जो पूर्व में खांडवप्रस्थ था, को पांडव पुत्रों के लिए बनवाया गया था। यह नगर बड़ा ही विचित्र था। खासकर पांडवों का महल तो इंद्रजाल जैसा बनाया गया था। द्वारिका की तरह ही इस नगर के निर्माण कार्य में मय दानव और भगवान विश्वकर्मा ने अथक प्रयास किए थे जिसके चलते ही यह संभव हो पाया था।

आज हम जिसे दिल्ली कहते हैं, वही प्राचीनकाल में इंद्रप्रस्थ था। दिल्ली के पुराने किले में जगह-जगह शिलापटों पर लगे इन वाक्यों को पढ़कर यह सवाल जरूर उठता है कि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ कहां थी? खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पांडवों की राजधानी इसी स्थल पर रही होगी।

यहां खुदाई में ऐसे बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो महाभारत से जुडे़ अन्य स्थानों पर भी मिले हैं। दिल्ली में स्थित सारवल गांव से 1328 ईस्वी का संस्कृत का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख लाल किले के संग्रहालय में मौजूद है। इस अभिलेख में इस गांव के इंद्रप्रस्थ जिले में स्थित होने का उल्लेख है।

बैकुंठ (Baikunth)

हिन्दू धर्म मान्यताओं में बैकुंठ जगतपालक भगवान विष्णु का वास होकर पुण्य, सुख और शांति का लोक है, लेकिन हम बात कर रहे हैं उस बैकुंठ धाम की, जो भगवान श्रीकृष्ण का धाम था। विद्वानों के अनुसार इसके कई नाम थे- साकेत, गोलोक, परमधाम, ब्रह्मपुर ‍आदि। अब सवाल यह उठता है कि ऐसा नगर कहां था? कुछ लोग बद्रीनाथ धाम को बैकुंठ कहते हैं, तो कुछ जगन्नाथ धाम को। कुछ का मानना है कि पुष्कर ही बैकुंठ धाम था। हालांकि कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अरावली की पहाड़ी श्रृंखला पर कहीं बैकुंठ धाम बसाया गया था, जहां इंसान नहीं सिर्फ साधक ही रहते थे।

First published on: Aug 17, 2022 03:16 PM
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