Premanand Maharaj : किसान आंदोलन के बाद चर्चाओं में रहने वाले किसान नेता राकेश टिकैत हाल ही में चर्चित प्रेमानंद महाराज से मिलने पहुंचे। इस दौरान राकेश टिकैत प्रेमानंद महाराज के सामने खड़े थे और महाराज उन्हें शिक्षा दे रहे थे। प्रेमानंद महाराज ने राकेश टिकैत से जो भी कुछ कहा , उसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।
वीडियो में प्रेमानंद महाराज ने किसान नेता राकेश टिकैत से कहा कि किसानों के पक्ष में खड़े होकर सरकार से सुविधा दिलाना बहुत उत्तम काम है लेकिन इसमें स्वार्थ की गंध नहीं होनी चाहिए। स्वार्थ में कपट होता है। अगर हम दूसरों के हित के लिए जान की बाजी लगा देंगे तो इस लोक और परलोक में भी मंगल होगा। ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि भारतीय किसान बहुत भोले भाले हैं। हम लोग किसान के घर में पैदा हुए हैं, सब जानते हैं। फसल नष्ट हुई तो समझो किसान नष्ट हो गया। कितनी मेहनत करके वो फसल तैयार करते हैं। बहुत से किसान परेशान होकर शरीर त्याग देते हैं क्योंकि उनकी कहीं पहुंच नहीं है, उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। कोई पचास लाख भले कमाता हो लेकिन वह पैसा तो नहीं खाएगा, खाएगा तो अन्न ही और अन्न पैदा करते हैं किसान! किसानों के साथ खड़े होने की जरूरत है।
राकेश टिकैत और प्रेमानंद महाराज का वीडियो
— Shivam Tyagi (Modi Ka Parivar) (@ShivamSanghi12) July 23, 2024
सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो रहा है और इस पर तमाम सोशल मीडिया यूजर्स कमेंट्स कर रहे हैं। एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा कि संतों की बात कहने का तरीका ही कमाल है, अब यही देख लीजिए राकेश टिकैत को आशीर्वाद तो दिया लेकिन इतना टाइट किया, इतना टाइट किया कि अगली बार आशीर्वाद लेने मुश्किल ही आयेंगे। एक ने लिखा कि किसानों कि लिए राकेश टिकैत हमेशा खड़े दिखाई दिए है। इस वीडियो में भी महाराज किसानों के साथ ही राकेश टिकैत की भी तारीफ करते दिखाई दे रहे हैं।
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बता दें कि राकेश टिकैत मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं। भारतीय किसान यूनियन संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वह भाकियू के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं। 2020 में कृषि कानून के विरोध में गाजीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन को लेकर चर्चाओं में रहे हैं। महीनों चले इस आंदोलन में एक वक्त ऐसा आया, कि जैसे आंदोलन कमजोर पड़ गया है लेकिन राकेश टिकैत ने अपनी जगह से हिलने से इनकार कर दिया था और मीडिया के सामने ही रो पड़े थे। इसके बाद आंदोलन में मजबूती आई और सरकार ने कृषि कानून को वापस लेने का फैसला किया था।