Yamunanagar News : भारत रहस्यों से भरा हुआ है. यहां लोगों की अलग-अलग परमपराएं, रहन-सहन ही इस देश को अनोखा बनाता है। अब हम आपको एक ऐसी अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके लिए लोग दूर-दूर से चलकर एक किले तक पहुंचते हैं। इसके बाद किले पर जूते मारते थे। आखिर क्या है ये परंपरा और कहां की है ये परंपरा?
कपालमोचन के पास एक ऐसी जगह है, जहां एक तरफ श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीष झुकाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ राजा जरासंध के टीले पर जूते, चप्पल भी मारते हैं और गालियां भी देते हैं। जिन लोगों को भी यहां तक पहुंचना होता है वे पैदल या सवारी गाड़ी से आते हैं। सिर्फ मेले के दौरान ही यहां लोग आते जाते हैं अन्यथा ये क्षेत्र वीरान रहता है।
क्या महत्व है इस जगह का?
ये जगह कपालमोचन के पास गांव संधाय के जंगलों में मौजूद है। यहां एक गुरुद्वारा है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक, लोगों का मानना है कि गुरु गोबिंद सिंह भंगियानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन में आए थे। करीब 52 दिन वे रुके थे। यहीं पर रुककर उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र को साफ़ किया था और 40 दिन तक रात को गुरु गोबिंद सिंह संधाय गांव में तप करने के लिए आए थे इसीलिए इसका नाम सिंधू वन रखा गया।
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गुरु गोबिंद सिंह अपने घोड़े से इस गांव आते थे और शिव मंदिर में पेड़ के नीचे उसे बांधते थे। गुरु की तपोस्थली होने की वजह से श्रद्धालु यहां आते हैं। अब 10वीं पातशाही गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहेब के नाम से जाना जाता है। यहां उस जगह पर निशान साहेब की स्थापना की गई है जहां गुरु गोबिंद सिंह तप करते थे।
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इस गुरूद्वारे के बगल में मिट्टी का ऊंचा टीला भी है। इस टीले को लोग चप्पलों से पीटते हैं। मान्यता है कि ये टीला कभी राजा जरासंध का महल हुआ करता था। राजा डोली लूटता था और महिलाओं को अपने महल में लाकर उनकी इज्जत लूटता था। एक सती के श्राप के कारण राजा का महल मिट्टी में तब्दील हो गया था। अब जो भी श्रद्धालु गुरुद्वारा में मत्था टेकने जाते हैं वो रास्ते में पड़ने वाले इस टीले पर पत्थर, जूते, चप्पल मारते हैं।