Woman Lived Without Money: आज के डिजिटल युग में बिना कैश या कम खर्चों के साथ जीवन जीना एक नया ट्रेंड हो गया है। वहीं एक तरफ क्रेडिट कार्ड, यूपीआई और मोबाइल पेमेंट्स ने हमारी लाइफस्टाइल को पूरी तरह बदल दिया है। भले इससे पेमेंट करना आसान हो जाता है, लेकिन खर्चों का हिसाब रखना मुश्किल हो जाता है। मगर, क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति बिना पैसे के 20 साल तक जीवित रह सकता है? ये नामुमकिन सा है, लेकिन जर्मनी की हेइडेमेरी श्वेर्मर (Heidemarie Schwermer) ने इसे सच कर दिखाया। आज हम यहां श्वेरमर की जर्नी के बारे में जानेंगे।
कैसे था शुरुआती जीवन?
Heidemarie Schwermer का जन्म 1942 में प्रशिया (अब पोलैंड) में हुआ था। उनके पिता एक सफल बिजनसमैन थे और उनका परिवार एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था। लेकिन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उनका परिवार अपनी सारी संपत्ति खो बैठा और शरणार्थी बनने मजबूर हो गया। युद्ध समाप्त होने के बाद, उनके पिता ने एक तंबाकू कंपनी शुरू की और फिर से अपना बिजनेस खड़ा कर लिया।
हेइडेमेरी श्वेर्मर ने आगे चलकर एजुकेशन सेक्टर में काम किया और लगभग 20 साल तक एक टीचर रहीं। इसके बाद उन्होंने मनोचिकित्सक (साइकोलॉजिस्ट) के रूप में करियर बनाया और एक स्टेबल इनकम अर्जित की। लेकिन भले ही उनके पास आर्थिक स्थिरता थी, उन्हें अपने जीवन में संतुष्टि महसूस नहीं हो रही थी।
पैसों के बिना जीवन की शुरुआत
1994 में, हेइडेमेरी ने जर्मनी में पहला ‘एक्सचेंज सर्कल’ शुरू किया, जहां लोग बिना पैसे के एक दूसरे को सर्विसेज देते थे। इस सिस्टम में लोग घर की सफाई, बच्चों की देखभाल और अन्य सर्विसेज के बदले सामान और अन्य सेवाएं ले सकते थे। जल्द ही, उन्हें एहसास हुआ कि इस तरह की लाइफस्टाइल में पैसे की जरूरत बहुत कम थी।
एक दिन, उनके एक मित्र ने उनसे घर की देखभाल करने का अनुरोध किया। इससे उनके मन में एक विचार आया कि क्या वह बिना पैसे के एक साल तक जी सकती हैं? इस प्रयोग ने जल्द ही उनके जीवन की दिशा पूरी तरह से बदल दी।
बिना पैसे के कैसे जिया जीवन
इस प्रयोग को शुरू करने के लिए हेइडेमेरी श्वेर्मर ने अपनी सभी संपत्तियां बेच दीं और सिर्फ एक सूटकेस में समाने लायक सामान अपने पास रखा। उन्होंने सोचा था कि यह एक साल का प्रयोग होगा, लेकिन यह उनका जीवन बन गया। उन्होंने पाया कि पैसों के बिना वह ज्यादा खुश और संतुष्ट जीवन जी सकती हैं।
शुरुआती दिनों में, उन्होंने अपने पुराने दोस्तों के घरों में रहना शुरू किया। उनके अनोखे लाइफस्टाइल की खबर फैलने लगी और लोग उनसे उनके अनुभवों के बारे में सुनने के लिए बुलाने लगे। वे अपने लाइफ के बारे में लोगों के बताती थी और इसके लिए कोई फीस भी नहीं लेती था। हालांकि वे अपने लैक्चर या टॉक के लिए केवल ट्रेन किराया लेती थी। टिकट के बदले वह अपने होस्ट के घर की सफाई करतीं, बगीचों की देखभाल करतीं और अन्य छोटे-मोटे कामों में मदद करतीं। इस तरह, बिना पैसे के ही उनकी जरूरतें पूरी होती रहीं।
‘लिविंग विदआउट मनी’ डॉक्यूमेंट्री
2010 में, हेइडेमेरी के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गई, जिसका नाम ‘लिविंग विदआउट मनी’ था। यह फिल्म 29 देशों में 299 से अधिक बार दिखाई गई। इसमें दिखाया गया कि कैसे हीडेमारी बाजारों में बचा हुआ खाना इकट्ठा करती थीं, दुकानदारों से बेकार समझे जाने वाले सामान मांगती थीं और फेंके गए जरूरी सामानों का दोबारा इस्तेमाल करती थीं। इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से उन्होंने यह मैसेज दिया कि पैसा सिर्फ एक साधन है, जो हमें कुछ सुविधाएं और स्वतंत्रता देता है। लेकिन असली खुशी पाने के लिए हमें यह समझना होगा कि वास्तव में हमारे लिए क्या मायने रखता है।
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