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Chinnamasta Temple Rajrappa: भारत में मां भवगती के 52 शक्तिपीठ हैं। देवी पुराण के मुताबिक, मां सती के 52 शक्तिपीठ भारत में ही नहीं, बल्कि आस-पास के देशों में भी मौजूद हैं। शक्तिपीठ के निर्माण की कहानी का कई पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। जिसका संबंध भगवान शिव मां सती, उनके पिता दक्ष प्रजापति और भगवान विष्णु से माना जाता है। झारखंड के रजरप्पा में मां भगवती का एक ऐसा ही शक्तिपीठ है। जहां सिर कटी देवी (मां छिन्नमस्तिका) की पूजा होती है। आइए जानते हैं छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा) के बारे में।
शक्तिपीठ मां छिन्नमस्तिका मंदिर
कहते हैं कि छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा) को असम में कामाख्या मंदिर के बाद दूसरे तीर्थस्थल के रूप में भी माना जाता है। इस मंदिर के भीतर जो देवी छिन्नमस्तिका की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है। मां के मंदिर में मन्नतें मांगने के लिए लोग लाल धागे में पत्थर बांधकर पेड़ या त्रिशूल में लटका देते हैं। मान्यता है कि जो कोई मां छिन्नमस्तिका के समक्ष अपनी मनोकामना रखता है, उसे भगवती पूरा करती हैं।
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छिन्नमस्तिका देवी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों ने माता से कहा- हे माता! जब बच्चों को भूख लगती है तो मां अपने हर काम छोड़कर उसे भोजन कराती हैं। मकर आप ऐसा क्यों नहीं करतीं। यह बात सुनते ही मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट लिया। कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बहने लगीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। कहते हैं कि तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।
कहां है यह मंदिर
यहां हर बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में दर्शन के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। झारखंड राज्य का रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां पर दामोदर और भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमस्तिका यहां रात्रि में विचरण करती हैं। इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं।